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असम में कांग्रेस-AIUDF के साथ आने से बीजेपी का बिगड़ेगा खेल?

असम के कांग्रेस नेता तरुण गोगोई जिस बदरुद्दीन अजमल को सांप्रदायिक और उनकी पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट बीजेपी की बी टीम कहा करते थे. हालांकि, अब इन 14 सालों में ब्राह्मपुत्र नदी का बहुत पानी बह गया है. असम की सियासत में बहुत कुछ बदल गया है, यही वजह है कि कांग्रेस को एआईयूडीएफ के साथ हाथ मिलाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

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तरुण गोगोई और बदरुद्दीन अजमल
तरुण गोगोई और बदरुद्दीन अजमल
स्टोरी हाइलाइट्स
  • असम में 35 फीसदी मुस्लिम आबादी का 33 सीटों पर प्रभाव
  • AIUDF की मुस्लिम वोटों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है
  • कांग्रेस-AIDUF के साथ आने से बीजेपी के लिए टेंशन

असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता तरुण गोगोई जिस बदरुद्दीन अजमल को सांप्रदायिक और उनकी पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) को 'बीजेपी की बी टीम' कहा करते थे, उसी पार्टी से कांग्रेस ने हाथ मिला लिया है. 2006 में तो गोगोई ने अजमल के राजनीतिक अस्तित्व का मजाक उड़ाते हुए पूछा था, 'कौन है बदरुद्दीन अजमल?' हालांकि, अब इन 14 सालों में ब्राह्मपुत्र नदी का बहुत पानी बह गया है. पिछले कुछ सालों में असम की सियासत में बहुत कुछ बदल गया है, यही वजह है कि कांग्रेस को एआईयूडीएफ के साथ हाथ मिलाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. ऐसे में सवाल है कि क्या कांग्रेस और अजमल मिलकर बीजेपी के लिए असम में चुनौती खड़ी कर पाएंगे? 

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बता दें कि 2016 में बीजेपी ने असम में अन्य छोटे और नए दलों के साथ गठबंधन कर कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया था. यही वजह है कि अब असम में अगले साल 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने राजनीतिक समीकरण बनाने शुरू कर दिए हैं. बीजेपी को सियासी मात देने के लिए कांग्रेस भी गठबंधन के फॉर्मूले पर चलते हुए तमाम विपक्षी दलों के साथ हाथ मिलाने की कवायद में जुटी है. 

असम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रिपुन बोरा ने कहा कि एआईयूडीएफ महागठबंधन का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो गई है जबकि वामपंथी दल भी गठबंधन में शामिल होने के बारे में सैद्धांतिक तौर पर सहमति दे चुके हैं. वहीं, एआईयूडीएफ के महासचिव अमीनुल इस्लाम ने भी माना है कि उनकी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई विचार-विमर्श कर चुके हैं और महागठबंधन में शामिल होने का भी फैसला पार्टी ने कर लिया है. इसका मतलब साफ है कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर सामंजस्य बना चुका है. 

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AIUDF की राजनीतिक हैसियत
AIUDF ने असम में बहुत तेजी से पांव पसारे हैं. इत्र कारोबारी बदरुद्दीन अजमल AIUDF के प्रमुख हैं. अवैध घुसपैठियों की पहचान करने के नाम पर मुसलमानों को उत्पीड़न से बचाने के लिए उन्होंने 2005 में अपनी पार्टी का गठन किया था. 15 साल के भीतर अजमल ने असम की राजनीति में अपनी अहम जगह बना ली है. बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ने असम में मुस्लिमों को अपनी पार्टी की ओर खींचा है और अब उसका आधार भी बढ़ गया है. असम के मुस्लिम मतदाताओं के बीच एआईयूडीएफ का अच्छा खासा जानाधार है. 
2006 के असम विधानसभा चुनाव में AIUDF ने 126 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से 10 सीटें जीती थीं.  2011 के चुनाव में उसने 18 सीटें जीतकर विधानसभा में प्रमुख विपक्षी पार्टी बन गई.  2016 के चुनाव में  AIUDF 13 सीटें जीतने में कामयाब रही. 2019 के लोकसभा चुनाव में असम की कुल 14 में से कांग्रेस महज तीन सीटें ही जीत सकी. जबकि AIUDF को दो सीटें मिली थीं. इससे पहले 2014 में AIUDF के तीन सांसद जीते थे.

