पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में सबसे हाई-प्रोफाइल सीट नंदीग्राम में टीएमसी छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले शुभेंदु अधिकारी ने CM ममता बनर्जी को पराजित कर दिया है. इससे शुभेंदु अधिकारी का सियासी कद काफी बढ़ गया है. हालांकि उनका परिवार अपने प्रभाव वाले इलाकों में बीजेपी को एकतरफा जीत नहीं दिला पाया है.
करीब 50 सीटों पर असर माना जा रहा था
पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने प्रचंड जीत दर्ज की है, लेकिन बहुचर्चित सीट नंदीग्राम से ममता बनर्जी 1956 वोटों से चुनाव हार गईं. इससे शुभेंदु अधिकारी और उनके परिवार को कद काफी बढ़ गया है.
शुभेंदु की लोकप्रियता और संगठनात्मक क्षमता इतनी है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा की करीब 50 सीटों पर चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकने की बात कही जा रही थी. पश्चिम मिदनापुर, बांकुरा और पुरुलिया जिले में टीएमसी की सियासी जमीन तैयार करने में शुभेंदु अधिकारी की अहम भूमिका रही है.
शुभेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर जिले के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता शिशिर अधिकारी 1982 में कांथी दक्षिण से कांग्रेस के विधायक थे, लेकिन बाद में वे टीएमसी को खड़ी करने वालों में से एक हैं.
लेकिन यह परिवार अपने प्रभाव वाले इलाकों में पूरी तरह से टीएमसी का तिलिस्म तोड़ नहीं पाया है और इनके प्रभाव वाले करीब 50 विधानसभा सीटों में करीब 50 फीसदी सीटें तृणमूल कांग्रेस ने हासिल कर ली हैं. यही नहीं मेदिनीपुर लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो बीजेपी यहां की 7 सीटों में से बमुश्किल एक सीट मिल पाई है.
चुनाव के पहले ही बीजेपी में आए
गौरतलब है कि शुभेंदु पहले तृणमूल कांग्रेस में थे और चुनाव से कुछ महीने पहले ही भाजपा में शामिल हुए थे. उनके पिता शिशिर भी तृणमूल कांग्रेस से ही सांसद थे और 21 मार्च को ही भाजपा में शामिल हुए हैं. शुभेंदु के पिता के अलावा उनके भाई दिव्येंदु अधिकारी भी विधायक थे और अब सांसद हैं. उनका भी इलाके में काफी असर है.
बताया जाता है कि नंदीग्राम में जमीन को लेकर जो आंदोलन शुरू हुआ था, उसमें शुभेंदु ने काफी लोगों को एकजुट किया था. तृणमूल कांग्रेस को इसका लाभ भी मिला. शुभेंदु अधिकारी ने पर्यटन मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था और बाद में बीजेपी में शामिल हो गए.
शुभेंदु अधिकारी 2009 से ही कांथी सीट से तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं और उनके दूसरे भाई भी 2009 में विधायक रह चुके हैं. शिशिर अधिकारी तीसरी बार सांसद हैं और ऐसे में उनकी राजनीतिक प्रभाव को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है.
उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं
साल 2016 में उनके प्रभाव वाले इलाके की 49 सीटों में से टीएमसी ने 36 सीटें जीत ली थीं. लेकिन इस बार ऐसी ही सफलता वो बीजेपी को नहीं दिला पाए. इनमें से करीब 50 फीसदी सीटें टीएमसी ने अपने पास बरकरार रखी हैं.
तामलुक सीट पर भी तृणमूल कांग्रेस का उम्मीदवार जीत गया है, जबकि यहां से शुभेंदु के भाई दिव्येंदु सांसद हैं. यही नहीं मेदिनीपुर लोकसभा क्षेत्र की बात करें में तो यहां की 7 सीटों में से बमुश्किल एक सीट मिल पाई है.