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Bihar: ओवैसी की सियासी फसल 'नष्ट' करने के लिए नीतीश-तेजस्वी ने चल दिया ये दांव!

बिहार के 2020 विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी ने पांच सीटें जीतकर मुस्लिम सियासत को खड़ी करने की कवायद की थी, लेकिन दो साल के बाद सियासत बदल गई है. नीतीश कुमार बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन का हिस्सा बन गए हैं तो ओवैसी की राजनीति को भी बिहार से पूरी तरह खत्म करने की सियासी बिसात बिछा दी है.

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नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव

बिहार में सियासी उलटफेर के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए से हटकर महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बना ली है और अपनी कैबिनेट का गठन भी कर लिया है. मंत्रिमंडल में 5 मुस्लिम चेहरों को शामिल किया गया है, जिनके जरिए सीमांचल से लेकर चंपारण और मिथिलांचल तक सभी मुस्लिम बेल्ट को साधने की कवायद की गई है. माना जा रहा है कि नीतीश-तेजस्वी की जोड़ी ने बिहार में खड़ी हुई असदुद्दीन ओवैसी की मुस्लिम पॉलिटिक्स को अब पूरी तरह खत्म करने के लिए एक सियासी बुनियाद रखी है? 

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नीतीश कैबिनेट में पांच मुस्लिम मंत्री

नीतीश कैबिनेट में मंगलवार को कुल 31 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली. महागठबंधन सरकार में पांच मुस्लिम चेहरों को जगह दी गई है. जेडीयू की तरफ से जमा खान को मंत्री बनाया गया है, जबिक आरजेडी ने तीन मुस्लिम विधायकों को मंत्री बनने का मौका दिया है, जिनमें शमीम अहमद, इसराइल मंसूरी और शाहनवाज आलम हैं. वहीं, कांग्रेस की तरफ से सिर्फ एक मुस्लिम विधायक आफाक आलम को मंत्री बनाया गया है. 

बिहार में मुस्लिमों की आबादी 16 फीसदी है और मौजूदा समय में 19 विधायक हैं. इस लिहाज से कैबिनेट में मुस्लिमों की आबादी के लिहाज से तो 16  फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी मिली है, लेकिन जीते हुए विधायकों के लिहाज से 25 फीसदी से ज्यादा प्रतिनिधित्व है. बिहार में मुस्लिम बेल्ट के लिहाज से देखें तो सबसे ज्यादा आबादी सीमांचल में है, जिसके चलते वहां दो मुस्लिम मंत्री बनाए गए हैं. चंपारण-मिथिलांचल-दक्षिण बिहार से एक-एक मुस्लिम मंत्री बने हैं. इस तरह बिहार के सभी मुस्लिम इलाकों को सियासी संदेश देने की कवायद की है. 

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ओवैसी के पांच विधायक जीते थे

बता दें कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिमों की सियासी हिस्सेदारी के नाम पर सीमांचल को राजनीतिक प्रयोगशाला बनाया था. ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने 20 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारे थे, जिनमें से 5 सीटों पर जीत मिली थी. यह सीटें अमौर, कोचाधाम, जोकीहाट, बायसी और बहादुरगंज सीट हैं. ये सभी सीटें सीमांचल के इलाके की हैं, जहां AIMIM से मुस्लिम विधायक बने थे. 

ओवैसी को निपटाने का प्लान?

ओवैसी के चलते सीमांचल में कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू जैसे दलों का मुस्लिम समीकरण बिगड़ गया था. ऐसे में जब बिहार में नीतीश का बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन के साथ सरकार बनाने का तानाबाना बुना जा रहा था, उसी दौरान आरजेडी ने ओवैसी के पांच में चार विधायक को अपने साथ मिला लिया. बायसी से सैयद रुकनुद्दीन अहमद, कोचाधामन से इजहार असफी, जोकीहाट से शाहनवाज आलम और बहादुरगंज से विधायक बने अंजार नईमी ओवैसी को छोड़कर आरजेडी में शामिल हो गए. अमौर से विधायक अख्तरुल इमान ही एकलौत एमएलए हैं, जो अब औवसे की साथ बचे हैं. 

वहीं, कांग्रेस और आरजेडी ने पूरी तरह से सीमांचल से ओवैसी का सियासी असर खत्म करने के लिए बड़ा दांव चला है. दोनों ही पार्टियों ने सीमांचल के आने वाले एक-एक मुस्लिम नेता को मंत्री बनाया है. AIMIM को छोड़कर आरजेडी में शामिल हुए शाहनवाज आलम ने मंत्री पद से नवाजा गया है. शाहनवाज सीमांचल के दिग्गज नेता रहे तस्लीमुद्दीन के बेटे और पूर्व सांसद सरफराज आलम के छोटे भाई हैं. अररिया से लेकर किशनगंज तक ही नहीं बल्कि सीमांचल में तस्लीमुद्दीन परिवार की सियासी तूती बोलती है. 

