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'इस बार दंगा बहुत बड़ा था, खूब हुई थी ख़ून की बारिश, अगले साल अच्छी होगी फसल मतदान की' भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर कटाक्ष करती ये पंक्तियां लिखी तो दशकों पहले गई थीं लेकिन आज भी देश में यहां-वहां हो रहीं सांप्रदायिक घटनाओं पर सबसे सटीक टिप्पणी लगती हैं.
साल 2022 की शुरुआत हुई तो देश कोविड की दूसरी लहर को परास्त और तीसरी लहर को बेदम कर यूपी सहित पांच राज्यों की चुनावी तैयारियां में व्यस्त था. चुनाव हुए, नतीजे आए और अलग-अलग राज्यों में सरकारों की ताजपोशी भी हो गई. लेकिन जैसा कि कहा जाता है कि हिंदुस्तान में राजनीतिक दल हमेशा चुनावी मोड में रहते हैं. एक जगह चुनाव खत्म होते ही दूसरी जगहों पर मुकाबले की तैयारी शुरू हो जाती है.
अब इसे इत्तेफाक कहा जाए या कोई सियासी साजिश कि जिन-जिन राज्यों में ऐसे चुनावी मुकाबले होने हैं वहां की फिजाओं में सांप्रदायिकता की जहरीली हवा घुलती जा रही है. छोटी-छोटी घटनाएं बड़े सांप्रदायिक तनाव की वजह बन रही हैं. जरा-जरा की बात पर भीड़ सड़क पर उतर आती है और कानून-व्यवस्था उपद्रवियों के रहमोकरम पर पड़ी दिखती है. मीडिया और सोशल मीडिया में ऐसी घटनाओं का ही शोर है और हर रोज किसी नए इलाके से इस तरह की खबरें सामने आ रही हैं, फिर चाहे वो राजस्थान हो, कर्नाटक हो, गुजरात हो या दिल्ली और महाराष्ट्र, जहां या तो विधानसभा चुनाव होने हैं या निगम चुनावों की जोर आजमाइश में पार्टियां लगी हुई हैं.
राजस्थान में शहर-शहर तनाव बना हुआ है
बात राजस्थान की अगर की जाए तो यहां पिछले एक महीने में ही पांच जिलों में सांप्रदायिक तनाव की ऐसी घटनाएं देखी गईं जो राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनीं. दो अप्रैल को करौली में हिंदू नववर्ष के मौके पर बाइक रैली पर कथित पथराव के बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई. जमकर आगजनी और पथराव के बाद इलाके में कर्फ्यू लगा रहा. इसके बाद 18 अप्रैल को अलवर जिले में बुलडोजर से मंदिर तोड़ने की घटना हुई और 22 अप्रैल को उसका वीडियो सामने आया तो बवाल खड़ा हो गया. 2 मई को जोधपुर में ईद और परशुराम जयंती के मौके पर बवाल हुआ तो 10 मई को भीलवाड़ा में 20 साल के युवक की हत्या के बाद से सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई है. 11 मई को हनुमानगढ़ में विश्व हिंदू परिषद (VHP) के स्थानीय नेता पर हमला हुआ, जिसके बाद वहां भी माहौल गर्माया हुआ है.
राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और अगले साल चुनाव होने वाले हैं. राजस्थान का सियासी मिजाज ऐसा रहा है कि यहां हर पांच साल बाद सरकार बदलती है. यही वजह है कि बीजेपी कमर कसे हुए है. वो गहलोत के राज में हिंदुओं पर अत्याचार के आरोप लगा रही है. पार्टी के तमाम बड़े नेता इन घटनाओं को लेकर सड़क से सोशल मीडिया तक कांग्रेस पर हमलावर हैं. हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इन घटनाओं को बीजेपी के सियासी प्रयोग कहकर विपक्ष को ही कठघरे में खड़ा कर रहे हैं.
मध्य प्रदेश में अचानक सांप्रदायिक हिंसा बढ़ी
मध्य प्रदेश में बेहद शांत स्वभाव के माने जाने वाले इलाके मालवा-निमाड़ में पिछले करीब एक साल से सांप्रदायिक हिंसा की कई घटनाएं सामने आई हैं. एमपी के मालवा क्षेत्र के तीन जिले उज्जैन, इंदौर और मंदसौर में पिछले डेढ़-दो साल में सांप्रदायिक हिंसा की छोटी बड़ी 12 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं.
