देश की सत्ता में लगातार तीसरी बार काबिज होने को बेताब भारतीय जनता पार्टी ने अभी से मिशन-2024 की तैयारी शुरू कर दी है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बुधवार को पार्टी संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनावी समिति की घोषणा कर दी है. पार्टी की सबसे पावरफुल माने जानी वाली दोनों ही समितियों से कुछ बड़े चेहरों की छुट्टी कर दी गई है तो कुछ नए नेताओं की जगह दी है. शिवराज सिंह चौहान और नितिन गडकरी को हटाकर बीजेपी ने सिर्फ खाली पदों को नहीं भरा है बल्कि उससे आगे बढ़कर काम किया है. इस तरह बीजेपी ने नई टीम से पांच बड़े सियासी संदेश देने की कोशिश की है?
बीजेपी की पावरफुल कमेटी का गठन
बीजेपी ने बुधवार को पार्टी संसदीय बोर्ड का ऐलान किया और साथ ही नई केंद्रीय चुनाव समिति का भी गठन किया है. पार्टी की यह दोनों ही कमेटियां सबसे अहम मानी जाती है. बीजेपी के संसदीय बोर्ड में पीएम नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह, अमित शाह, बीएस येदयुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया और बीएल संतोष को जगह मिली है.
वहीं, बीजेपी केंद्रीय चुनाव समिति का भी ऐलान किया गया है, जिसमें संसदीय बोर्ड के सदस्यों के अलावा भूपेंद्र यादव, देवेंद्र फडणवीस, ओम माथुर, वनथी श्रीनिवास को भी जगह मिली है. इस तरह केंद्रीय चुनाव समिति से शाहनवाज हुसैन, जोएल ओराम को भी नई समिति में जगह नहीं मिली है जबकि संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह की छुट्टी कर दी है.
1- बीजेपी का 2024 पर फोकस
बीजेपी ने अपने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में फेरबदल कर 2024 के चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछा दी है. बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने सुषमा स्वराज, अरुण जेटली के निधन, एम वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति और थावरचंद गहलोत को राज्यपाल बनाए जाने से खाली पड़े पदों को सिर्फ नहीं भरा है बल्कि 2024 के चुनाव को देखते हुए उससे आगे बढ़कर काम किया है. दोनों ही समिति में ऐसे नेताओं की जगह दी गई है, जिसके जरिए सियासी संदेश देने के साथ-साथ सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन भी बनाने की कोशिश की गई है.
बीजेपी में संगठन के लिहाज से दोनों ही पावरफुल कमेटियां मानी जाती हैं, जो संगठन ही नहीं बल्कि बीजेपी के चुनाव और सत्ता में आने पर मंत्रिमंडल के गठन में अहम भूमिका होती है. बीजेपी में आठ साल के बाद और 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक डेढ़ साल पहले दोनों कमेटियों का गठन किया गया है ताकि समय रहते रणनीति बनाई जा सके और जमीनी स्तर पर भी संदेश दिया जा सके.
2. बीजेपी का ओबीसी पर दांव
बीजेपी ने संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति के जरिए अपने सियासी आधार को मजबूत करने का दांव चला है. 2014 के बाद से बीजेपी का पूरा फोकस उच्च जातियों के साथ-साथ ओबीसी और दलित मतदाताओं पर है. बीजेपी अपने ओबीसी वोटबैंक को और भी मजबूत करने के लिए संसदीय बोर्ड में तीन नेताओं को जगह दी है. संसदीय बोर्ड में पीएम मोदी, ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष के. लक्ष्मण, बीजेपी ओबीसी मोर्चा की पूर्व प्रभारी सुधा यादव को शामिल किया गया है. पार्टी की चुनाव समिति में भूपेंद्र यादव को रखा गया है.
बीजेपी ने अपनी हाई प्रोफाइल कमेटियों में दो यादव समुदाय के नेताओं को एंट्री देकर साफ संकेत दिए हैं कि उसकी नजर हरियाणा और राजस्थान के यादव समुदाय को नहीं बल्कि यूपी की सपा और बिहार की आरजेडी के कोर वोटबैंक को अपने पाले लाने की रणनीति है. ओबीसी में सबसे बड़ी आबादी यादव समाज की है, जिन्हें बीजेपी अपने साथ जोड़ने की कवायद कर रही है. इसी मद्देनजर यादव को जगह दी गई है तो साथ ही ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष के. लक्ष्मण को जगह दी गई, जो तेलंगाना से आते हैं और यूपी से राज्यसभा सदस्य हैं.
