उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश की सियासत में दलित राजनीति का चेहरा मानी जाने वाली बसपा प्रमुख मायावती अपने जीवन के 64 साल का सफर ऐसे समय पूरा कर रही हैं, जब सियासी बिसात पर उनकी पार्टी चारों तरफ से घिरी हुई है. अब न तो मायावती पहले की तरह जमीन पर उतरकर संघर्ष कर पा रही हैं और न ही अपने कैडर के साथ संवाद स्थापित कर रही हैं. ऐसे में बसपा का जनाधार लगातार खिसकता जा रहा है, जिसकी वजह से सवाल उठता है कि मायावती के बाद उनकी राजनीतिक विरासत कौन आगे बढ़ाएगा और बसपा की कमान किसके हाथ में होगी?
हालांकि, इस फेहरिस्त में एक समय आजमगढ़ के रहने वाले राजाराम का नाम प्रमुख तौर पर लिया जा रहा था. माना गया कि वही आगे चलकर मायावती की गद्दी संभालेंगे, लेकिन धीरे-धीरे अब मायावती के राजनीतिक वारिस के तौर पर एक के बाद एक नाम जुड़ रहे हैं. मायावती के भाई आनंद कुमार से लेकर भतीजे आकाश के नाम लिए जा रहे हैं. इतना ही नहीं पार्टी के कई और भी दलित नेता हैं, जिन्हें मायावती के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा है.
आज मायावती का 65वां जन्मदिन
पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा अध्यक्ष मायावती का आज यानी शुक्रवार को 65वां जन्मदिन है. कोरोना काल के चलते मायावती ने अपने जन्मदिन को कार्यकर्ताओं से सादगी और जनकल्याणकारी दिवस के रूप में मनाने की अपील की है. बसपा संस्थापक कांशीराम के सानिध्य में रहकर मायावती ने सियासत की एबीसीडी सीखी और देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री बनीं. मायावती 1977 में कांशीराम के कहने पर राजनीति में आई थीं. 1995 में यूपी की मुख्यमंत्री बनीं और 15 दिसंबर, 2001 को कांशीराम ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया था और 2007 में पूर्णबहुमत के साथ सरकार बनाने में मायावती कामयाब रहीं.
मायावती ने अपने पांच दशक के लंबे सियासी सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. सूबे की सत्ता से कई बार बेदखल हुईं तो कई बार विराजमान भी हुई हैं, लेकिन मौजूदा समय में एक के बाद एक चार चुनाव हारने और पार्टी नेताओं की बगावत ने उनकी राजनीति पर प्रश्न चिह्न लगा दिए हैं और मायावती अपने कई दिग्गज नेताओं को खो चुकी हैं. 2012 के बाद से मायावती को कोई जीत हासिल नहीं हुई है और उनके पास सबसे बड़ी चुनौती बहुजन समाज मूवमेंट को संभालकर रखने की है. इसके चलते मायावती के राजनीतिक वारिस को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं, जो उनके बहुजन मूवमेंट को आगे लेकर जा सकें.
मायावती के भाई आनंद
मायावती के भाई आनंद को एक समय में उनके राजनीतिक वारिस के तौर पर देखा जा रहा था, क्योंकि 2018 में अंबेडकर जयंती के मौके पर बाबा साहब को श्रद्धांजलि देते हुए मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को बीएसपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने का ऐलान किया था. मायावती ने कहा था, 'मैंने अपने भाई आनंद कुमार को इस शर्त पर बीएसपी में लेने का फैसला किया है कि वह कभी एमएलसी, विधायक, मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं बनेगा. इसी वजह से मैं आनंद को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना रही हूं.
हालांकि, छह महीने भी नहीं गुजरे कि मायावती ने अपने भाई आनंद को बसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से हटाते हुए कहा था कि राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रहते हुए अब कोई अपने नाते-रिश्तेदार को पार्टी में पद नहीं देंगी. ऐसे में अब आनंद मायावती के राजनीतिक वारिस की फेहरिस्त से बाहर हो गए हैं. दरअसल, इसके पीछे एक वजह यह मानी गई कि आनंद एक समय नोएडा में क्लर्क हुआ करते थे, पर मायावती जब यूपी की सियासत में चमकीं तो आनंद की किस्मत भी खुल गई. इसी के साथ केंद्रीय जांच एजेंसियों के निशाने पर आनंद के साथ-साथ मायावती भी आ गई हैं. मायावती को क्लीन चिट मिल गई, लेकिन आनंद जांच के घेरे में हैं.
