पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के अगुवाई में तीसरी बार सरकार बनने के बाद से बीजेपी को एक के बाद एक बड़ा सियासी झटका लग रहा है. मोदी सरकार में केंद्रीय जहाजरानी राज्य मंत्री शांतनु ठाकुर का बीजेपी से मोहभंग हो गया है, जिसके चलते उन्होंने बंगाल बीजेपी वॉट्सऐप ग्रुप छोड़ दिया है. ऐसे में अगर शांतनु ठाकुर की नाराजगी दूर नहीं हुई और उन्होंने पार्टी को अलविदा कह दिया तो बंगाल में मतुआ समाज के बीच पार्टी का सियासी आधार भी खिसक सकता है.
दरअसल, पश्चिम बंगाल बीजेपी संगठन में फेरबदल हुआ है. हाल ही में दिलीप घोष की जगह सुकांता मजूमदार को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. ऐसे में सुकांता मजूमदार ने 23 दिसंबर को प्रदेश कार्यकारिणी का गठन किया, जिसमें प्रदेश समिति सदस्यों, जिला अध्यक्ष, जिला प्रभारी, विभाग प्रभारी और विभाग संयोजकों की संशोधित सूची में मतुआ समुदाय को तवज्जो नहीं दी गई और न ही कोई बड़ी जिम्मेदारी मिली है.
लगता है हमारी कोई भूमिका नहीं- शांतनु
बंगाल बीजेपी संगठन में मतुआ समुदाय को अहमियत न दिए जाने से शांतनु ठाकुर नाराज हैं, क्योंकि वो मतुआ समुदाय से आते हैं. ऐसे में उन्होंने बीजेपी वॉट्सऐप ग्रुप छोड़ने के बाद मीडिया से कहा कि ऐसा लगता है राज्य के बीजेपी नेतृत्व को नहीं लगता कि संगठन के भीतर हमारी (मतुआ की) कोई महत्वपूर्ण भूमिका है. उन्होंने साफ किया है कि जल्द ही अपने 'भविष्य' के बारे में फैसला लेंगे.
शांतनु के साथ 5 विधायकों ने भी छोड़ा ग्रुप
पश्चिम बंगाल के बनगांव के सांसद शांतनु ठाकुर अखिल भारतीय मतुआ महासंघ के संघ अध्यक्ष भी हैं. ऐसे में शांतनु ठाकुर के साथ-साथ पांच बीजेपी विधायकों ने भी पार्टी का वॉट्सऐप ग्रुप छोड़ दिया है. इसमें मुक्तमणि अधिकारी, सुब्रत ठाकुर, अंबिका रॉय, अशोक कीर्तानिया और आसिम सरकार हैं, जिन्हें इस बार पार्टी संगठन में जगह नहीं दी गई है. पांचों विधायकों ने शांतनु ठाकुर के साथ बैठक भी की है.
मतुआ समुदाय ने बढ़ाया बीजेपी का ग्राफ
बता दें कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी भले ही सत्ता में नहीं आ सकी है, लेकिन 3 से 77 सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी दल जरूर बन गई है. बंगाल में बीजेपी का सियासी ग्राफ बढ़ने में मतुआ समुदाय की भूमिका अहम रही है. मतुआ समुदाय के वोटों के लिए पीएम मोदी ने 2021 विधानसभा चुनाव के बीच शांतनु ठाकुर के साथ बांग्लादेश का दौरा किया था. मोदी ओराकांडी मंदिर गए थे, जहां मतुआ समुदाय के संस्थापक हरिशचंद्र ठाकुर का जन्म हुआ था. ऐसे में पीएम के बांग्लादेश दौरे पर उस समय टीएमसी ने भी सवाल खड़े किए थे.
2021 के विधानसभा चुनाव से पहले 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान मतुआ समाज ने बीजेपी को एकमुश्त वोट दिए थे, जिसमें बीजेपी ने सीएए कानून लागू करने का वादा किया था. मतुआ समुदाय के वोटों के दम पर ही बीजेपी लोकसभा में 16 और विधानसभा में 77 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. सीएए लागू करने में हो रही देरी के चलते टीएमसी ने मतुआ इलाकों में अपनी सियासी जमीन तलाशना शुरू कर दिया है.
वहीं, शांतनु ठाकुर ने मतुआ समुदाय से जुड़े मुद्दों को लेकर आक्रामक रुख अपना लिया है. इससे पहले भी वो मतुआ समाज के मुद्दों पर मुखर रहे हैं. केंद्रीय नेतृत्व की भूमिका पर नाराजगी जताई है. 29 दिसंबर 2020 को ठाकुर ने गृहमंत्री अमित शाह से कहा था कि केंद्र को नागरिकता संशोधन कानून को लेकर अपना मत साफ करना चाहिए. मतुआ समुदाय से जुड़े वादे को बीजेपी अमलीजामा पहनाए. ऐसे में उन्होंने जिस तरह से संगठन में मतुआ समुदाय को जगह न दिए जाने को लेकर नाराजगी जाहिर की है, उससे बीजेपी के लिए चिंता बढ़ सकती है.
मतुआ समुदाय का बंगाल में असर
बंगाल में लगभग एक करोड़ अस्सी लाख मतुआ मतदाता हैं. उत्तर 24 परगना का ठाकुर नगर इनका गढ़ है. प्रदेश की 294 विधान सभा सीटों में से लगभग 40 सीट पर मतुआ समुदाय प्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव रखते हैं. उत्तर 24 परगना, नदिया और दक्षिण 24 परगना में जिले की हैं. इसके अलावा 20 ऐसी सीट हैं, जहां मतुआ समुदाय का अप्रत्यक्ष प्रभाव है. ये सीट हुगली जिले के अलावा उत्तर बंगाल के कूचबिहार और आसपास के इलाकों में हैं. 2021 के चुनाव नतीजे को देखें तो बीजेपी ने इन जिलों में प्रदेश के दूसरे हिस्सों से बेहतर नतीजे हासिल किए हैं.
अखिल भारतीय मतुआ महासंघ के संघ अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर की नाराजगी बीजेपी दूर करने में सफल नहीं होती है तो पार्टी के लिए बंगाल में चिंता बढ़ सकती है. शांतनु ठाकुर को टीएमसी लेने के लिए तैयार दिख रही. वहीं, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांता मजूमदार उन्हें मना लेने का दावा कर रहे हैं. ऐसे में बीजेपी अगर शांतनु को साधने में सफल नहीं होती और वो टीएमसी में शामिल होते हैं तो मतुआ समाज के बीच भी सियासी आधार भी पार्टी का खिसक सकता है?