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सीमांचल में कांग्रेस ने चला दांव

सीमांचल को साधने के लिए एक तरह तेजस्वी यादव ने शाहनवाज आलम को मंत्री बनाकर बड़ा दांव चला है तो कांग्रेस ने भी सीमांचल में मुस्लिम वोटों के बीच अपनी पकड़ को बनाए रखने के लिए चार बार के विधायक आफाक आलम को मंत्री बनाया है. आफाक आलम पूर्णिया-कस्बा से आते हैं और जमीनी नेता के तौर पर उनकी पकड़ मानी जाती है. वह सीमांचल में बड़ा मुस्लिम चेहरा माने जाते हैं. यही वजह है कि कांग्रेस ने उन्हें मदन मोहन झा और अजीत शर्मा पर तरजीह दी है.

हालांकि, सीमांचल क्षेत्र से दो बार के कांग्रेस विधायक शकील अहमद का नाम भी मंत्री पद की रेस में था, लेकिन पार्टी ने आफाक आलम पर भरोसा जताया है. इसके अलावा नीतीश ने पूर्णिया से आने वाली लेसी सिंह को मंत्री बनाया है तो और मधुपुरा से चंद्रशेखर यादव को जगह दी है ताकि सीमांचल में ओवैसी की राजनीति के काउंटर किया जा सके. 

चंपारण-मिथिलांचल के मुस्लिमों को संदेश

बिहार में सीमांचल के बाद चंपारण का इलाका मुस्लिम बेल्ट माना जाता है, जहां पर मुस्लिम समाज काफी अहम भूमिका में है. इसीलिए तेजस्वी यादव ने चंपारण का ख्याल रखा है और मुस्लिम चेहरे को तौर पर शमीम अहमद को कैबिनेट में शामिल किया है. शमीम अहमद को गन्ना उद्योग मंत्री बनाया गया है. शमीम अहमद पूर्वी चंपारण के नरकटिया सीट से दूसरी बार विधायक हैं. इस तरह चंपारण के इलाके के मुस्लिम को सियासी संदेश देने की कोशिश तेजस्वी यादव की ओर से की गई है ताकि ओवैसी इस इलाके में अपने पैर न पसार सकें. 
 
सीमांचल और चंपारण की तरह मिथिलांचल इलाके में भी मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है. दरभंगा से लेकर मधुबनी और मुजफ्फरपुर तक मुस्लिम वोटर काफी अहम रोल में है. इसीलिए आरजेडी ने इसराइल मंसूरी को मंत्री बनाया है. बिहार में पहली बार धुनिया समाज से कोई नेता मंत्री और विधायक बना है. मुजफ्फरपुर की कांटी सीट से इसराइल मंसूरी विधायक हैं और मुस्लिम समुदाय के अत्यंत पिछड़े वर्ग से आते हैं. आजादी के बाद पहली बार मंसूरी समाज का कोई नेता विधानसभा पहुंचा है और कैबिनेट में जगह देकर मिथिलांचल के मुस्लिमों के साथ-साथ पसमांदा मुस्लिमों को भी साधने की कवायद की है. 

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दक्षिण बिहार में जेडीयू ने खेला मुस्लिम कार्ड

वहीं, दक्षिण बिहार से आने वाले जमा खान को नीतीश कुमार ने एक बार फिर से अपनी कैबिनेट में रखा है. जमा जेडीयू के कोट से मंत्री बने हैं. वह साल 2022 में कैमूर जिले के चैनपूर विधानसभा सीट से बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीते हैं. चुनाव जीतने के बाद उन्होंने जेडीयू का दामन थाम लिया और नीतीश ने उन्हें मंत्री भी बना दिया. नीतीश ने एनडीए सरकार में जमा खान को अल्पसंख्यक मंत्री बनाया था. अब एक बार फिर जमा खान को अल्पसंख्यक मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई है. फिलहाल जमा खान जेडीयू के एकलौते मुस्लिम चेहरा हैं. 

नीतीश के महागठबंधन में शामिल होने के बाद बिहार में विपक्ष का कुनबा एनडीए से काफी बड़ा हो गया है. नीतीश कुमार की अगुवाई वाले महागठबंधन में आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस, जीतन राम मांझी की पार्टी और वामपंथी पार्टियां शामिल हैं. ऐसे में यह कुनबा सामाजिक समीकरण के लिहाज से भी काफी बड़ा है. ऐसे में बिहार के जातीय समीकरण के लिहाज से देखें तो बिहार में गठबंधन के साथ मुसलमान भी पूरी तरह से आ सकते हैं और बिहार में अब ओवैसी के लिए बहुत जगह नहीं बची है. 

 

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