
देश की राजनीति इन दिनों हिंदुत्व के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष के तकरीबन सभी दल हिंदुत्व के एजेंडे पर अपने कदम बढ़ाते नजर आ रहे हैं. बस फर्क इतना है कि कोई हार्ड हिंदुत्व पर चल रहा तो कोई सॉफ्ट हिंदुत्व पर. कांग्रेस हिंदू को हिंदुत्व से अलग बताती है जबकि बीजेपी दोनों को एक ही मानती है. ऐसे में अब जैसे-जैसे 2024 के लिए सियासी तस्वीर साफ हो रही है, वैसे-वैसे तमाम दल हिंदुत्व को लेकर अपना-अपना एजेंडा सामने रख रहे हैं.
बीजेपी अयोध्या में भव्य राम मंदिर के उद्घाटन से उम्मीदें पाले हुए है तो राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तक हिंदुत्व को लेकर अलग-अलग रणनीति अपना रही है. कमलनाथ के मंच पर कथावचक, बजरंग सेना की उपस्थिति और जय श्रीराम का उद्घोष तो रामगमन पथ पर भूपेश बघेल के बढ़ते कदम बताते हैं कि 2024 के सियासी रण में उतरने वाली कांग्रेस पहले की कांग्रेस से अलग वर्जन वाली होगी, जिसमें हिंदुत्व का पुट तो होगा होगा ही सॉफ्ट हिंदुत्व पर अलग रणनीति होगी. ऐसे में सवाल उठता है कि 'सॉफ्ट बनाम हार्ड हिंदुत्व' की सियासत में आखिर क्या फर्क है?
हिंदू और हिंदुत्व के मायने?
हिंदू और हिंदुत्व में शाब्दिक समानता के चलते पर्यायवाची होने का बोध होता है, लेकिन दोनों शब्दों को अलग-अलग तरह से देखा जाता है. हिंदू एक फारसी शब्द है, जो सिंधु से बना है. ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को 'हिन्दू' नाम दिया. सिंधु नदी के आसपास और उससे आगे भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले लोगों को हिंदू मानते हैं. आर्य सिद्धांत और धर्म का अनुयायी हिंदू है.
हिंदू और हिंदुत्व में क्या अंतर
हिंदू को धर्म के नजर से देखें तो यह भारत का प्राचीन धर्म है, जिसमें बहुत सारे संप्रदाय हैं. संप्रदायों को मानने वाले व्यक्ति अपने हिंदू कहते हैं. हिंदुत्व शब्द हिंदुओं के आचार-विचार, हिंदू होने के गुण, हिंदू धर्म के भाव से जुड़ा है, लेकिन हिंदुत्व क्या है? इसकी राजनीतिक विचारधारा के तौर पर व्याख्या सावरकर ने अपनी किताब 'हिंदुत्व' में की है. हालांकि, कुछ लोग तर्क देते हैं कि हिंदू एक जीवनशैली है, जो समावेशी है और वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित है. हिंदू एक पहचान है, जीने का तरीका है.
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं कि हिंदू को भौगोलिक नजरिए से देखा जाता है. हिमालय और हिंद महासागर के बीच की जमीन पर रह रहे लोगों को हिंदू कहा जाता है. यह एक भौगोलिक पहचान है और यह हिंदुस्तान में चलता है. यह किसी धर्म के बारे में नहीं बल्कि जमीन के बारे में है. आरएसएस भी मानता है कि हिंदुस्तान में रहने वाले सभी हिंदू हैं, जिनमें ईसाई, मुस्लिम, हिंदू, बौद्ध और सिख सभी शामिल हैं. सावरकर के नजर से देखें तो जिन लोगों को धर्म में विश्वास नहीं है, वो हिंदू नहीं है.
विजय त्रिवेदी कहते हैं कि सावरकर की हिंदू की परिभाषा के मुताबिक हिन्दू वो हैं, जो भारत को अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानते हैं. इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति जो सिन्धु से समुद्र तक फैली भारत भूमि को साधिकार अपनी पितृभूमि और पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है. सावरकर की इस थ्योरी से मुस्लिम और ईसाई हिन्दू के दायरे से बाहर हो जाते हैं, क्योंकि उनका विश्वास हिंदू धर्म में नहीं है.आगे वह कहते हैं कि हिंदू, हिंदुत्व और हिंदुइज्म एक दूसरे के जुड़े हैं, लेकिन हिंदुत्व को जिस तरह राजनीति का एक औजार और सत्ता पाने का जरिया माना गया है, उसके चलते हिंदू और हिंदुत्व को अलग-अलग तरह से देखा जाता है.
