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ओवैसी की राजनीति ने बिगाड़े ‘सेकुलर’ दलों के समीकरण

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बिहार की कुछ सीटों पर जीत दर्ज कर मुस्लिमों को एक राजनीतिक विकल्प देने की कोशिश की है. बिहार चुनाव में मुस्लिम बहुल सीमांचल में मुसलमानों ने महागठबंधन के बजाय ओवैसी की AIMIM को तवज्जो दी है. AIMIM बिहार में भले ही 5 सीटें ही जीती हो, लेकिन इसे मुस्लिम सियासत के उदय के तौर पर देखा जा रहा है, जिसके चलते ओवैसी सेकुलर दलों के लिए गले की हड्डी बन गए हैं.

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AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी
AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ओवैसी की राजनीति ने मुस्लिमों को दिया विकल्प
  • ओवैसी की सियासत से सेकुलर दल चिंता में पड़ गए
  • AIMIM देश में राजनीतिक आधार बढ़ाना चाहती है

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने करीब ढाई दशक पहले हैदराबाद से जब अपनी राजनीतिक पारी शुरू की, तब किसी ने सोचा नहीं होगा कि आगे चलकर वो पूरे देश में मुस्लिम राजनीति का एक बड़ा चेहरा बन जाएंगे. ओवैसी की पार्टी ने बिहार में पांच सीटें जीतकर सबको चौंका दिया है. अब उनकी नजर बंगाल पर है. उनकी आक्रामक मुस्लिम राजनीति ने 'सेकुलर' दलों के सारे समीकरण उलट-पुलट दिए हैं. 

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असदुद्दीन ओवैसी ने पहले महाराष्ट्र और अब बिहार चुनाव में एंट्री मारकर मुस्लिमों को एक राजनीतिक विकल्प देने की कोशिश की. नतीजे बताते हैं कि उनकी इस कोशिश को हाथोहाथ लिया जा रहा है. बिहार चुनाव में मुस्लिम बहुल सीमांचल में मुसलमानों ने अपनी परंपरागत पार्टियों वाले महागठबंधन के बजाय ओवैसी की AIMIM को तवज्जो दी. AIMIM ने बिहार में भले ही 5 सीटें जीती हों, लेकिन इसे मुस्लिम सियासत के उदय के तौर पर देखा जा रहा है. खुद को सेकुलर कहने वाले दलों के लिए वो गले की हड्डी बन गए है. ये दल ओवैसी से हाथ मिलाएं या उनके खिलाफ लड़ें, उनका सियासी नुकसान तय है. 

ओवैसी की राजनीति से चिंतित 'सेकुलर' दल

बिहार में खुद को सेकुलर कहलाने वाली पार्टियां ओवैसी को 'बीजेपी की बी-टीम और 'वोट कटवा कह रही हैं, क्योंकि मुस्लिमों ने सीमांचल में AIMIM को ही वोट दिया. बिहार में तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन सत्ता की दहलीज तक पहुंचकर भी रुक गया तो उसकी एक बड़ी वजह असदुद्दीन ओवैसी को ही बताया जा रहा है. ओवैसी के राष्ट्रीय राजनीति में उभार को कांग्रेस और उसके साथी सेकुलर राजनीति के लिए खतरा बता रहे हैं. उनका तर्क है कि ओवैसी के मैदान में उतरने से बीजेपी विरोधी मतों का बंटवारा होता है, जिसका फायदा बीजेपी को ही मिलता है. 

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कांग्रेस महासचिव तारिक अनवर ने ओवैसी की पार्टी को पांच सीटें मिलने पर कहा था कि ये बिहार के लिए सही संकेत नहीं है. असदुद्दीन ओवैसी की राजनीति विशुद्ध सांप्रदायिक है. उनका उभरना बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश और लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. कांग्रेस को सभी कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ लड़ना होगा और जनता को समझाना होगा कि इनकी राजनीति देशहित में नहीं है. इस दिशा में हम लोग गंभीरता से काम कर रहे हैं.  