मायावती के भतीजे आकाश
मायावती के राजनीतिक वारिस के तौर पर फिलहाल उनके भतीजे आकाश को देखा जा रहा है. आकाश मायावती के भाई आनंद के बड़े बेटे हैं. साल 2018 से लगातार आकाश भी मायावती साथ साए की तरह रहते हैं. बसपा की रैलियों से लेकर पार्टी नेताओं की बैठक में मायावती के साथ आकाश भी शामिल होते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में आगरा की रैली में उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से भाषण भी दिया था, लेकिन पहली बार 18 सितंबर 2017 में मेरठ की रैली में मायावती के साथ मंच पर दिखे थे.
आकाश लंदन की एक यूनिवर्सिटी से मैनेजमेंट में पोस्टग्रेजुएट हैं और बसपा में नई जिम्मेदारी संभालने के लिए मायावती के संग राजनीति के दांव पेच सीख रहे हैं. माना जा रहा है कि मायावती के राजनीतिक उत्तराधिकारी अब कोई और नहीं बल्कि आकाश ही होंगे. आकाश के नाम पर मायावती ने आश्वस्ति महसूस की तो इसके कारण समझे जा सकते हैं. पहला तो यह है कि मायावती लगभग 64 साल की हैं, जिसे राजनीति में बहुत ज्यादा उम्र वो नहीं मानती होंगी. उन्हें लगता होगा कि अभी 5 से 10 साल और वो राजनीति की पारी खेल सकती हैं. इसलिए मायावती अपने भतीजे आकाश को सानिध्य में रखकर सियासत के हुनर सिखा रही हैं.
राजाराम का नाम आया था सामने
बसपा प्रमुख मायावती ने एक समय अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी की चर्चा की थी तो यह कहा था कि वह दलित बिरादरी में से ही कोई होगा, उसकी उम्र अभी 18-19 साल है लेकिन साथ-साथ यह भी कहा था कि उनका उत्तराधिकारी जो तय हो चुका है, लेकिन उनके परिवार में से कोई नहीं है. बसपा में उस समय मायावती के उत्तराधिकारी के बतौर तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजाराम पर नजर जाकर टिक गई थी, जो आजमगढ़ के रहने वाले थे. वो काफी तेज तर्रार बहुजन समाज के मूवमेंट को आगे लेकर जाने वाले माने जाते थे. हालांकि, मायावती ने एक झटके में बिना किसी कारण के राजाराम को पदच्युत कर पैदल कर दिया और तत्काल उनकी जगह अपने भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया था. इसी के बाद राजाराम के सियासी भविष्य पर सवाल खड़े हो गए थे.
मायावती के गुरु और बसपा संस्थापक कांशीराम की सोच पारिवारिक मोह से परे थी. उनकी धारणा थी कि अगर मिशन को सफल बनाना है तो परिवार के प्रति लगाव-जुड़ाव को खत्म करना होगा. कांशीराम ने वंचित समाज के लिए अपना पूरा जीवन समर्पण कर दिया था. उन्होंने अपने परिवार के लोगों को बसपा से दूर रखा और परिवार के किसी सदस्य को पार्टी में जगह नहीं दी. मायावती को उन्होंने अपना उताराधिकारी इसलिए घोषित किया, क्योंकि उन्होंने बहुजन मिशन को पहुंचाने के लिए संघर्ष किया था.
ऐसे में कांशीराम के साथ बसपा की नींव रखने वाले नेता या तो पार्टी छोड़कर चले गए हैं या फिर उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है. ऐसे में बसपा में कांशीराम के दौर के महज कुछ नेता ही बचे हैं और वो पार्टी में साइड लाइन हैं. ऐसे में देखना है कि मायावती अपनी सियासी विरासत अपने भतीजे आकाश को सौंपती हैं या फिर पार्टी के किसी ऐसे नेता को देती हैं, जो बहुजन मूवमेंट को आगे ले जा सके.