
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार की महागठबंधन सरकार ने महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए थे. किसकी कितनी आबादी है, ये बताते हुए नीतीश सरकार अपनी पीठ ठोक रही थी. तब बीजेपी ने सधी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूरी रिपोर्ट जारी करने की मांग की थी. अब, जब नीतीश सरकार विधानसभा में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रिपोर्ट पेश कर रही थी तब विपक्ष ने हंगामा कर दिया. हंगामे के बीच जो चीजें छनकर सामने आई हैं, उनके मुताबिक सामान्य वर्ग में गरीबी का स्तर 26 फीसदी के करीब है.
ओबीसी की जनसंख्या और हिस्सेदारी को लेकर बहस के बीच जातिगत सर्वे की रिपोर्ट को लेकर विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के रुख की भी चर्चा हो रही है. विधानसभा में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट पेश किए जाने पर बीजेपी के हंगामे के बाद अब ये चर्चा शुरू हो गई है कि इस मुद्दे पर फूंक-फूंककर कदम बढ़ाती आई कमल निशान वाली पार्टी ने क्या इसका तोड़ तलाश लिया है?
इस सवाल की जड़ में केवल विधानसभा के भीतर बीजेपी का रुख ही नहीं, अमित शाह का बयान भी है. दरअसल, गृह मंत्री अमित शाह पांच नवंबर को बिहार के मुजफ्फरपुर में थे. मुजफ्फरपुर से नीतीश सरकार पर हमला बोलते हुए शाह ने कहा कि पिछड़ा और अति पिछड़ा समाज को ये बताने आया हूं कि जातिगत सर्वे केवल छलावा है. उन्होंने ये भी कहा कि बीजेपी ने जातिगत सर्वे का समर्थन किया था लेकिन हमें नहीं पता था कि लालू यादव के दबाव में मुसलमानों और यादवों की आबादी बढ़ा दी जाएगी और पिछड़ों के साथ अन्याय होगा.
अमित शाह ने साथ ही लालू यादव के जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी भागीदारी के नारे को लेकर भी तंज किया. उन्होंने कहा था कि अब क्या लालू यादव अति पिछड़ा को मुख्यमंत्री बनाएंगे? अमित शाह के बयान के बाद सुशील मोदी ने तो जातिगत जनगणना के आंकड़े वार्ड और पंचायत स्तर पर जारी करने की मांग कर दी थी. अमित शाह का यादव-मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाकर दिखाने का आरोप और सुशील मोदी की पंचायत और वार्ड स्तर पर आंकड़े जारी करने की मांग, इन दोनों को जातिगत जनगणना के मुद्दे पर भ्रम की स्थिति बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
बीजेपी की मजबूती ही हिंदू वोट बैंक है. हिंदू वोट के जातियों में बंटने का सीधा अर्थ है बीजेपी को नुकसान. बीजेपी का पैतृक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदुओं को एकजुट करने के लिए जातिगत भेदभाव भूल जाने की वकालत करता रहा है, उसे देखते हुए भी बीजेपी का किसी भी जातिगत सर्वे के पक्ष में खड़ा होना मुश्किल है. आरजेडी-जेडीयू और अब तक इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी भी इसीलिए जातिगत जनगणना की मांग जोरशोर से उठा रही है क्योंकि उसे इसमें बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति की काट नजर आती है. बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना की मांग खारिज करती रही है. हां, सीएम नीतीश के नेतृत्व में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जब इस मांग को लेकर पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने दिल्ली पहुंचा था, तब जरूर उसमें बिहार बीजेपी के नेता भी शामिल थे. इसकी भी दो वजहें बताई जाती हैं. एक ये कि सूबे में तब बीजेपी नीतीश की पार्टी के साथ सत्ता में थी और दूसरी वजह स्थानीय राजनीति और सामाजिक संरचना के मिक्सअप को बताया जाता है जिसमें विरोध की स्थिति में नुकसान का खतरा अधिक था.