दूसरी ओर, असदुद्दीन ओवैसी इन आरोपों को खारिज करते हैं. उनका कहना है कि देश में कहीं से चुनाव लड़ना उनका लोकतांत्रिक अधिकार है और अपनी हार के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराने वाली पार्टियां बीजेपी को रोकने में समर्थ नहीं हैं. ओवैसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मुस्लिम वोट बांटने के आरोपों की परवाह उनकी पार्टी नहीं करती है और वे निश्चित रूप से दूसरे राज्यों में अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाएंगे. बिहार की कामयाबी हिंदुस्तान की सियासत में नई तारीख लिखेगी और दुनिया देखेगी AIMIM सारे हिंदुस्तान में अपना परचम लहराएगी. 

ओवैसी की राजनीति के केंद्र में मुसलमानों के साथ साथ दलित भी हैं. वह अक्सर 'जय भीम, जय मीम’ का नारा लगाते हैं. महाराष्ट्र में मुस्लिम-दलित एकता वाले राजनीतिक प्रयोग के तहत उन्होंने 'वंचित बहुजन अगाढ़ी के साथ गठबंधन किया. उनको सीट भले नहीं मिली लेकिन अंतिम नतीजों पर उनकी मौजूदगी का भरपूर असर दिखा. बिहार में उन्होंने सीटें भी जीत लीं और अब उनकी नजर बंगाल पर है.
 

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ओवैसी अपनी पार्टी के विस्तार में जुटे  

ओवैसी अब अपनी पार्टी AIMIM को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने के लिए फिक्रमंद हैं. इसके लिए चुनाव आयोग की तीन शर्त होती हैं, जिनमें से किसी एक को पूरा करना होता है. पहला-लोकसभा चुनाव में कम से कम तीन राज्यों से कुल सीटों की दो प्रतिशत सीट होनी चाहिए. दूसरा- पार्टी के पास चार लोकसभा सीट हों और चार राज्यों में कम से कम छह प्रतिशत वोट मिले हों जबकि तीसरा कम से कम चार राज्यों में उसे स्टेट पार्टी की मान्यता प्राप्त हो. इसी के मद्देनजर ओवैसी देश के तमाम राज्यों में अपनी सियासी आधार बढ़ा रहे हैं, लेकिन इससे सबसे बड़ी चिंता धर्म निरपेक्ष कहे जाने वाले दलों के सामने खड़ी हो गई है. 

ओवैसी अकेले चुनावी मैदान में उतरते हैं, तो मुस्लिम मतों को अपने पाले में लाकर सेकुलर दलों का सियासी खेल बिगाड़ देते हैं. अगर उन्हें मुस्लिम वोट नहीं भी मिलते तो वो अपनी राजनीति के जरिए ऐसा ध्रुवीकरण करते हैं कि हिंदू वोट एकजुट होने लगता है. सेकुलर दल अगर ओवैसी के साथ मैदान में उतरे तो इनपर मुस्लिम परस्त और कट्टरपंथी पार्टी के साथ खड़े होने का आरोप लगेगा जो मौजूदा दौर में राजनीति चौपट करने के लिए पर्याप्त है. 

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यह वजह है कि खुद ओवैसी बताते हैं कि बिहार चुनाव से पहले वे बड़ी पार्टियों के पास गठबंधन के लिए पहुंचे लेकिन किसी ने उन्हें भाव नहीं दिया. उन्हें चुनाव न लड़ने की नसीहत दी गई. ओवैसी को कहीं से भाव नहीं मिला तो उन्होंने बिहार में हाशिये पर पड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन किया और नतीजा सबके सामने है. उनकी नजर बंगाल पर है और विपक्ष के लिए ये बड़ी चिंता है क्योंकि ओवैसी की राजनीति के लिए बिहार के मुकाबले बंगाल की भूमि ज्यादा उर्वर नजर आती है.


 

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