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मुस्लिमों को बीजेपी के करीब लाएंगे 'मोदी मित्र', हर सीट पर 5000 का टारगेट!

देश की सत्ता में बीजेपी ने लगातार तीसरी बार काबिज होने के लिए हरसंभव कोशिश तेज कर दी है. बीजेपी की नजर विपक्ष के मजबूत मुस्लिम वोटबैंक पर है, जिसमें सेंधमारी के लिए खास प्लान बनाया है. मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्रों में मुसलमानों को मोदी मित्र बनाने का अभियान बीजेपी शुरू करने जा रही है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुसलमानों के साथ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुसलमानों के साथ

आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी मुस्लिम समुदाय के दिलों में अपनी जगह बनाने की कवायद शुरू करने जा रही है. देश की मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटों पर बीजेपी ने मुसलमानों को 'मोदी मित्र' बनाने की रणनीति बनाई है. ईद के बाद बीजेपी का अल्पसंख्यक मोर्चा इस अभियान का आगाज करेगा. इसके लिए पार्टी ने मुस्लिम इलाके और सीटों की पहचान कर ली है, जहां मोदी मित्र बनाने हैं. ऐसे में देखना है कि मोदी मित्र के बहाने बीजेपी क्या 2024 में मुस्लिमों के बीच अपनी पैठ बना पाएगी?

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बीजेपी का गांव-गांव घर-घर अभियान
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के दिल्ली प्रदेश के प्रभारी आतिफ रशीद ने aajtak.in को बताया कि हमलोग देशभर में मुस्लिमों के साथ जनसंपर्क अभियान शुरू कर रहे हैं ताकि पार्टी के साथ मुसलमानों को भी जोड़ा जा सका. 'गांव-गांव घर-घर' चलो अभियान शुरू कर रहे हैं, जिसके जरिए पसमांदा मुस्लिमों के घर-घर में जाकर मोदी सरकार की नीतियों, योजनाओं और कार्यों से अवगत कराएंगे. इसके साथ ही मुसलमानों को 'मोदी मित्र' बनाने की भी रणनीति बनाई गई है, जिसमें सभी स्तर के मुस्लिमों पर फोकस किया जाएगा. 

हर एक सीट पर 5 हजार का टारगेट
आतिफ रशीद ने बताया कि हर विधानसभा क्षेत्र और लोकसभा क्षेत्र में ऐसे तमाम मुस्लिम समुदाय के लोग मिल जाएंगे, जो किसी भी पार्टी से जुड़े नहीं हैं. वो न ही बीजेपी के सदस्य हैं, न ही कांग्रेस या अन्य किसी पार्टी के, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी की नीतियों से जरूर प्रभावित हैं. ऐसे लोग हर क्षेत्र में 5 से 10 हजार लोग मिल जाएंगे. इन्हीं मुस्लिमों के 'मोदी मित्र' बनाने का कार्यक्रम शुरू करने जा रहे हैं. इसके लिए पार्टी ने उन जगहों की पहचान की है, जहां मुस्लिमों की आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है.

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आतिफ रशीद ने बताया कि देश के अलग-अलग राज्यों की करीब 65 लोकसभा सीटों की पहचान की गई है, जहां 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. इन लोकसभा सीटों पर 5 हजार मुस्लिमों को तलाशा जाएगा, जो इनफ्लुएंसर्स की भूमिका निभा सकते हों. ये लोग बीजेपी के नहीं होंगे. अलबत्‍ता, वे होंगे जिन्‍हें मोदी सरकार की वेलफेयर स्कीम का फायदा हुआ है या फिर प्रधानमंत्री के कामों से प्रभावित हैं. 

डॉक्टर से प्रोफेसर तक पर नजर
उन्होंने कहा कि ये डॉक्‍टर, इंजीनियर, सोशल वर्कर, जर्नलिस्‍ट, प्रोफेसर कोई भी हो सकते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो ये लोग राजनीतिक एक्टिविस्ट नहीं होंगे हैं, लेकिन समाज पर प्रभाव डालने की ताकत रखते हैं. इन्हें पार्टी से जोड़ने के लिए 'मोदी मित्र' बनाएंगे ताकि मोदी सरकार के संदेश और नीतियों को मुसलमानों के बीच अच्छे तरीके से डिलीवर कर सकें. हर एक लोकसभा में मोदी मित्र बनाएंगे और फिर हर एक लोकसभा सीट पर उनका सम्मेलन करने की योजना है.

