बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति का पुनर्गठन किया. पार्टी अपनी भविष्य की सियासत को देखते हुए समिति से कुछ बड़े चेहरों को बाहर का रास्ता दिखाया है तो कुछ नए चेहरों को जगह दी है. बीजेपी की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था संसदीय बोर्ड से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान जैसे नेताओं का बाहर होना सियासी बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी की सबसे पावरफुल माने जानी वाली दोनों ही समितियों से किस नेता के रिप्लेसमेंट में किसे जिम्मेदारी सौंपी गई और उसके पीछे क्या कारण रहे?
गडकरी का रिप्लेसमेंट फडणवीस
बीजेपी के कद्दावर नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को बीजेपी संसदीय बोर्ड से हटा दिया गया है. गडकरी साल 2009 में बीजेपी के अध्यक्ष बनने के बाद से संसदीय बोर्ड के सदस्य रहे हैं, लेकिन अब 13 साल के बाद उन्हें पार्टी संसदीय बोर्ड के साथ-साथ केंद्रीय चुनाव समिति में हटा दिया गया है. वहीं, गडकरी बीजेपी की हाई प्रोफाइल कमेटी से एक तरफ बाहर हुए तो उनकी जगह महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का कद बढ़ाकर उन्हें केंद्रीय चुनाव समिति का सदस्य बना दिया गया है. ऐसे में माना जा रहा है कि गडकरी के रिप्लेसमेंट के तौर पर फडणवीस की नियुक्ति को देखा जा रहा है.
गडकरी बोर्ड से क्यों हटाए गए?
इंडिया टुडे ग्रुप के राष्ट्रीय मामलों के संपादक राहुल श्रीवास्तव लिखते हैं कि गडकरी की संसदीय बोर्ड से बाहर किए जाने के पीछ पार्टी में कई सालों से जारी सियासी बेचैनी को दर्शाता है. गडकरी बीजेपी के मुखर नेता हैं और पिछले दो सालों से खुलकर अपनी बात रखते रहे हैं. इतना ही नहीं वो अपने मंत्रालय में किसी तरह का कोई दखल नहीं बल्कि अपनी मर्जी से चलाया है. संघ प्रमुख मोहन भागवत और आरएसएस के करीबी माने जाते हैं. इसके बाद भी गडकरी ने कभी कट्टर हिंदुत्व की राजनीति नहीं की. गडकरी को हटाए जाने का संदेश साफ है कि पार्टी के लाइन से हटकर किसी को चलने की आजादी नहीं है तो दूसरी तरफ आरएसएस ने बीजेपी के दोनों नेता को पार्टी चलाने की खुली छूट दे दी है.
थवरचंद-शिवराज की जगह जटिया
बीजेपी के सबसे बड़ी और पावरफुल बॉडी संसदीय बोर्ड और चुनावी समिति में मध्य प्रदेश का दबदबा था. शिवराज सिंह चौहान और अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले थवरचंद गहलोत बोर्ड के सदस्य थे. कर्नाटक के गवर्नर बन जाने से थवरचंद गहलोत बोर्ड से बाहर हो गए थे तो अब शिवराज सिंह चौहान की संसदीय बोर्ड से छुट्टी हो गई है. वहीं, एमसी से आने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता सत्यनाराण जटिया को संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया गया है. दिलचस्ल बात यह है कि पार्टी ने सत्यनारायण जटिया को हटाकर ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 2005 से पहले बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था अब उनको संसदीय बोर्ड से बाहर कर जटिया को जगह दी गई. हालांकि, बीजेपी के संसदीय बोर्ड में एक सीट दलित नेता के लिए रिजर्व है. यही वजह है कि थवरचंद गहलोत के रिप्लेसमेंट के तौर पर जटिया को देखा जा रहा है.
शिवराज की क्यों हुई छुट्टी
शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड से हटाने को लेकर राहुल श्रीवास्तव लिखते हैं कि 2014 से पहले तक शिवराज और नरेंद्र मोदी दोनों ही एक कद के नेता माने जाते थे, लेकिन स्थिति बदल चुकी है. 2018 चुनाव में शिवराज 56 सीटें गंवा दी थी और कांग्रेस सरकार बनाई थी. अमित शाह की कोशिश और ऑपरेशन लोटस से बीजेपी 2020 में सरकार बनाने में सफल रही. वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बीजेपी के एकलौते सीएम थे, जो संसदीय बोर्ड में शामिल थे और उन्हें पार्टी के दूसरे मुख्यमंत्रियों से अलग देखा जा रहा था. यूपी में दूसरी बार सीएम योगी आदित्यनाथ को बोर्ड में शामिल किए जाने की मांग हो रही थी. ऐसे में पार्टी ने यह फैसला इसलिए भी लिया है कि पार्टी किसी भी मुख्यमंत्री को शामिल नहीं करना चाहती और इसी के साथ शिवराज चौहान को जो भविष्य में पीएम मोदी के विकल्प के रूप में चर्चा पर विराम लगाया है.
