अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से लगातार वहां के हालात खराब हो रहे हैं. केंद्र सरकार ने अफगानिस्तान के बदलते हालात को लेकर गुरुवार को यानी आज सर्वदलीय बैठक बुलाई है. माना जा रहा है कि इस बैठक में अफगानिस्तान को लेकर भारत की आगे की रणनीति को लेकर चर्चा होगी. इससे पहले संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सोमवार को कहा था कि विदेश मंत्री एस जयशंकर, राजनीतिक पार्टियों के संसदीय दलों के नेताओं को अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति से अवगत कराएंगे.
जोशी ने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, 'राजनीतिक पार्टियों के संसदीय दलों के नेताओं को विदेश मंत्री डा. एस जयशंकर द्वारा अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति के बारे में 26 अगस्त, सुबह 11 बजे मुख्य समिति कक्ष, संसद भवन सौंध, नई दिल्ली में जानकारी दी जाएगी. ईमेल के जरिए आमंत्रण भेजे जा रहे हैं. सभी संबंधित लोगों से शरीक होने का अनुरोध किया जाता है.'
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के प्रतिनिधि बैठक में शामिल होंगे. तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने कोलकाता में राज्य सचिवालय में संवाददाताओं से कहा, 'हम निश्चित रूप से अफगानिस्तान के संबंध में गुरुवार को होने वाली सर्वदलीय बैठक में शामिल होंगे.'
इससे पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश मंत्रालय को विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को यह जानकारी देने का निर्देश दिया है. जयशंकर ने ट्वीट किया, 'अफगानिस्तान में घटनाक्रम को देखते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश मंत्रालय से कहा है कि वह विभिन्न पार्टियों के संसदीय दलों के नेताओं को इस संबंध में जानकारी दें. संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी आगे की जानकारी देंगे.'
सरकार की ब्रीफिंग अफगानिस्तान से लोगों की निकासी के अभियान पर केंद्रित रहने की उम्मीद है तथा इसमें वहां के हालात को लेकर सरकार के आकलन की भी जानकारी दी जा सकती है.
घरेलू राजनीति अलग, विदेश नीति अलग
इससे पहले बुधवार को पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने आजतक के साथ खास बातचीत में कहा कि अफगानिस्तान के मसले पर मैं देख रहा हूं कि यहां पर एक प्रचलन चल पड़ा है कि लोग इसे भारत की राजनीति के साथ जोड़ कर देख रहे हैं जो लोग समाज को बांटने की कोशिश करते हैं या विश्वास करते हैं उन लोगों को बड़ा हथियार मिल गया है तालिबान-अफगानिस्तान में.
उन्होंने कहा कि पहले यह साफ हो जाए. घरेलू राजनीति हमारी अलग है. विदेश नीति अलग है. तालिबान के साथ हमारा क्या व्यवहार होना चाहिए क्या यह इस पर नहीं निर्भर करेगा कि किसी प्रकार की सरकार काबुल में बनती है. मान लीजिए कि अगर वहां पर सब लोगों को मिला-जुला कर राष्ट्रीय सरकार बनती है तो भारत सरकार का रुख क्या होगा.
अगर विशुद्ध रुप से तालिबान की सरकार बनती है तो निश्चित रुप से भारत का रुख अलग होगा. अगर इसमें हक्कानी नेटवर्क को शामिल किया जाता है तो जाहिर है कि भारत का रुख अलग होगा. उसमें पाकिस्तान की दखंलदाजी बढ़ती है तो भारत का रुख अलग होगा.
पूर्व विदेश मंत्री सिन्हा ने यह भी कहा कि कई चीजें ऐसी हैं जो अभी स्थिर नहीं हुई है. उस पर नजर रखना जरुरी है. अभी तो जरुरी काम यह था कि वहां जो भारतीय लोग हैं उन्हें वहां से निकालना और वापस लाना चल रहा है. हालांकि मैं फिर से कहूंगा कि भारत के राजदूत को काबूल छोड़कर इतनी जल्दी वापस नहीं आना चाहिए था. अगर वो वहां होते तो इन सब चीजों का समन्वय करने में आसानी होती.
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800 से अधिक लोग अफगानिस्तान से लाए गए
अब तक अफगानिस्तान से निकालकर लाये गए लोगों की संख्या 800 से अधिक हो चुकी है. काबुल पर तालिबान के कब्जा के एक दिन बाद 16 अगस्त से लोगों को निकालने की प्रक्रिया शुरू की गई थी. भारत ने मंगलवार को दुशांबे से 78 लोगों को वापस लाया जिनमें 25 भारतीय नागरिक तथा कई अफगान सिख और हिंदू शामिल हैं
अफगानिस्तान से निकालकर लाए गए 146 भारतीय नागरिक कतर की राजधानी से चार अलग-अलग विमानों के जरिये सोमवार को भारत पहुंचे. इन नागरिकों को अमेरिका और उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के विमान के जरिए पिछले कुछ दिन में काबुल से दोहा ले जाया गया था. भारत तीन उड़ानों के जरिए दो अफगान सांसदों समेत 392 लोगों को रविवार को देश वापस लाया था.
इससे पहले, 16 अगस्त को 40 से अधिक लोगों को स्वदेश लाया गया था जिनमें से ज्यादातर भारतीय दूतावास के कर्मी थे. काबुल से दूसरे विमान से 150 लोगों को लाया गया, जिनमें भारतीय राजनयिक, अधिकारी, सुरक्षा अधिकारी और कुछ अन्य भारतीय थे, जिन्हें 17 अगस्त को लाया गया था.