गांधी परिवार का उत्तर प्रदेश के अमेठी व रायबरेली से भवनात्मक रिश्ता है. रायबरेली में सोनिया गांधी लगातार चुनाव जीत रही हैं, लेकिन बगल की अमेठी सीट का सियासी रंग बदल गया है. 2019 के चुनाव में राहुल गांधी को स्मृति ईरानी ने शिकस्त देकर गांधी परिवार के अभेद्य दुर्ग माने जाने वाले अमेठी में भगवा फहरा दिया. अब दो दशक तक कांग्रेस को वॉकओवर देने वाली समाजवादी पार्टी ने 2024 के चुनाव में अमेठी में दो-दो हाथ करने का मन बना लिया है. ऐसे में सवाल उठता है कि सपा के कैंडिडेट उतारने से कांग्रेस और बीजेपी में से किसकी मुश्किलें बढ़ेंगी?
अखिलेश ने अमेठी को लेकर दिए संकेत
सपा प्रमुख अखिलेश यादव रविवार को अमेठी पहुंचे थे, जहां उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में अपना प्रत्याशी उतारने के संकेत दिए. अखिलेश ने कहा कि अमेठी में गरीब महिलाओं की दुर्दशा देखकर मन बहुत दुखी हुआ. यहां की संसदीय सीट से हमेशा से वीआईपी चुनाव जीते और हारे हैं, यहां का ऐसा हाल तो बाकी प्रदेश का क्या कहना. 2024 के लोकसभा चुनाव में अमेठी की जनता बड़े लोगों को नहीं बड़े दिल वाले लोगों को चुनेगी. सपा अमेठी की गरीबी को मिटाने का संकल्प उठाती है. इसके साथ ही उन्होंने मौजूदा सांसद स्मृति ईरानी पर निशाना साधते हुए कहा कि आगामी लोकसभा 2024 चुनाव में सिलेंडर वाली सांसद को चुनाव जरूर हराना.
दो दशक के बाद सपा लड़ेगी चुनाव
अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव में अमेठी संसदीय सीट से अपना प्रत्याशी उतारते हैं तो दो दशक के बाद चुनावी मैदान में सपा होगी. 1999 के बाद सभा ने अमेठी सीट पर कभी भी अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था. राहुल गांधी को अमेठी सीट पर वाकओवर देती रही है, लेकिन अब कांग्रेस हार चुकी है और बीजेपी काबिज है तो अखिलेश यादव आगामी 2024 में अमेठी सीट पर भी चुनाव लड़ने के संकेत दे रहे हैं.
सपा अपने गठन के बाद सिर्फ अमेठी लोकसभा सीट से दो बार चुनावी मैदान में उतरी थी, जिसमें पहली बार 1998 में शिव प्रसाद कश्यप ने तो 1999 में कमरुज्जमा फौजी ने सपा से किस्मत आजमाई थी. सपा के ये दोनों ही उम्मीदवार अमेठी में कोई खास करिश्मा नहीं दिखा सके थे. इसके बाद से सपा ने कभी भी अपना कोई भी प्रत्याशी नहीं उतारा.
सपा क्यों लड़ना चाहती है चुनाव
2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी के अमेठी से हार जाने के बाद सारे सियासी समीकरण बदल गए हैं. स्मृति ईरानी बीजेपी से सांसद हैं और केंद्र में मंत्री है. राहुल की हार के बाद से गांधी परिवार का अमेठी से मोहभंग हो गया है. पिछले पांच सालों में राहुल गांधी गिनती के दो तीन बार ही अमेठी गए हैं. कांग्रेस अमेठी में लगातार कमजोर होती जा रही है तो सपा को अपनी जड़ें जमाने में कामयाबी मिली है.
अमेठी में सपा का ग्राफ
अमेठी की सियासत में कांग्रेस की राजनीतिक जमीन धीरे-धीरे खिसकती जा रही है और सपा बढ़ रही है. अमेठी लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें आती हैं. 2022 के चुनाव में अमेठी और गौरीगंज से सपा अपने दो विधायक बनाने में कामयाब रही थी जबकि सलोन सीट पर बहुत ही मामूली वोटों से हार गई थी. बीजेपी अमेठी में अपने तीन विधायक बनाने में सफल रही थी, लेकिन सपा ने उसे तगड़ी चुनौती दी थी.
अमेठी लोकसभा की पांचों विधानसभा सीटों पर मिले वोट को देखें तो सपा को 3,52, 475 वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 4,18,700 वोट मिले हैं. इस तरह बीजेपी 66,225 वोट ही सपा से ज्यादा पा सकी थी. कांग्रेस सिर्फ जगदीशपुर सीट पर ही नंबर दो पर थी. इसके अलावा उसे पौने दो लाख के करीब वोट मिले थे. बढ़ते सियासी ग्राफ को देखते हुए अखिलेश यादव अमेठी सीट पर अपना प्रत्याशी उतारने की तैयारी में हैं.
अमेठी का जातीय समीकरण
अमेठी लोकसभा सीट के जातिगत समीकरण को देखें तो दलित और मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. अमेठी में करीब 17 लाख मतदाता हैं, जिनमें 34 फीसदी ओबीसी, 20 फीसदी मुसलमान, 26 फीसदी दलित और 8 फीसदी ब्राह्मण और 12 फीसदी में ठाकुर और अन्य वोटर्स हैं दलित मतदाताओं में सबसे बड़ी आबादी पासी समुदाय की है, जो करीब 4 लाख के करीब तो मुस्लिम भी साढ़े तीन लाख हैं. ओबीसी में यादव मतदाता ढाई लाख के करीब हैं तो डेढ़ लाख मौर्य समुदाय और एक लाख कुर्मी वोटर हैं.
बीजेपी के साथ सवर्ण वोटर पूरी तरह से एकजुट है. ओबीसी-दलित-मुस्लिम वोटों पर अखिलेश यादव की नजर है. आजादी के बाद के विकास का हवाला देकर स्मृति ईरानी पिछले चुनाव राहुल गांधी को मात देने में सफल रही थीं, लेकिन इस बार उनके पांच साल के कामकाज को भी कसौटी पर कसा जाएगा. राहुल गांधी अमेठी से अगला चुनाव लड़ेंगे कि नहीं यह भी तस्वीर साफ नहीं है और कांग्रेस से कोई दूसरा कैंडिडेट उतरेगा तो फिर वह कौन होगा. गांधी परिवार से बाहर कोई प्रत्याशी उतरता है तो कांग्रेस के लिए वापसी करना मुश्किल होगा. ऐसे में सपा अपने जातीय समीकरण के बहाने अमेठी में जीत का परचम फहराना चाहती है. ऐसे में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए अखिलेश यादव मुश्किलें खड़ी करेंगे?