राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले सियासी बिसात बिछने लगी है. सूबे में जाट सियासत चुनाव में किस करवट बैठेगी इसे लेकर राजनीतिक तपिश बढ़ गई है. जयपुर के विद्याधर नगर स्टेडियम में रविवार को हुए जाट महाकुंभ में जाट का वोट जाट को देने के संकल्प के साथ जाट समुदाय ने अपनी ताकत दिखाई. इतना ही नहीं जाट समुदाय के लोगों ने 2023 में मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के साथ-साथ जातिगत जनगणना और ओबीसी आरक्षण को 21 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने की मांग उठाई है.
जाट महाकुंभ में शामिल हुए ये नेता
राजस्थान जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील ने जाट महाकुंभ का आयोजन था, जिसमें कांग्रेस और बीजेपी सहित सभी दलों के जाट नेताओं ने शिरकत किया था. किसान नेता राकेश टिकैत, केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, गहलोत सरकार के मंत्री लालचंद कटारिया, विश्वेंद्र सिंह, बृजेंद्र ओला, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रा सिंह, लोकसभा सदस्य दुष्यंत सिंह, भागीरथ चौधरी, सुमेधानंद सरस्वती सहित दो दर्जन से ज्यादा विधायक और पूर्व विधायक ने शिरकत किया. इस दौरान सभी ने सामाजिक एकता और सियासी विचारधारा से ऊपर उठकर जाट समाज को पहले प्राथमिकता देने का निर्णय लिया.
जानें, किस जाट नेता ने क्या कहा
बीजेपी सांसद दुष्यंत सिंह नेअपनी मां और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का संदेश पढ़कर सुनाया. वसुंधरा ने जाट समाज की एकता पर जोर दिया. गोविंद सिंह डोटासरा ने जाट समाज के नेताओं को नसीहत देते हुए कहा कि किसी भी दूसरे समाज के खिलाफ एक भी गलत शब्द नहीं बोलना चाहिए. सतीश पूनिया ने कहा कि जाट समाज गांव में सामाजिक सद्भाव के लिए जाना जाता था, उसे कायम रखना है. कांग्रेस नेता रामेश्वर डूडी ने जाट सीएम की मांग उठाते हुए कहा कि अगला मुख्यमंत्री किसान का बेटा, जाट का बेटा होना चाहिए. इस दौरान जातिगत जनगणना और ओबीसी के आरक्षण को बढ़ाने की मांग भी उठाई गई.
जाट समुदाय की सियासत ताकत
राजस्थान में जाट समुदाय ओबीसी में सबसे बड़ी आबादी वाला समुदाय है. माना जाता है कि सूबे में करीब 12 फीसदी जाट समुदाय है, जिसका असर करीब 50 विधानसभा सीटों पर जीतने की ताकत रखते हैं तो 20 सीटों पर किसी दूसरे समाज के नेता को जीतने-हराने में अहम रोल अदा करते हैं. जाट समाज के दबदबे का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि राजस्थान में हर चुनाव में कम से कम 10 से 15 फीसदी विधायक जाट समाज के ही होते हैं.
राजस्थान में जाट विधायक और सांसद
राजस्थान की 200 सदस्यीय विधानसभा में जाट समुदाय के 34 विधायक 2018 में जीतकर आए थे. कांग्रेस से 18 विधायक जीते जबकि बीजेपी के 10 जाट विधायक चुने गए थे, जिसमें वसुंधरा राजे भी शामिल हैं. इसके अलावा लेफ्ट पार्टी से दो जाट विधायक चुने गए थे और दो जाट समुदाय के नेता निर्दलीय जीते थे. इसके अलावा एक बसपा और एक आरपीआई से जीतने में सफल रहे थे. वहीं, आठ सांसद जाट समुदाय से हैं, जिनमें एक राज्यसभा सदस्य और बाकी सात लोकसभा में है.
जाट बहुल्य जिले और इलाके
राजस्थान का शेखावटी इलाका जाट बहुल माना जाता है, जहां पर जाट वोटर 25 से 35 फीसदी तक है. सूबे के हनुमानगढ़, गंगानगर, धौलपुर बीकानेर, चुरू, झुंझनूं, नागौर, जयपुर, चित्तोड़गढ़, अजमेर, बाड़मेर, टोंक, सीकर, जोधपुर, भरतपुर में जाट समुदाय बड़ी संख्या में है. धौलपुर जाटों के सबसे बड़े गढ़ में से एक है और राज्य में सात जिलों की करीब 50 से 60 सीटों पर खासा प्रभाव होने के बावजूद जाट समाज को उतना महत्व नहीं मिला, जितने की इन्हें उम्मीद थी. अब जाट राजनीति में आए इस शून्य को भरने के लिए जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील ने पूरी बिरादरी को इकट्ठा कर राजनीतिक ताकत दिखाया.