हिंदुत्व को लेकर संघ क्या मानता है
वहीं, आरएसएस के सह-सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने इसी संबंध में 2019 में एक लेख में लिखा था कि 'हिंदू या हिंदुत्व' होना सभी भारतीयों की पहचान बन गया है.आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार ने इस हिंदुत्व को सभी भारतीयों के बीच एकता की भावना को जगाने के लिए एक माध्यम बनाया. उन्हें उनकी जाति, क्षेत्र, धर्म और भाषा से ऊपर उठाकर एक-दूसरे से जोड़ा. पूरे समाज को हिंदुत्व के इस सूत्र से बांधकर संगठित कर रहा. संघ विचारक राकेश सिन्हा अपने एक लेख में कहते हैं कि हिंदू अस्तित्व की पहचान है कि आप अपनी आस्था से, जन्म से, मन से हिंदू हैं. लेकिन अपनी पहचान के प्रति सजग होना और उसके प्रति चेतना का विकास होना हिंदुत्व है.
क्या है भाजपा का हार्ड हिंदुत्व?
बीजेपी सिर्फ हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीकों को लेकर नहीं चलती बल्कि आक्रामक तरीके से हिंदुत्व के मुद्दे पर खड़ी नजर आती है. राम मंदिर के मुद्दे से लेकर मथुरा और काशी तक का बीजेपी न सिर्फ अपने भाषणों में जिक्र नहीं करती है बल्कि अपने घोषणा पत्र में भी शामिल करती है. विजय त्रिवेदी बताते हैं कि बीजेपी को दूसरी पार्टियों से अपने आपको अलग दिखाने के लिए हिंदुत्व के एजेंडे पर आक्रमक चलना उनकी मजबूरी थी, क्योंकि उस समय सभी दल मुस्लिम वोटों के लिए सेकुलर पालिटिक्स कर रहे थे. ऐसे में बीजेपी ने हिंदुत्व को एक राजनीतिक टूल के तौर पर इस्तेमाल किया, इसके लिए चाहे नार्थ में अयोध्या, मथुरा, काशी हो या फिर दक्षिण में राम सेतु.
बीजेपी ने हिंदुत्व की पालिटिक्स को धार देने के लिए हिंदू धर्म के प्रतीकों का बाखूबी तरीके से इस्तेमाल किया है. अयोध्या में राममंदिर के लिए लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकालकर घर-घर इस मुद्दे को पहुंचाया तो पीएम मोदी ने बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी को कॉरिडोर का निर्माण कराकर संवारा. इसके अलावा गाय और धर्मांतरण को भी लेकर बीजेपी हमेशा से मुखर रही है. इस तरह बीजेपी ने खुद को हिंदू परस्त पार्टी के तौर पर स्थापित किया है, जिसके चलते उत्तर प्रदेश में एक भी मुस्लिम को विधानसभा और लोकसभा का टिकट नहीं देती. बीजेपी हार्ड हिंदुत्व विचारधारा वाले लोगों के पक्ष में मजबूती के साथ खड़ी रहती है.
क्या है कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व?
कांग्रेस ने अपने राजनीतिक एजेंडे में बड़ा बदलाव किया है और बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व के जवाब में सॉफ्ट हिंदुत्व का राह पर चलती दिख रही है. कांग्रेस कई राज्यों में सॉफ्ट हिंदुत्व पर फोकस कर बीजेपी के सामने राजनीतिक चुनौतियां खड़ी कर रही है. गुजरात से कांग्रेस का शुरू हुआ सॉफ्ट हिंदुत्व का कारवां राज्य दर राज्य आगे बढ़ता जा रहा है.
कांग्रेस 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में सॉफ्ट हिंदुत्व का प्रयोग कर चुकी, जहां राहुल गांधी मंदिर-मंदिर जाकर माथा टेक रहे थे और पूजा अर्चना कर रहे थे. यही ही नहीं खुद को जनेऊधारी ब्राह्मण भी बता रहे थे. राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक देश के अलग-अलग शहरों में मंदिर में पूजा अर्चना करते नजर आते हैं. यूपी में प्रियंका गांधी ने प्रयागराज के हनुमान मंदिर से लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्जन करती हुई दिखती है.
बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस हिंदुत्व की पैरौकार बनी
राहुल गांधी के सॉफ्ट हिंदुत्व की दिशा में कदम बढ़ाए जाने के बाद मध्य प्रदेश में कमलनाथ और छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने उस और भी आगे बढ़ाते नजर आ रहे हैं. कमलनाथ ने पिछली बार हर गांव में गौशाला बनाने से लेकर राम गमन पथ बनवाने का काम किया. इस बार कमलनाथ ने रामनवमी पर भगवान राम का कथा वाचन, रामलीला व उनकी पूजा-अर्चना के साथ हनुमान जयंती पर सुंदरकांड, हनुमान चालीसा के पाठ कराने का काम किया. कमलनाथ गाहे-बगाहे खुद को हनुमान भक्त कहते हैं. उन्होंने हनुमान की मंदिर भी बनवाया है. मध्य प्रदेश का कांग्रेस दफ्तर भगवा रंग में रंगा भी नजर आता है.
कमलनाथ, पंडित प्रदीप मिश्रा और बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री के कार्यक्रमों में प्रत्यक्ष और परोक्ष शिरकत करते हैं. चुनावों के मद्देनजर पार्टी ने अहम फैसले किए हैं, जैसे मंदिर पुजारी प्रकोष्ठ बनाना, मंदिर की जमीन पर मालिकाना हक दिलाने का वादा है. पार्टी के धर्म-उत्सव प्रकोष्ठ की अध्यक्ष कथावाचक ऋचा गोस्वामी हैं, जो पार्टी के लिए धार्मिक कार्यक्रम कर रही हैं. हाल ही में हिंदुवादी संगठन बजरंग सेना ने कांग्रेस में अपना विलय कर दिया है. कमलनाथ खुलकर कहते हैं कि गर्व से कहो कि मैं हिंदू हूं और वह खुद को हनुमान भक्त बताते हैं.
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल ने उठा रखा झंडा
छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल भी सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलते हुए नजर आते हैं. बघेल सरकार ने राज्य में तीन दिन का रामायाण फेस्टिवल कार्यक्रम अयोजित कराया. इस दौरान हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ और महा आरती भी कराई गई. बघेल सरकार ने राम वन गमन पथ के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी. भगवान राम की महाकाव्य यात्रा के सार को कुशलता से जोड़ा है. साथ ही भगवान राम की माता को समर्पित प्राचीन माता कौशल्या मंदिर का भव्य निर्माण और कौशल्या महोत्सव कराने का काम किया. इसके अलावा गाय के गोबर और गोमूत्र की खरीद के लिए योजना भी शुरू कर रखी है.
कर्नाटक में कांग्रेस का हिंदुत्व दांव सफल
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस खुलकर हिंदुत्व की सियासत करती नजर आई है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे खुले मंच से नारा लगा रहे थे- 'बजरंग बली तोड़ दे दुश्मन की नली'. कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने राज्य में हनुमान मंदिर बनाने का वादा चुनाव में किया. इसके लिए एक विशेष बोर्ड का गठन किया जाएगा, जो हनुमान मंदिर के निर्माण और इसकी देखरेख सुनिश्चित करेगा. उन्होंने कहा था कि हमारी पार्टी राज्य के विभिन्न हिस्सों में नए हनुमान मंदिर के निर्माण को प्राथमिकता देगी. वहीं, राजस्थान में भी कांग्रेस की गहलोत सरकार सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल रही है.
कांग्रेस-बीजेपी के बीच बेसिक अंतर क्या है?
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं कि हिंदुत्व की सियासत पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच काफी अंतर है. बीजेपी खुलकर हिंदुत्व की सियासत करती है तो कांग्रेस हिंदुत्व की राह पर चलती तो है, लेकिन उसे जाहिर करने से बचती है. बीजेपी हिंदुत्व के प्रतीक, मुद्दे और एजेंडे को लेकर सिर्फ चलती ही नहीं बल्कि आक्रमक तरीके से उठाती भी है, उस तरह कांग्रेस नहीं चल सकती है. बीजेपी की पूरी सियासत हिंदुत्व के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. वो हिंदुत्व के एजेंडे पर कितना कामय रहती है, उस पर बहस हो सकती है, लेकिन उस तरह से कोई दूसरी पार्टी राजनीति नहीं करती है.