ये भी पढ़ें- बिहार में सिर्फ 7% ग्रेजुएट, सवर्णों में 25% परिवार गरीब... जातिगत जनगणना के आर्थिक आंकड़े आए सामने
बीजेपी राजनीतिक मजबूरियों की वजह से भले ही न इधर ना उधर खड़ी हो पाई हो, पार्टी का स्टैंड जातिगत जनगणना के विरोध में ही रहा है. अब अमित शाह का ताजा बयान और सुशील मोदी की मांग भी पार्टी के इसी बीच का रास्ता वाले फॉर्मूले पर अगले कदम की तरह देखा जा रहा है. शाह का मुसलमानों की आबादी जानबूझकर बढ़ाने का आरोप हिंदू अस्मिता की बुनियाद पर अपने पक्ष में हिंदू वोटों को लामबंद करने की बीजेपी की रणनीति का हिस्सा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जातिगत आकंड़े सामने आने के बाद छत्तीसगढ़ की एक चुनावी जनसभा में कहा था कि सबसे अधिक हिंदू हैं. तो क्या बहुसंख्यक हिंदू अपना हक ले लें?
क्या कहते हैं 2001 और 2011 की जनगणना के आंकड़े?
बिहार सरकार के जातिगत सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक सूबे में 81.99 फीसदी हिंदू हैं और 17.70 फीसदी मुसलमान. संख्या के लिहाज से देखें तो 13 करोड़ की आबादी में मुस्लिमों की जनसंख्या 2 करोड़ 31 लाख 49 हजार 925 है.
ये भी पढ़ें- 'जातीय सर्वे छलावा है, इसमें मुसलमानों और यादवों की आबादी बढ़ाकर दिखाई गई', नीतीश पर शाह का वार
साल 2011 की जनगणना के आंकड़े देखें तो सूबे की कुल 10 करोड़ 38 लाख की आबादी में 82.69% हिंदू और करीब 16.87% मुसलमान थे. आबादी के लिहाज से मुस्लिम आबादी तब 1 करोड़ 76 लाख थी. 2001 की जनगणना में बिहार में हिंदू आबादी 83.3% और मुस्लिम आबादी 16.5% थी. मुस्लिम आबादी की ही बात करें तो इसकी कुल आबादी में भागीदारी 2001 के 16.5% से बढ़कर 2011 में 16.87% पहुंच गई थी. अब 12 साल बाद आए ताजा आंकड़े देखें तो इसमें एक फीसदी से भी कम का इजाफा नजर आता है.
बिहार तक की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ साल में मुसलमानों की आबादी बढ़ी तो है लेकिन 10 साल के आंकड़े देखें तो इसकी रफ्तार 1% से भी कम रही है. सवाल ये भी उठ रहे हैं कि बिहार में मुसलमानों की आबादी अगर बढ़ाकर 17.70% दिखाई गई है तो सही आंकड़ा क्या है? कहा तो ये भी जा रहा है कि मुस्लिमों की आबादी को लेकर बीजेपी फंस गई है. अगर उसके दावे के मुताबिक मुस्लिम आबादी नहीं बढ़ी है और इसका अनुपात उसके आसपास ही है जितना 2011 की जनगणना में था तो मुसलमानों पर आबादी बढ़ाने का आरोप लगा सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानून की वकालत करने वाले नेताओं का क्या?
क्या है आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में
भूमिहार जाति के 27.58 फीसदी भूमिहार परिवार गरीब हैं. ब्राह्मण परिवार 25.32 फीसदी, राजपूत 24.89 फीसदी, कायस्थ 13.83 फीसदी, शेख 25.84 फीसदी, पठान (खान) 22.20 फीसदी और सैयद परिवारों में गरीबी का स्तर 17.61 फीसदी है. कुल मिलाकर सामान्य वर्ग में गरीबी की बात करें तो 25.9 फीसदी परिवार गरीब हैं.
ये भी पढ़ें- '...तो BJP देश में जातीय गणना क्यों नहीं कराती', तेजस्वी यादव का अमित शाह पर पलटवार
आय की बात करें तो सामान्य वर्ग में करीब 25 फीसदी आबादी की मासिक आय छह हजार, 23 फीसदी आबादी की मासिक आय 6 से 10 हजार के बीच और 19 फीसदी आबादी की मासिक आय 10 से 20 हजार रुपये के बीच है. ओबीसी की बात करें तो छह हजार तक मासिक आय वाले परिवारों की तादाद 33 फीसदी, 6 से 10 हजार आय वाले वाले परिवारों की तादाद 29 फीसदी है. 18 फीसदी ओबीसी आबादी की आय 10 से 20 हजार और 10 फीसदी आबादी की आय 20 से 50 हजार रुपये प्रति माह है.