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ओवैसी का वार, भागवत न बताएं हम कितने खुश, उनकी विचारधारा हमें सेकेंड क्लास नागरिक बनाना चाहती है

महाराष्ट्र की एक पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में मोहन भागवत ने कहा था कि सबसे ज्यादा भारत के ही मुस्लिम संतुष्ट हैं. उन्होंने कहा था कि क्या दुनिया में एक भी उदाहरण ऐसा है जहां किसी देश की जनता पर शासन करने वाला कोई विदेशी धर्म अब भी वजूद में हो.

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AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी (फोटो-आजतक)
AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी (फोटो-आजतक)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • मोहन भागवत न बताएं हम कितने खुश हैं-ओवैसी
  • भारत का मुसलमान दुनिया में सबसे खुश-भागवत
  • 'हमें संविधान के तहत मिले बुनियादी अधिकार चाहिए'

AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने संघ प्रमुख मोहन भागवत पर हमला बोला है. ओवैसी ने मोहन भागवत के उस बयान पर आपत्ति जताई है जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत का मुसलमान दुनिया में सबसे संतुष्ट है. 

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ओवैसी ने इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि मोहन भागवत यह न बताएं कि हम कितने खुश हैं, जबकि उनकी विचारधारा मुसलमानों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनानी चाहती है. 

बता दें कि महाराष्ट्र की एक पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में मोहन भागवत ने कहा था कि सबसे ज्यादा भारत के ही मुस्लिम संतुष्ट हैं. उन्होंने कहा था कि क्या दुनिया में एक भी उदाहरण ऐसा है जहां किसी देश की जनता पर शासन करने वाला कोई विदेशी धर्म अब भी वजूद में हो. अपने ही सवाल का जवाब देते हुए मोहन भागवत ने कहा था कि कहीं नहीं, केवल भारत में ही ऐसा है.

उनके इस बयान पर ओवैसी ने सख्त टिप्पणी की है. ओवैसी ने ट्वीट किया है, "खुशी का पैमाना क्या है? यही कि भागवत नाम का एक आदमी हमेशा हमें बताता रहा कि हमें बहुसंख्यकों के प्रति कितना आभारी होना चाहिए? हमारी खुशी का पैमाना यह है कि क्या संविधान के तहत हमारी मर्यादा का सम्मान किया जाता है या नहीं, अब हमें ये नहीं बताइए कि हम कितने खुश हैं, जबकि आपकी विचारधारा चाहती है कि मुसलमानों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनाया जाए."

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संघ प्रमुख भागवत ने अपने बयान में यह भी कहा था कि ऐसी कोई शर्त नहीं है कि भारत में रहने के लिए किसी को हिन्दुओं की श्रेष्ठता को स्वीकार करना ही होगा, और संविधान भी ऐसा नहीं कहता है.
 
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ओवैसी ने कहा, "मैं आपको ऐसा कहते हुए सुनना नहीं चाहता हूं कि हमें अपने ही होमलैंड में रहने के लिए बहुसंख्यकों के प्रति कृतज्ञता जतानी चाहिए. हमें बहुसंख्यकों की सह्रदयता नहीं चाहिए, हम दुनिया के मुसलमानों के साथ खुश रहने की प्रतिस्पर्द्धा में नहीं हैं, हम सिर्फ अपना मौलिक अधिकार चाहते हैं." 

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