पटना में हुई विपक्षी दलों की महाबैठक में अधिकांश नेताओं में सहमति बनी है. अंतिम फैसला 12 जुलाई को शिमला में होने वाली अगले चरण की बैठक में लिया जाएगा. तभी सीटों के बंटवारे को लेकर भी मंथन होगा. इस बीच आम आदमी पार्टी की तरफ से नीतीश कुमार के इस महाजुटान को झटका मिलता नजर आ रहा है. कारण, शिमला मीटिंग में आने के लिए आम आदमी पार्टी ने महाबैठक में शामिल हुईं सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए बड़ी शर्त रख दी है.
दरअसल, शुक्रवार 23 जून को पटना में हुई राजनीतिक दलों की बैठक पर आम आदमी पार्टी ने बयान जारी किया है. इसमें पार्टी की तरफ से कहा गया है कि जब तक कांग्रेस सार्वजनिक रूप से काले अध्यादेश का विरोध नहीं करती है और ये घोषणा नहीं करती है कि उसके सभी 31 राज्यसभा सांसद राज्यसभा में अध्यादेश का विरोध करेंगे, तब तक आम आदमी पार्टी के लिए समान विचारधारा वाले दलों की भविष्य में होने वाली बैठकों में भाग लेना मुश्किल होगा, जिसमें कांग्रेस भी हिस्सा ले रही है.
आम आदमी पार्टी ने अपने बयान में कहा है कि केंद्र के काले अध्यादेश का उद्देश्य न केवल दिल्ली में निर्वाचित सरकार के लोकतांत्रिक अधिकारों को छीनना है, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र और संवैधानिक सिद्धांतों के लिए भी एक खतरा है. यदि इसे चुनौती न दी गई, तो यह खतरनाक प्रवृत्ति अन्य सभी राज्यों में भी अपनाई जा सकती है. इसका परिणाम यह होगा कि जनता द्वारा चुनी गई दूसरे राज्य सरकारों से भी सत्ता छीनी जा सकती है. इसलिए इस काले अध्यादेश को राज्यसभा में पास होने से रोकना बहुत ही जरूरी है.
11 दलों ने काले अध्यादेश के खिलाफ रुख साफ किया: आप
आगे कहा गया कि पटना की बैठक में समान विचारधारा वाली 15 पार्टियां शामिल हुईं. इनमें से 12 का प्रतिनिधित्व राज्यसभा में है. कांग्रेस को छोड़कर अन्य सभी 11 दलों, जिनका राज्यसभा में प्रतिनिधित्व है, उन्होंने काले अध्यादेश के खिलाफ स्पष्ट रूप से अपना रुख साफ कर दिया है और इन पार्टियों ने घोषणा की है कि वे राज्यसभा में अध्यादेश का विरोध करेंगे. कांग्रेस, एक राष्ट्रीय पार्टी है, जो लगभग सभी मुद्दों पर एक स्टैंड लेती है. इसके बाद भी कांग्रेस ने अभी तक काले अध्यादेश को लेकर अपना रुख सार्वजनिक नहीं किया है. वहीं, कांग्रेस की दिल्ली और पंजाब यूनिट्स ने घोषणा की है कि पार्टी को इस मुद्दे पर मोदी सरकार का समर्थन करना चाहिए.
'कांग्रेस की चुप्पी संदेह पैदा करती है'
आप ने कहा कि आज पटना में समान विचारधारा वाली पार्टी की बैठक के दौरान कई दलों ने कांग्रेस से काले अध्यादेश की खुले तौर पर निंदा करने का आग्रह किया, लेकिन कांग्रेस ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया. कांग्रेस की ये चुप्पी उसके इरादों पर संदेह पैदा करती है. व्यक्तिगत चर्चाओं में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने संकेत दिया है कि उनकी पार्टी अनौपचारिक या औपचारिक रूप से राज्यसभा में अध्यादेश पर मतदान की प्रकिया से दूर रह सकती है. अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस को मतदान से दूर रहने से भाजपा को आगे भी देश के लोकतंत्र पर हमला करने में काफी मदद मिलेगी.
'AAP के लिए गठबंधन का हिस्सा बनना मुश्किल हो जाएगा'
आम आदमी पार्टी ने कहा कि यह काला अध्यादेश संविधान और संघवाद विरोधी होने के साथ ही पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है. इसके अलावा, यह अध्यादेश सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को पलटने के साथ-साथ न्यायपालिका का भी अपमान करता है. विशेष तौर पर अध्यादेश के मुद्दे पर कांग्रेस की झिझक और टीम भावना के रूप में कार्य करने से इन्कार करने से आम आदमी पार्टी के लिए किसी भी गठबंधन का हिस्सा बनना बहुत मुश्किल हो जाएगा, जिस गठबंधन में कांग्रेस भी शामिल है. अब समय आ गया है कि कांग्रेस ये तय करे कि वो दिल्ली की जनता के साथ खड़ी है या मोदी सरकार के साथ.
प्रेस कांफ्रेंस में शामिल नहीं हुए AAP नेता
विपक्षी नेताओं की बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस में न तो अरविंद केजरीवाल शामिल हुए और न ही आम आदमी पार्टी का कोई नेता. बैठक खत्म होते ही सभी आप नेता पटना सीएम आवास से निकल गए. वहीं इससे पहले तक बताया जा रहा था कि बैठक में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में अध्यादेश पर सबका साथ मांगा. इस पर उद्धव ठाकरे समेत कई अन्य नेताओं ने कांग्रेस से अध्यादेश पर समर्थन देने की अपील भी की. हालांकि नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने केजरीवाल को असहज कर दिया. उन्होंने अनुच्छेद 370 पर केजरीवाल का स्टैंड साफ नहीं रहने की याद दिला दी.
पटना की बैठक में शामिल हुए थे ये नेता
पटना में हुई महाबैठक में 15 दलों के 27 नेता शामिल हुए. इन नेताओं के नाम नीतीश कुमार (जेडीयू), ममता बनर्जी (एआईटीसी), एमके स्टालिन (डीएमके), मल्लिकार्जुन खड़गे (कांग्रेस), राहुल गांधी (कांग्रेस), अरविंद केजरीवाल (आप), हेमंत सोरेन (झामुमो), उद्धव ठाकरे (एसएस-यूबीटी), शरद पवार (एनसीपी), लालू प्रसाद यादव (राजद), भगवंत मान (आप), अखिलेश यादव (सपा), केसी वेणुगोपाल (कांग्रेस), सुप्रिया सुले (एनसीपी), मनोज झा (राजद), फिरहाद हकीम (एआईटीसी), प्रफुल्ल पटेल (एनसीपी), राघव चड्ढा (आप), संजय सिंह (आप), संजय राऊत (एसएस-यूबीटी), ललन सिंह (जेडीयू),संजय झा (राजद), सीताराम येचुरी (सीपीआईएम), उमर अब्दुल्ला (नेकां), टीआर बालू (डीएमके), महबूबा मुफ्ती (पीडीपी), दीपंकर भट्टाचार्य (सीपीआईएमएल)तेजस्वी यादव (राजद), अभिषेक बनर्जी (एआईटीसी), डेरेक ओ'ब्रायन (एआईटीसी), आदित्य ठाकरे (एसएस-यूबीटी) और डी राजा (सीपीआई) हैं.