
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के 25 साल पूरे होने पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने सभी सहयोगी दलों के नेताओं की बैठक बुलाई थी. मंगलवार की शाम हुई इस बैठक में एक-दूसरे पर बयानी तीर चलाते रहे पशुपति पारस और चिराग पासवान जब आमने-सामने पड़े, रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलती नजर आई. एनडीए के नेता जब पीएम मोदी का माल्यार्पण कर स्वागत कर रहे थे, चिराग अपने चाचा के बगल में ही खड़े नजर आए.
पशुपति पारस जब चिराग के सामने पड़े, भतीजे ने झुककर उनके पैर छुए. पशुपति ने भी चिराग को गले लगा लिया. चिराग ने एनडीए की बैठक के बाद चाचा से सुलह के सवाल पर कहा कि वे (पशुपति पारस) मेरे लिए पिता के समान हैं. पहले तस्वीर और फिर बयान, एक-दूसरे के खिलाफ तलवारें खींचे खड़े नजर आ रहे चिराग-पशुपति के तेवर में इतना बदलाव कैसे आ गया?.
चिराग-पशुपति की पार्टी का विलय क्यों चाहती है बीजेपी
अब सवाल ये है कि बीजेपी पशुपति पारस और चिराग की पार्टी का विलय क्यों कराना चाहती है? इसका जवाब सीट बंटवारे को लेकर चल रही माथापच्ची से जुड़ा है. पशुपति पारस पांच लोकसभा सीटों की मांग कर रहे हैं. उनका तर्क है कि उनकी पार्टी के अभी पांच सांसद हैं ऐसे में उन्हें कम से कम उतनी सीटें तो मिलें जितने उनके सांसद हैं.
दूसरी तरफ चिराग 2019 के फॉर्मूले की याद दिला छह लोकसभा और एक राज्यसभा सीट पर दावा ठोक रहे हैं. इतना ही नहीं, दोनों चाचा-भतीजे ये ऐलान भी कर चुके हैं कि हम हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में बीजेपी की टेंशन बढ़ गई है. सीट बंटवारे से लेकर हाजीपुर पर फंसे पेच तक, बीजेपी को लग रहा है कि किसी तरह चिराग-पशुपति साथ आ गए तो हर समस्या का समाधान हो जाएगा.
यही वजह है कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय को पार्टी ने चिराग और पशुपति से बात करने की जिम्मेदारी सौंपी. नित्यानंद ने पशुपति के साथ ही चिराग से भी मुलाकात की, बात की लेकिन विलय पर बात नहीं बनी. पशुपति पारस ने साफ कहा था कि जब दल टूटते हैं तो जुड़ने की गुंजाइश रहती है लेकिन यहां तो दिल टूटे हैं.
पशुपति साथ फिर चिराग पर बीजेपी की नजर क्यों
बीजेपी पशुपति के साथ होने के बावजूद अगर चिराग पर नजर गड़ाए है तो उसकी भी अपनी वजह है. पशुपति ने भले ही पार्टी तोड़ दी, चिराग को निकाल दिया और खुद को रामविलास की राजनीतिक विरासत का असली वारिस घोषित कर दिया. लेकिन बीजेपी को ये डर है कि पासवान मतदाता अगर चिराग में रामविलास का वारिस देखने लगे तो दिक्कत होगी. ऐसे में बीजेपी चिराग को दरकिनार कर बिहार की 40 सीटों के लिए चुनावी जंग में नहीं उतरना चाहती. खासकर तब और नहीं जब नीतीश कुमार की जेडीयू, एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन के साथ जा चुकी है.
चिराग के संपर्क में पशुपति पारस की पार्टी के सांसद
पशुपति पारस के साथ का विकल्प चुनने वाले सांसद भी अब बदली परिस्थितियों में चिराग के संपर्क में हैं. पिछले दिनों महेश्वर हजारी ने चिराग पासवान से मुलाकात की थी. महेश्वर हजारी की चिराग से मुलाकात को पारस की पार्टी के सांसदों को सता रही सियासी भविष्य की चिंता से जोड़कर देखा गया. महेश्वर हजारी, वीणा देवी समेत एलजेपी के तीन सांसदों को 2024 के चुनाव में टिकट मिलेगा या नहीं, ये चिंता सता रही है. जानकारों की मानें तो पशुपति पारस दावा पांच सीटों के लिए कर रहे हैं लेकिन उनका फोकस दो सीटों पर ही है. एक अपनी और एक प्रिंस राज की.
गौरतलब है कि प्रिंस राज, चिराग के चचेरे भाई हैं. प्रिंस, रामविलास पासवान के भाई रामचंद्र पासवान के बेटे हैं. प्रिंस अपने पिता के निधन से रिक्त हुई समस्तीपुर सीट से उपचुनाव में सांसद निर्वाचित हुए थे. लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) में बगावत के पहले प्रिंस और चिराग पासवान के रिश्ते बहुत अच्छे थे. चिराग ने प्रिंस को एलजेपी बिहार का अध्यक्ष भी बनाया था. एलजेपी टूटी तब प्रिंस ने चाचा पशुपति के साथ जाने का रास्ता चुना था.
चिराग की एनडीए में एंट्री को लेकर पशुपति ने क्या कहा था
चिराग पासवान ने हाल ही में पटना में अपनी पार्टी के नेताओं की बैठक बुलाई थी. इस बैठक से पहले केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, चिराग से मिलने पहुंचे थे. इस मुलाकात के बाद चिराग ने कहा भी था कि गठबंधन को लेकर लंबे समय से बात चल रही है. अभी एक-दो दौर की बातचीत होनी है. इसके बाद बीजेपी ने चिराग को एनडीए की बैठक के लिए न्यौता भी भेज दिया. पशुपति पारस ने इसके बाद चिराग की एनडीए में एंट्री को लेकर कहा था कि हम इसका स्वागत नहीं करेंगे तो विरोध भी नहीं करेंगे.
चाचा-भतीजे की सियासी अदावत में सुलह की कितनी गुंजाइश?
चाचा-भतीजे की मुलाकात, भतीजे का पैर छूना और फिर चाचा का भतीजे को गले लगा लेना. सामाजिक लिहाज से देखें तो आम बात है लेकिन पिछले दो साल से दोनों के रिश्ते में जिस तरह की खटास नजर आई है, उस लिहाज से ये तस्वीर खास है. पशुपति पारस ने एलजेपी के चार अन्य सांसदों के साथ मिलकर चिराग को पहले लोकसभा में पार्टी के नेता फिर एलजेपी संसदीय दल के अध्यक्ष और इसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया था. पशुपति ने चिराग को उनके ही पिता की बनाई पार्टी से निकाल दिया था.
अब दोनों चाचा-भतीजे जब दो साल लंबे अंतराल के बाद गले लगे तो इसके सियासी मायने तलाशे जाने लगे हैं. क्या ये तस्वीर इस बात का संकेत है कि सियासी अदावत में दोनों के बीच सुलह की गुंजाइश अभी भी बाकी है? या फिर पशुपति पारस भी ये समझ गए हैं कि बीजेपी की जरूरत चिराग हैं, इसे स्वीकार कर चलना होगा या फिर अपनी राह चुननी होगी.