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बिहार में स्पीकर को हटाने पर अड़े नीतीश कुमार, क्या राज्यसभा में बीजेपी लेगी 'बदला'?

बिहार में सियासी परिवर्तन के बाद विधानसभा स्पीकर विजय सिन्हा को पद से हटाने के लिए महागठबंधन अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी, लेकिन उससे पहले ही विजय सिन्हा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. ऐसे में बीजेपी बिहार का बदला क्या राज्यसभा में जेडीयू कोटे से बने उपसभापति हरिवंश सिंह से लेगी?

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नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी
नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी

बिहार में सियासी परिवर्तन के बाद सबकी नजर एक तरफ विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा के अगले कदम पर थी तो दूसरी तरफ राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह पर भी टिकी है. महागठबंधन ने विधानसभा स्पीकर को लेकर अविश्वास प्रस्ताव पत्र जारी किया है तो विजय सिन्हा ने इस्तीफा न देकर विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने का फैसला किया था. हालांकि, उन्होंने बुधवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. वहीं, हरिवंश सिंह ने अपने पद से इस्तीफा नहीं देने की घोषणा कर बीजेपी को उलझा दिया है. ऐसे में बीजेपी विजय सिन्हा का बदला क्या राज्यसभा में हरिवंश को उपसभापति पद से हटाकर लेगी? 

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विजय सिन्हा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव

बता दें कि साल 2020 में विजय कुमार सिन्हा विधानसभा में स्पीकर के लिए JDU-BJP गठबंधन वाली सरकार में चुने गए थे, लेकिन अब बिहार में सरकार बदल गई है. बिहार की सत्ता पर महागठबंधन की सरकार काबिज है तो वो चाहती है कि सिन्हा स्पीकर पद छोड़ दें. ऐसे ही सितंबर 2020 में राज्यसभा उपसभापति के लिए जेडीयू नेता हरिवंश सिंह चुने गए थे, लेकिन बिहार के सियासी परिवर्तन के बाद उन्होंने भी पद नहीं छोड़ने का ऐलान किया था.

बदली सियासी परिस्थितियों में नीतीश-तेजस्वी के अगुवाई वाली महागठबंधन सरकार ने बिहार विधानसभा स्पीकर को पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाकर अपनी रणनीति साफ कर दी है. इसके साथ विजय सिन्हा ने इस्तीफा न देकर 241 सदस्यों वाले सदन में 164 सदस्यों के बहुमत वाले सत्तापक्ष का सामना करेंगे. विजय सिन्हा ने कहा था कि मेरे खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, लेकिन मैंने खुद पर विश्वास रखा. हालांकि, उन्होंने आखिरकार अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. 

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संसदीय कार्य मंत्री और JDU नेता विजय कुमार चौधरी ने  स्पीकर के इस्तीफा से पहले निशाना साधा था. वह बोले थे कि इस परिस्थिति में अध्यक्ष पद छोड़ देते हैं. लोकसभा में भी ऐसा होता आया है. अभी जो अध्यक्ष हैं वे पुराने गठबंधन के आधार पर हैं, अब गठबंधन बदल गया है. ऐसे में स्पीकर को खुद ही अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ तब अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है. 

विधानसभा के आंकड़े सिन्हा के खिलाफ

बिहार विधानसभा के आंकड़ों को देखते हुए साफ है कि स्पीकर विजय कुमार सिन्हा सदन में अविश्वास प्रस्ताव को पास नहीं कर पाएंगे. बिहार में कुल 242 विधायक हैं. ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 122 है. महागठबंधन को 164 विधायकों का समर्थन है तो बीजेपी के पास 77 ही विधायक हैं. ऐसे में साफ है कि विजय कुमार सिन्हा अविश्वास प्रस्ताव हार जाएंगे. इस बात को जानते हुए भी नंबर गेम उनके पक्ष में नहीं है फिर भी विजय सिन्हा ने स्पीकर पद से इस्तीफा नहीं दिया और वो अविश्वास प्रस्ताव का सामना करेंगे. 

विजय कुमार सिन्हा द्वारा स्पीकर पद से इस्तीफा न देने के बजाय सदन में अविश्वास प्रस्ताव का सामने करने के पीछे सियासी तौर पर कहीं राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश सिंह का इस्तीफा न देना तो नहीं है. हरिवंश सिंह के राज्यसभा उपसभापति पद नहीं छोड़ने के ऐलान से सियासी बेचैनी और उत्सुकता बढ़ गई है कि बीजेपी उन्हें लेकर अब क्या कदम उठाती है. 

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हरिवंश को लेकर बीजेपी ने नहीं खोले पत्ते

बीजेपी के सामने हरिवंश को पद से हटाने का एक ही रास्ता अविश्वास प्रस्ताव लाने का बनता है. ऐसे में बीजेपी क्या हरिवंश को हटाने के लिए जेडीयू-आरजेडी की तरह अविश्वास प्रस्ताव लाएगी या फिर उन्हें बनाए रखेगी. बिहार में नीतीश कुमार के अगुवाई वाले महागठबंधन ने विधानसभा स्पीकर विजय कुमार सिन्हा को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव का दांव चल दिया है, लेकिन राज्यसभा के उपसभापति पद से हरिवंश सिंह को लेकर बीजेपी ने कोई पत्ता नहीं खोला और न ही उन्हें हटाने का कोई संकेत दे रही है. 