बीजेपी का मुस्लिम पसमांदा सम्मेलन

देश में 14 फीसदी मुस्लिम आबादी

बता दें कि देश में मुसमलानों की आबादी 14 फीसदी है, जो सियासी तौर पर काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से बीजेपी इस कोशिश में लगी है कि मुसलमानों के बीच अपनी जगह बनाए, लेकिन मुस्लिमों का दिल अभी तक नहीं पसीजा है. बीजेपी इस बात को बखूबी जानती है कि अगर वह इस समुदाय को भी अपने साथ जोड़ ले तो उसके लिए आगे का रास्‍ता और भी आसान हो जाएगा. इसीलिए बीजेपी मुस्लिमों के दिल में जगह बनाने के लिए कई तरह से काम कर रही है. पसमांदा मुस्लिमों को फोकस करने के से लेकर सूफी सम्मेलन और शिया मुस्लिमों को भी जोड़ने की कवायद कर रही है. 

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मुस्लिम बहुल सीटों पर खिला कमल
देश भर की कुल 543 लोकसभा सीटों में से 80 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से अधिक है जबकि 65 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 20 फीसदी से ज्यादा वाली कुल 80 सीटों में से 58 सीटों पर जीत हासिल की थी और 22 सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा था. वहीं, 17वीं लोकसभा में 27 सीटों पर मुस्लिम सांसद चुनकर आए थे. बीजेपी को मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत 2014 से मिलनी शुरू हुई, जिसके पीछे पीएम मोदी का चेहरा और अमित शाह की रणनीति मानी जाती है. 

मुस्लिमों के कितने प्रतिनिधित्व?
2011 की मतगणना के अनुसार, देश में करीब 14 फीसदी आबादी मुस्लिम हैं. यानी अनुपात के हिसाब से संसद में कम से कम 76 मुस्लिम सांसद होने चाहिए. संसद में सबसे अधिक मुस्लिम सांसद 1980 में संसद पहुंचे थे, जिनकी संख्या भी सिर्फ 49 ही थी. उसके बाद से अब तक ये आंकड़ा गिरता ही गया. 2014 में 23 मुस्लिम सांसद जीते थे, जबकि 2019 में यह संख्या बढ़कर 27 पर पहुंच गई. यूपी में सबसे ज्यादा 6 मुस्लिम सांसद चुनकर आए थे. बीजेपी इन सभी मुस्लिम बहुल सीटों पर फोकस कर रही है.

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किन लोकसभा सीटों पर फोकस?
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा ने मुसमलानों को 'मोदी मित्र' बनाने के लिए जिन 65 मुस्लिम बहुल लोकसभा सीटों की पहचान की, जिसमें उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से 13-13 सीटें शामिल की गई हैं. जम्मू-कश्मीर से पांच, बिहार से चार, केरल और असम से छह-छह, मध्य प्रदेश से तीन, तेलंगाना और हरियाणा से दो-दो और और महाराष्ट्र और लक्षद्वीप से एक-एक सीट शामिल हैं. इन सीटों पर बीजेपी के साथ-साथ आरएसएस से जुड़े 'राष्ट्रीय मुस्लिम मंच' मुसलमानों के साथ 'संवाद और संपर्क' कर रहा है. 

मुस्लिम बहुल संसदीय सीटें
पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में बहरामपुर में 64 फीसदी, जंगीपुर में 60 फीसदी, मुर्शिदाबाद 59 फीसदी और जयनगर में 30 फीसदी है. बिहार की किशनगंज में 67 फीसदी, कटिहार में 38 फीसदी, अररिया में 32 फीसदी और पूर्णिया में 30 फीसदी है. केरल की वायनाड में 57 फीसदी, मलप्पुरम में 69 फीसदी, पोन्नानी में 64 फीसदी, कोझिकोड में 37 फीसदी, वडकरा 35 फीसदी और कासरगोड में 33 फीसदी. यूपी में मुस्लिम बहुल रामपुर में 49.14 फीसदी, बिजनौर में 38.33 फीसदी, अमरोहा में 37.5 फीसदी, कैराना में 38.53 फीसदी, नगीना में 42 फीसदी, संभल में 46 फीसदी और  मुजफ्फरनगर में 37 फीसदी सीटें है. बीजेपी इन्हीं मुस्लिम बहुल सीटों पर जीत का परचम फहराना चाहती है. हालांकि, ऐसे में देखने होगा कि मुस्लिम समाज बीजेपी से जुड़ने में कितनी दिलचस्‍पी दिखाता है.

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