इन दिनों एक चर्चा खूब चल रही है कि समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा के इस चुनाव में अपने पीडीए फॉर्मूला का बंटाधार कर दिया है. राज्यसभा के लिए जो चेहरे उन्होंने घोषित किए हैं, उनमें जया बच्चन, आलोक रंजन और रामजीलाल सुमन को उम्मीदवार बनाया गया है. इन उम्मीदवारों में रामजीलाल सुमन को छोड़कर पीडीए में कोई फिट नहीं बैठता. वहीं बीजेपी ने पहले ही अखिलेश यादव के पीडीए को भांपते हुए अपना पीडीए ठीक कर लिया.
अखिलेश यादव के पीडीए में सबसे बड़ा पलीता पल्लवी पटेल ने उस समय लगा दिया, जब उन्होंने यह कह दिया कि वह किसी बच्चन-रंजन को वोट नहीं देंगी, क्योंकि वह पीडीए नहीं हैं. अखिलेश यादव के इस फैसले के पीछे की एक बड़ी बात जो सोशल मीडिया पर भी चल रही है और सियासी गलियारों में भी जो चर्चा है, वो ये है कि बीजेपी ने कुमार विश्वास को इसलिए राज्यसभा नहीं भेजा क्योंकि पार्टी को अपना पीडीए समीकरण गड़बड़ाने का डर था.
बीजेपी ने राज्यसभा के लिए जिन चार उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया है, उनमें एक ओबीसी, एक ब्राह्मण, एक ठाकुर और एक जैन उम्मीदवार शामिल है. वहीं अगर पार्टी कुमार विश्वास को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाती तो ब्राह्मणों की संख्या दो हो जाती और चुनाव के एन पहले बीजेपी पर ब्राह्मणवाद करने का आरोप लग सकता था.
चर्चा है कि बीजेपी कुमार विश्वास को नॉमिनेशन से भेजेगी या फिर गाजियाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ाएगी. लेकिन इसके पीछे का असल मकसद यही है कि बीजेपी की लिस्ट का पीडीए नहीं गडबढ़ाना चाहिए था. जबकि दूसरी तरफ अखिलेश यादव ने अपने कमिटेड लोगों को राज्यसभा भेजा है. ऐसे लोग जो अखिलेश यादव के वफादार रहे हैं और पार्टी के साथ लंबे समये से जुड़े हैं. इसके मद्देनजर सपा की लिस्ट में पीडीए से सिर्फ दलित उम्मीदार ही शामिल है. जया बच्चन और आलोक रंजन एक ही कायस्थ बिरादरी से आते हैं. ऐसे में सपा के भीतर भी इस पर सवाल उठ रहे हैं.
सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा हो रही है और ये बार-बार लोग कह रहे हैं कि समाजवादी पार्टी ने तो सिर्फ कहने को पीडीए राज्यसभा में कहा है लेकिन असल पीडीए तो बीजेपी ने किया है. अखिलेश यादव ने ये कह दिया कि उनका पीडी (पिछड़ा-दलित) विधान परिषद में भी दिखाई देगा. यानी की तकरीबन चार विधान परिषद के सदस्य जो जाएंगे, उनमें उम्मीद ये की जा रही है कि दो ओबीसी से होंगे और दो अल्पसंख्यक बिरादरी से.