हालांकि, बतौर उपसभापति हरिवंश अपनी कार्यशैली को लेकर लगातार विपक्ष के निशाने पर रहे हैं. खासतौर से कृषि क्षेत्र से जुड़े तीन विवादास्पद बिल पारित करने के मामले में हरिवंश समूचे विपक्ष के निशाने पर रहे. ऐसे में बदली परिस्थितियों में इस मामले में विपक्ष सरकार से दो-दो हाथ करने के लिए एकजुट हो सकता है. इस बहाने विपक्ष अपनी एकता का परीक्षण भी कर सकता है. संसद का शीतकालीन सत्र नवंबर-दिसंबर में होना है. ऐसे में लंबा वक्त होने के कारण दोनों पक्ष हड़बड़ी में नहीं हैं. 

दरअसल, सदन चलाने के लिए उपसभापति का पद बेहद अहम होता है. पहले बीजेपी को लगा था कि जेडीयू के बीजेपी के साथ छोड़ने के बाद हरिवंश सिंह अपने पद से खुद ही इस्तीफा दे देंगे. हालांकि, जेडीयू ने हरिवंश को पद से इस्तीफा नहीं देने के लिए कहा है. ऐसे में भाजपा के पास अनुच्छेद 90 सी के तहत हरिवंश को उपसभापति पद से हटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. इसके लिए पार्टी को बहुमत की जरूरत है, मगर पार्टी के पास उच्च सदन में सहयोगियों को मिलाकर भी बहुमत हासिल नहीं है.

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राज्यसभा का संख्या बल 

वर्तमान समय की बात करें तो उच्च सदन में 237 सदस्य हैं, जिनमें से आठ पद खाली हैं उनमें चार जम्मू कश्मीर और एक त्रिपुरा की सीट है, जबकि तीन सदस्यों का मनोनीत कोटे के बाकी है. शीतकालीन सत्र तक तीन सदस्यों के मनोनयन और त्रिपुरा की सीट भरी जा चुकी होगी. ऐसे में उच्च सदन के सदस्यों की संख्या 241 और बहुमत का आंकड़ा 122 होगा. इनमें बीजेपी के पास मनोनीत सदस्यों और सहयोगियों के साथ पक्ष वाले सांसदों की संख्या 116 होगी. ऐसे में बहुमत से छह कम होंगे जबकि दूसरी ओर विपक्ष के पास 107 सांसदों का संख्या बल होगा. 

सत्तापक्ष और विपक्ष के पास नंबर गेम नहीं है. ऐसे में जीत का दारोमदार बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस पर होगा. इन दोनों दलों ने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति चुनाव के साथ कई अहम बिल पारित कराने में एनडीए का साथ दिया है. लेकिन, नीतीश के महागठबंधन में वापसी के बाद अब ये दोनों विपक्षी दल किसके साथ खड़े होंगे, ये भी देखने वाली बात होगी. 

2008 में लोकसभा में आई थी नौबत

साल 2008 में यही स्थिति लोकसभा में उत्पन्न हुई थी. वामपंथी दलों ने मनमोहन सिंह के अगुवाई वाली यूपीए-एक सरकार के समर्थन वापस लेने के बाद सोमनाथ चटर्जी को स्पीकर पद छोड़ने का निर्देश दिया था. हालांकि, सोमनाथ चटर्जी ने इस निर्देश को यह कहकर मानने से इनकार कर दिया था कि बतौर स्पीकर वह इस समय किसी पार्टी के सदस्य नहीं हैं. इसके बाद माकपा ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था. जेडीयू भी कह रही है कि हरिवंश सिंह संवैधानिक पद पर है, जिसके चलते उन्हें किसी भी दल से न जोड़ा जाए. हालांकि, हरिवंश सिंह की निष्ठा जेडीयू के साथ है यह बात भी छिपी नहीं है. ऐसे में हरिवंश सिंह ने अभी तक इस्तीफा न देकर बीजेपी को उलझन में डाल दिया है. 

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बीजेपी क्या बीजेडी पर खेलेगी दांव?

जेडीयू के एनडीए से अलग होने के बाद अब बीजेपी अगर हरिवंश सिंह को हटाने का फैसला करती है तो उसके सामने वाईएसआर कांग्रेस और बीजेपी में से एक का समर्थन हासिल करना अनिवार्य होगा. ऐसे में अगर बीजेपी इस दिशा में कदम बढ़ाती है तो बीजेपी ने बीजेडी को उपसभापति का पद देकर विपक्ष की रणनीति को धराशाई कर सकती है. हालांकि पार्टी के पास वाईएसआर कांग्रेस का भी विकल्प है. बीजेपी इस बहाने विपक्ष को एकजुट होने का कोई सियासी मौका नहीं देना चाहेगी. ऐसे में देखना है कि विजय सिन्हा के बाद हरिवंश सिंह के मामले में बीजेपी क्या सियासी दांव चलेगी? 


 

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