2014 के बाद कांग्रेस असम में कमजोर हुई 
दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस और एआईयूडीएफ के बीच 2019 के लोकसभा चुनाव में ही गठबंधन की नींव पड़ गई थी, उस भक्त भले ही वो एक साथ मिलकर चुनाव न लड़े हों. 2019 के चुनाव में तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई के खिलाफ एआईयूडीएफ ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था. इसी का नतीजा था कि गौरव गोगोई कलियाबोर सीट से चुनाव जीत गए. ऐसे ही मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस को साइलेंट समर्थन अजमल ने दिया था. 

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2014 के लोकसभा चुनाव से बाद से असम में कांग्रेस का राजनीतिक ग्राफ गिरा है. कांग्रेस को निकाय और ग्राम पंचायत चुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा है. 2019 के चुनावों में कांग्रेस को तीन सीटें मिलीं, राज्य में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था. 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 26 सीटें जीतीं, जो उसके सबसे खराब प्रदर्शनों में से एक थी. कांग्रेस असम में बहुसंख्यक हिंदू वोटों को खोने की चिंता के चलते एआईयूडीएफ से बचती रही है. लेकिन असम में 35 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जिनकी AIUDF पसंद बनती जा रही है. मुस्लिम वोटों के बिखराव को बचाने के लिए दोनों एक साथ हाथ मिला रहे हैं.

सीएए के खिलाफ असम में विरोध  
असम में एनआरसी के बाद मोदी सरकार के सीएए कानून लाने के बाद राज्य में हिंसक आंदोलन खड़ा हो गया था. सीएए के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जानी है, जिसे लेकर असम के लोग सड़क पर उतर आए थे. वो किसी भी शरणार्थी को नागरिकता देने के पक्ष में नहीं है. बीजेपी के लिए यह चिंता का सबब बन गया था, लेकिन कोरोना के चलते यह आंदोलन खत्म हो गया.

 
सीएए की वजह से असमिया भाषी लोगों में बीजेपी विरोधी मूड को भांपते हुए, कांग्रेस को लगता है कि एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन उतना नुकसानदायक नहीं होगा जितना कि अतीत में हो सकता है. राज्य में 36 विधानसभा क्षेत्र हैं जहां असमिया भाषी लोग चुनावी फैसले तय करते हैं. एआईयूडीएफ इन सीटों पर दावेदार नहीं है, यहां सीधी लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी गठबंधन के बीच है. 

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कांग्रेस-AIUDF के साथ आने का फायदा
2016 में इन 26 में से कांग्रेस को महज चार सीटें ही मिली थी, ऐसे में अब पार्टी को उम्मीद है कि उसका आधार इस बार बढ़ जाएगा. वहीं, कांग्रेस-एआईयूडीएफ गठबंधन 33 मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों पर वोटों के बंटवारे को रोकने में कामयाब रहता है तो एक बड़ी सफलता उनके हाथ लग सकती है. इस तरह से दोनों के साथ आने के असम की आधी सीटों पर बीजेपी को कड़ी टक्कर मिल सकती है. असम के कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत कहते हैं कि सारी पुरानी बातें हम भूलकर नए तरीके से राजनीतिक समीकरण बना रहे हैं ताकि चुनाव में बीजेपी को मात दे सकें.


AIUDF को बीजेपी की बी टीम के सवाल पर रावत ने कहा कि ब्राह्मपुत्र नदी का पानी बहुत बह गया है. समय ने सभी राजनीतिक दलों को भी बदल दिया है. AIUDF ने खुद को बदल दिया है और उसने अपने काम करने के तरीके में भी बदलाव किया है. ऐसे में हम सिर्फ AIUDF ही नहीं बल्कि असम में समान विचारधारा वाले तमाम राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के साथ समझौता कर बीजेपी विरोधी मोर्चा खड़ा कर रहे हैं, जिसके जरिए असम और पूर्वोत्तर की संस्कृति का संरक्षण कर सकें. 


 

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