जाट समुदाय के 50 विधायक का टारगेट
राजस्थान की जाट महासभा ने 2023 के विधानसभा चुनाव में 50 विधायक जाट समुदाय के बनाने का टारगेट तय कर रखा है. इसके लिए जाट महासभा के अध्यक्ष राजाराम मील ने aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि समाज की सबसे अहम मांग 2023 के विधानसभा चुनाव में जाट समाज को टिकट के लिए है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों से 40-40 टिकट मांगे गए हैं ताकि जाट समुदाय से 50 विधायक विधानसभा पहुंच सके. 2018 में चुनाव में कांग्रेस ने 30 और बीजेपी ने 29 प्रत्याशी जाट समुदाय के दिए थे, लेकिन इस बार 40 से कम टिकट पर राजी नहीं होंगे. जाट समाज से 50 विधायक जीतकर आते हैं तो मुख्यमंत्री की कुर्सी भी जाट बैठेगा.
जाट समुदाय के सीएम की क्यों मांग?
जाट महासभा में जाट मुख्यमंत्री की भी मांग उठी है. इसकी वजह यह है कि प्रदेश की राजनीति में हमेशा से जाट सियासत का बड़ा महत्व रहा है, लेकिन सीएम अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के सियासी संघर्ष के चलते जाट राजनीति में सियासी शून्य कायम हो गया. हालांकि, वसुंधरा राजे जाट परिवार बहु है. 1998 के विधानसभा चुनाव में परसराम मदेरणा के चेहरे पर चुनाव लड़ा लड़ा गया था, जिसके नाते जाट समाज ने कांग्रेस के पक्ष में जमकर मतदान किया था.
कांग्रेस को राजस्थान में 200 में से 153 सीटें मिली. जाट समाज यह मानकर चल रहा था कि राज्य में पहली बार मदेरणा के रूप में जाट मुख्यमंत्री बनेगा, लेकिन जोड़तोड़ की राजनीति में माहिर अशोक गहलोत ने मदेरणा को पीछे छोड़ सीएम की कुर्सी हासिल कर ली. इसके बाद से उसके बाद जाट समाज ने कांग्रेस का साथ छोड़ा और फिर साल 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को समर्थन दिया. उस समय वसुंधरा राजे ने राजपूत की बेटी, जाट की बहू और गुर्जर की समधन का वास्ता देकर वोट मांगे. तत्कालीन वसुंधरा सरकार में जाट समाज को काफी महत्व भी मिला, लेकिन अब जाट समाज मुख्यमंत्री के पद पर नजर गढ़ाए हुए हैं.
जातिगत जनगणना की डिमांड क्यों ?
जाट समुदाय ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई और साथ ही अन्य पिछाड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण को 21 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने की मांग भी की है. राजस्थान में जाट समुदाय ओबीसी में आता है. ओबीसी में सबसे बड़ी संख्या जाटों की है. ऐसे में जातिगत की मांग कर रहे हैं ताकि उनकी आबादी और उनके प्रतिधिनित्व का सही आंकड़ा सामने आ सके. जाट महासभा राजाराम मील कहते हैं कि जाट समुदाय की जितनी आबादी है, उस लिहाज से न तो उसे राजनीति में प्रतिनिधित्व मिल रहा है और न ही सरकारी नौकरियों में.
राजाराम मील कहते हैं कि केंद्र की मोदी सरकार जातिगत जनगणना से साफ इंकार कर चुकी है, लेकिन राज्य की गहलोत सरकार बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ के तर्ज पर जातिगत जनगणना करा सकती है. राज्य सरकार की जातीय जनगणना को भले ही संवैधानिक हक न हो, लेकिन उससे केंद्र की सरकार पर दबाव बनाने का हमें मौका मिला जाएगा. कांग्रेस पार्टी खुद ही जातिगत जनगणना के समर्थन में है तो गहलोत सरकार को इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए.
राजस्थान में प्रेशर पॉलिटिक्स
जाट समुदाय ने राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स का दांव चलना शुरू कर दिया है. राज्य में ओबीसी के अंदर सबसे बड़ी आबादी जाट समुदाय की है. जयपुर में अपनी सियासी ताकत दिखाकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों एहसास करा दिया है. इतना ही नहीं जाट समुदाय का वोट जाट को देने का ऐलान करके अपने विधायकों की संख्या को भी बढ़ाने के लिए सियासी दांव भी चल दिया है. इतना ही नहीं ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण की मांग करके गहलोत सरकार पर भी दबाव बना दिया है.
कांग्रेस-बीजेपी दोनों के अध्यक्ष जाट
राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टी की नजर जाट समुदाय के वोटों पर है. इसीलिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट की जगह जाट समुदाय से आने वाले गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बनवाया और अब उनके अध्यक्ष रहते हुए चुनावी मैदान में पार्टी उतरने जा रही है. बीजेपी ने भी जाट समुदाय से आने वाले सतीश पुनिया को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप रखी है. इसके अलावा हनुमान बेनीवाल भी जाट सियासत के बड़े चेहरे हैं और उनकी खुद की आरपीआई नाम से राजनीतिक पार्टी है. ऐसे में देखना है कि जाट सियासत 2023 में किस करवट बैठती है?