3. पूर्वोत्तर से साउथ तक साधने का प्लान
बीजेपी ने अपनी दोनों कमेटियों में पूर्वोत्तर से लेकर पश्चिम और दक्षिण भारत तक साधने की कवायद की गई है. पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद से बीजेपी का पूरा फोकस पूर्वोत्तर के राज्यों पर रहा है. यही वजह है कि बीजेपी के संसदीय बोर्ड में असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को जगह मिली है. वहीं, दक्षिण भारत से कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा, तेलंगाना से के. लक्ष्मण और तमिलनाडु से वनथी श्रीनिवास को जगह मिली है. इसके अलावा पश्चिमी क्षेत्र से देखें तो महाराष्ट्र के डिप्टीसीएम देवेंद्र फडणवीस को केंद्रीय चुनाव समिति में रखा गया है. गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह खुद आते हैं.
पूर्वोत्तर और हिंदी बेल्ट वाले राज्यों में मजबूती से अपने पैर जमाने के बाद बीजेपी का अब फोकस नए इलाकों पर है. ऐसे में बीजेपी की कोशिश दक्षिण भारत के राज्यों में अपने सियासी आधार को मजबूत करने की है. कर्नाटक में बीजेपी का दबदबा कायम है तो आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु पर नजर है. बीजेपी ने अपनी हाई प्रोफाइल कमेटियों में दक्षिण भारत के लोगों जगह देकर एक बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की है. इसके अलावा पीएम मोदी लगातार दक्षिण का दौरा कर रहे हैं.
4. नए चेहरों पर भरोसा, दिग्गज आउट
बीजेपी ने अपनी संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति गठन में आठ साल पुराने फॉर्मूले को आजमाया है. 2014 में अमित शाह बीजेपी के अध्यक्ष बने थे तो उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज नेताओं को संसदीय बोर्ड से हटाकर मार्गदर्शक मंडल में रखा था. इसी तरह से दोनों ही कमेटियों से पार्टी ने अपने दिग्गज नेताओं की हटाकर नए चेहरों को भरोसा जताया है. बीजेपी संसदीय बोर्ड में फेरबदल में शिवराज सिंह चौहान नितिन गडकरी को हटा दिया गया है. ऐसे ही केंद्रीय चुनाव समिति से शाहनवाज हुसैन और जोएल ओराम की छुट्टी हो गई है. इस बार बीजेपी ने मार्गदर्शक मंडल समिति को लेकर कोई एलान नहीं किया गया.
नए चेहरे को तौर पर गडकरी की जगह देवेंद्र फडणवीस को लाया गया है तो थवरचंद गहलोत की जगह दलित चेहरे के तौर पर सत्यनारायण जटिया को जगह मिली है. इसके अलावा संसदीय बोर्ड में बीएस येदयुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा और सुधा यादव को पहली बार जगह मिली है. ऐसे ही चुनाव समिति में भूपेंद्र यादव, ओम माथुर और वनथी श्रीनिवास को शामिल किया गया है. इस तरह बीजेपी ने पुराने चेहरो की जगह नए नेताओं को हाई प्रोफाइल कमेटी में जगह देकर बड़ा सियासी संदेश दिया है.
5. चुनावी राज्यों का नजर
बीजेपी ने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय समिति का गठन में चुनावी राज्यों का खास ध्यान रखा गया है. 2024 लोकसभा चुनाव के साथ या फिर उससे पहले होने वाले राज्यों के नेताओं को पार्टी ने तवज्जे दी है. इस साल आखिर में गुजरात और हिमाचल में चुनाव होने हैं, जिसे देखते हुए दोनों राज्यों का ख्याल रखा गया है. अगले साल तीन महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव होने है, जिसे 2024 का सेमीफाइल माना जा रहा है. ऐसे में मध्य प्रदेश से सत्यनाराणय जटिया है, जो दलित समुदाय से हैं. इसके अलावा राजस्थान से भूपेंद्र यादव और ओम माथुर को रखा गया.
वहीं, कर्नाटक में भी अगले साल विधानसभा चुनाव है, जिसे देखते हुए बीएस येदियुरप्पा को जगह दी गई है. इसे कर्नाटक में चुनाव से पहले लिंगायत नेता को खुश रखने का एक स्पष्ट प्रयास लगता है. तेलंगाना में भी साल 2023 में विधानसभा चुनाव है जिसे देखते हुए ओबीसी नेता के. लक्ष्मण को शामिल किया गया. लोकसभा के फौरन बाद हरियाणा में चुनाव है, जिसके चलते सुधा यादव को जगह मिली है तो पंजाब में बीजेपी अपना सियासी आधार बढ़ाने के लिए सिख समुदाय से आने वाले इकबाल सिंह लालपुरा को जगह दी है.