विजय त्रिवेदी कहते हैं कि कांग्रेस की मुस्लिम वोटों की मजबूरी है. यही वजह है कि कांग्रेस यह कहने का हिम्मत नहीं जुटा पाती है कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ताला राजीव गांधी ने खुलवाया था. बीजेपी अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का श्रेय लेने से भी गुरेज नहीं करती है जबकि फैसला सु्प्रीम कोर्ट से आया है. बीजेपी के एजेंडे में मुस्लिम वोटर नहीं है जबकि कांग्रेस मुस्लिमों के साथ भले ही न खड़ी हो, लेकिन उससे दूर भी नहीं जाना चाहती है. इसीलिए बीजेपी हार्ड और कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति करती है.
हालांकि, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जयपुर में हिंदू और हिंदुत्व पर बयान देते हुए कहा था महात्मा गांधी हिंदू थे और नाथूराम गोडसे हिंदुत्ववादी थे. यही हिंदू और हिंदुत्व के बीच का अंतर है. हिंदुत्व का हिंदू से कोई लेना देना नहीं है. हिंदू सत्य को ढूंढता है और सबको साथ लेकर चलने की बात करता है. हिंदू मर जाए, कट जाए, पिस जाए, लेकिन सच के मार्ग से अलग नहीं होता. उसका रास्ता सत्याग्रह है. वे इन्हीं रीति-नीति, समाज व्यवस्था, धर्म पर विश्वास और उसका पालन करता है. हिंदू धर्म इसी पर इतनी सदियों से टिका और प्रखर रहा, लेकिन हिंदुत्व सिर्फ राजनीतिक औजार और सत्ता पाने का जरिया है.
कांग्रेस को क्यों सॉफ्ट हिंदुत्व की जरूरत पड़ी?
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं कि 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से देश का राजनीतिक पैटर्न पूरी तरह से बदल गया है. देश में अब बहुसंख्यक (हिंदू) समाज केंद्रित राजनीति हो गई है और इस फॉर्मूले के जरिए बीजेपी लगातार चुनाव जीत रही है. कांग्रेस लंबे समय तक 15 फीसदी मुस्लिम वोटों पर फोकस राजनीति करती रही है और 20 से 25 फीसदी बहुसंख्यक समुदाय के वोटों को लेकर सत्ता में आती रही है, लेकिन नरेंद्र मोदी के आने के बाद यह नेरेटिव बदल गया है.
वह कहते हैं कि बीजेपी ने कांग्रेस को मुस्लिम परस्त पार्टी के तौर पर स्थापित कर दिया है. इसी टैग को हटाने और अपनी छवि को बदलने के लिए कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राजनीति की तरफ कदम बढ़ाया है ताकि बहुसंख्यक यानि हिंदू वोटों के बीच अपनी पैठ जमा सके. मुस्लिम वोट 2014 के बाद से आप्रसंगिक हो गया है. यही वजह है कि देश में कोई भी पार्टी मुस्लिमों के साथ उनके मुद्दों पर भी खड़े होने से परहेज कर रही है.
हालांकि, देश में सिर्फ मुस्लिम वोटों के सहारे कुछ सीटें तो जीती जा सकती हैं, लेकिन सत्ता नहीं पाई जा सकती है. बीजेपी हिंदुत्व कार्ड खुलकर खेल रही है और विपक्षी दलों पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाती रही है. बीजेपी मोदी और योगी जैसे हिंदुत्व के चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ रही है, जिसके सामने विपक्षी दलों को मुस्लिम सियासत करने में बहुसंख्यक हिंदू वोटरों के ध्रुवीकरण होने का साफ खतरा दिख रहा है. यही वजह है कि कांग्रेस हो या फिर दूसरे क्षेत्रीय दल सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलने के लिए मजबूर हुए हैं.
कांग्रेस किस राज्य में सॉफ्ट हिंदुत्व पर काम कर रही है?
कांग्रेस ने अपनी मुस्लिम परस्त छवि को तोड़ने के लिए उन राज्यों में फोकस किया, जहां बीजेपी लंबे समय से अपनी जड़े जमाए हुए है और वहां पर सीधा मुकाबला उससे ही है. ऐसे में कांग्रेस खासकर उत्तर भारत के मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात और उत्तर प्रदेश में भी सॉफ्ट हिंदुत्व पर काम कर रही है. इसके अलावा कर्नाटक में भी कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चल रही है.