अनंत कुमार की जगह येदियुरप्पा
बीजेपी के संसदीय बोर्ड में पहली बार बीएस येदियुरप्पा को जगह मिली है. येदियुरप्पा को संसदीय बोर्ड में बीजेपी के वरिष्ठ नेता रहे अनंत कुमार के रिप्लेस्पेंट के तौर पर देखा जा रहा है. 2014 में अनंत कुमार को संसदीय बोर्ड में जगह मिली थी, पर उनका निधन हो जाने से जगह खाली थी और अब कहीं जाकर 79 साल के येदियुरप्पा को शामिल किया गया है. ऐसे में यह भी सवाल उठ रहे हैं कि 2014 में अटल बिहार वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को उम्र का हवाला देते हुए संसदीय बोर्ड से हटाकर मार्गदशक मंडल में डाल दिया गया था तो येदियुरप्पा को कैसे शामिल किया?
येदियुरप्पा को क्यों मिली एंट्री?
येदियुरप्पा की एंट्री पर राहुल श्रीवास्तव लिखते हैं कि बीएस येदियुरप्पा को कर्नाटक में सीएम की कुर्सी के बदले मुआवजे के रूप में बोर्ड में जगह दिया गया है. यह अगले साल कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले लिंगायत नेता को खुश रखने का एक स्पष्ट प्रयास लगता है. इसीलिए 75 साल से ज्यादा उम्र के होने के बाद भी येदियुरप्पा को जगह दी गई है ताकि उनकी नाराजगी को दूर किया जा सके. येदियुरप्पा कर्नाटक के दिग्गज नेता है और चार बार मुख्यमंत्री रहे हैं और दक्षिण में बीजेपी का कमल खिलाने का श्रेय जाता है. बीजेपी के महासचिव संगठन बीएल संतोष भी कर्नाटक से हैं और उनके प्रभाव बढ़ा है, जिसके चलते येदियुरप्पा को नियंत्रण कर रहे थे. ऐसे में येदियुरप्पा को बोर्ड में जगह मिली है, उससे सियासी स्थिति बदल सकती है.
सुषमा स्वराज की जगह सुधा यादव
बीजेपी के संसदीय बोर्ड में एक सीट महिला सदस्य के लिए रिजर्व है. साल 2014 में अमित शाह ने बीजेपी अध्यक्ष रहते हुए संसदीय बोर्ड का गठन किया था, जिसमें सुषमा स्वराज सदस्य थी. अगस्त 2019 में सुषमा स्वराज का निधन होने के चलते पद रिक्त था और अब उनकी जगह हरियाणा से आने वाली सुधा यादव को पार्टी ने संसदीय बोर्ड में जगह दी है. सुधा यादव हरियाणा के रेवाड़ी की रहने वाली हैं और वर्तमान में वह भाजपा की राष्ट्रीय सचिव हैं और ओबीसी मोर्चा की प्रभारी रह चुकी हैं. इस तरह सुषमा स्वराज के रिप्लेस्मेंट के तौर पर सुधा यादव की एंट्री दी गई है.
वैंकया नायडू की जगह के लक्ष्मण
बीजेपी संसदीय बोर्ड में ओबीसी मोर्चा के के. लक्ष्मण को जगह दी गई है. वो तेलंगाना से आते हैं और अगले साल विधानसभा चुनाव है. बीजेपी की नजर तेलंगआना पर है. के. लक्ष्मण को माना जाता है कि वैंकया नायडू की जगह पर लगाया गया. 2014 में नायाडू को संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया था, लेकिन 2017 में उपराष्ट्रपति बन गए थे. ऐसे में उनकी जगह खाली हो गई थी और अब उनकी जगह के. लक्ष्मण को लाया गया है, जो उनके ही राज्य से हैं.
जेटली की जगह इकबाल सिंह लालपुरा
बीजेपी संसदीय बोर्ड में इकबाल सिंह लालपुरा को जगह दी गई है, जो सिख समुदाय से हैं. बीजेपी संसदीय बोर्ड में पहली बार किसी अल्पसंख्यक समुदाय को जगह मिली है. माना जाता है कि इकबाल सिंह लालपुरा को केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली की जगह लगाया गया है. जेटली पंजाबी समुदाय से थे और पंजाब से लोकसभा चुनाव लड़ चुके थे और उनके निधन के बाद बीजेपी सिख समुदाय से आने वाले इकबाल सिंह को आगे बढ़ा रही है ताकि पंजाब में अपना सियासी आधार मजबूत कर सके.
जोएल ओराम की जगह सर्बानंद सोनोवाल
बीजेपी के संसदीय बोर्ड में सर्बानंद सोनोवाल को जगह मिली है. माना जा रहा है कि सोनोवाल को भी असम में हेमंत बिस्वा सरमा के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बदले पुरस्कृत किया गया है. उनका शामिल होना नॉर्थ-ईस्ट को प्रतिनिधित्व देने पर पार्टी के फोकस का भी संकेत देता है. इसकी एक वजह यह भी है कि बीजेपी ने आदिवासी नेता जोएल ओराम को पार्टी चुनाव समिति से बाहर कर दिया है तो कचारी जनजाति से आने वाले सोनोवाल को एंट्री दी गई है ताकि पूर्वोत्तर के सियासी समीकरण को मजबूत किया जा सके.