बीजेपी ने इन तमाम राज्यों में सत्ता में रहते हुए हिंदुत्व की जड़ें काफी गहरे तौर पर जमा रखी हैं. ऐसे में कांग्रेस को हिंदुत्व की रास्ते पर चले बैगर बीजेपी से मुकाबला करना आसान नहीं है. इसीलिए कांग्रेस इन राज्यों में मंदिरों में जाने से लेकर हिंदू प्रतीकों की सियासत करती हुई नजर आ रही है. राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी तक मंदिरों में दर्शन और पूजा अर्चना करते हुए नजर आते हैं ताकि उन्हें और उनकी पार्टी को मुस्लिम परस्त के तौर पर न देखा जाए.
कांग्रेस का सॉफ्ट और बीजेपी का हार्ड हिंदुत्व?
कांग्रेस कर्नाटक में भगवान बजरंग बली की मंदिर बनवाने का वादा करती है तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ पूरी तरह से हिंदुत्व की रंग में रचे बसे नजर आ रहे हैं. हनुमान मंदिर से लेकर पार्टी दफ्तर तक को भगवा रंग में रंग दिया है. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार राम वन गमन पथ से लेकर माता कौशल्या मंदिर का भव्य निर्माण कराती है. वह गाय के गोबर और मूत्र की खरीदारी करती हुई नजर आ रही है. राहुल गांधी मंदिर-मंदिर दर्शन कर रहे हैं तो प्रियंका गांधी भी गंगा स्नान करने से लेकर मंदिर में पूजा अर्चना करती हुई अक्सर नजर आती हैं.
बीजेपी का हार्ड हिंदुत्व का उदाहरण देखें तो अयोध्या में राम मंदिर यानी हिंदू धार्मिक स्थल को सजाने और संवारने का श्रेय ले रही है. लव जिहाद करने वालों के खिलाफ सख्त कानून बना रखा है तो गोहत्या के लिए भी कड़ा कानून बीजेपी शासित राज्यों में है. बीजेपी नेता मुस्लिम प्रतीकों से दूरी बनाकर रखते हैं, न तो जालीदार टोपी लगाए नजर आते हैं और न ही दरगाहों पर माथा टेकते हुए दिखते हैं. बीजेपी अयोध्या, मथुरा और काशी के एजेंडे पर खुलकर अपनी बात रखती है.
कांग्रेस-बीजेपी के हिंदुत्व के चेहरे कौन हैं
कांग्रेस और बीजेपी के बीच सॉफ्ट बनाम हार्ड हिंदुत्व की पालिटिक्स हो रही है, लेकिन दोनों ही पार्टियों के तरफ से कुछ चेहरे हैं, जो इस मुद्दे पर सबसे आगे की पंक्ति में खड़े दिखते हैं. बीजेपी के पास हिंदुत्व के चेहरे के तौर नरेंद्र मोदी से लेकर सीएम योगी आदित्यनाथ तक मौजूद हैं. इसके अलावा मध्य प्रदेश में उमा भारती और साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जैसी नेता हैं तो बिहार में गिरिराज सिंह हैं. ऐसे ही दूसरे राज्यों में भी बीजेपी के पास हिंदुत्व के फायर बिग्रेड नेता हैं.
बीजेपी के हिंदुत्व फेस के सामने कांग्रेस ने ऐसे छत्रपों को आगे किया है, जिनकी छवि हिंदुत्व वाले नेता की रही, लेकिन हार्डकोर हिंदुत्व की नहीं है. बीजेपी के हार्ड हिंदुत्व वाली सियासत को काउंटर करने के लिए कांग्रेस अपने तमाम नेताओं को आगे किया है. कांग्रेस में हिंदुत्व की सियासत करते हुए सबसे आगे कमलनाथ नजर आते हैं. उसके बाद छत्तीगढ़ में भूपेश बघेल तो राजस्थान में अशोक गहलोत हैं. कर्नाटक में डीके शिवकुमार हिंदुत्व का चेहरा बनकर उभरे हैं तो प्रियंका गांधी शुरू के ही हिंदुत्व के इर्द-गिर्द अपनी सियासत को रखे हुए हैं. यूपी में आचार्य प्रमोद कृष्णम सॉफ्ट हिंदुत्व का कांग्रेस चेहरा हैं. मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने खुद खुद के साथ-साथ कथावाचक ऋचा गोस्वामी को भी साथ लिए हुए हैं.