10 मई को खरगोन में रामनवमी के मौके पर निकले जुलूस में डीजे बजाए जाने को लेकर हुए विवाद के बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी. मामला इतना बढ़ा कि प्रदेश सरकार के आदेश पर संदिग्धों के घर बुलडोजर से ढहा दिए गए. एमपी में हाल ही में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं. इंदौर में ही मुस्लिम बहुल बॉम्बे बाजार में मुस्लिम लिबास में दो लड़कियां एक आदमी के साथ थीं. पहचान पत्र देखने पर पता चला कि तीनों हिंदू हैं, जिसके बाद हंगामा हुआ तनाव की स्थिति बनी. अगस्त में यहां एक हिंदू लड़ने ने एक मुस्लिम लड़की के साथ भागकर शादी करने बाद वीडियो शेयर किया, तो बवाल मच गया.
इसी महीने हरदोई के एक मुस्लिम युवक को सिर्फ इसलिए पीट दिया गया क्योंकि वो हिंदू बस्ती में चूड़ी बेच रहा था. 25 दिसंबर 2020 को उज्जैन के बेगम बाग इलाके में बीजेपी युवा मोर्चा की रैली पर कथित तौर पर पत्थर फेंकने के चलते हिंसा भड़की. 29 दिसंबर 2020 को इंदौर के चांदनखेड़ी और मंदसौर के डोराना गांव में वीएचपी नेताओं के द्वारा निकाली गई रैली के बाद हिंसा भड़की. ये रैली अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए दान हेतु जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से आयोजित की गई थी.
एमपी में 2023 में विधानसभा चुनाव होने है
राजस्थान की तरह मध्य प्रदेश में भी 2023 के आखिर में विधानसभा चुनाव होने है, जहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच चुनावी मुकाबला होना है. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 15 साल तक सत्ता रहने के बावजूद सरकार गवां दी थी. कमलनाथ के अगुवाई में कांग्रेस जीतकर सरकार बनाने में सफल रही थी, लेकिन 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों के बगावत के चलते बीजेपी ने तख्तापलट कर दिया था. सिंधिया से साथ बगावत करने वाले कांग्रेस के विधायकों में ज्यादातर मालवा-निमाड़ से आने वाले विधायक ही थे. यहां हुए उपचुनाव में कांग्रेसी के बागी बीजेपी के टिकट पर दोबारा विधायक बने, जिसमें से कईयों को शिवराज सरकार ने सरकार में मंत्री पद से भी नवाजा हैं.
खरगोन में हुई हिंसा पर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाया था कि देश के अलग-अलग राज्यों में रामनवमी के त्योहार पर भड़के सांप्रदायिक दंगे पूरी तरह प्रायोजित हैं और इनके पीछे एक पैटर्न (तय स्वरूप) काम कर रहा है. धार्मिक उन्माद को सत्तारूढ़ बीजेपी का सबसे बड़ा हथियार बताते हुए सिंह ने यह दावा भी किया कि कुछ मुस्लिम संगठन बीजेपी के साथ मिलकर सियासी खेल खेलते हैं. उन्होंने आरोप लगाया था कि भाजपा के लिए धार्मिक उन्माद सबसे बड़ा हथियार है जिसका हिंदुओं और मुसलमानों को बांटने के लिए राजनीतिक दुरुपयोग किया जाता है.
एमपी में अगले साल होने वाले चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर से कमलनाथ के अगुवाई में मैदान में उतरने की तैयारी में है तो शिवराज सरकार के तेवर इस बार बदले हुए हैं और यूपी की योगी सरकार के पैटर्न पर चल रही है.
कर्नाटक से हिजाब से शुरू हलाल तक बात पहुंच गई
कर्नाटक में अगले साल मई में विधानसभा चुनाव हैं. बीजेपी यहां सत्ता में है. राज्य में उसका मुकाबला कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर से है. पिछले कुछ दिनों से राज्य में ध्रुवीकरण की सियासत जोर पकड़ रही है. मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने का विरोध करने के बहाने साम्प्रदायिक हिंसा की शुरुआत हुई और फिर हलाल, अजान और मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार के आह्वान तक पहुंच गई. इतना ही नहीं हुबली में एक सोशल मीडिया पोस्ट के बाद हिंसा भड़क उठी. उपद्रवियों ने पुलिस की गाड़ियों, नजदीक स्थित एक अस्पताल और एक धार्मिक स्थल को क्षतिग्रस्त कर दिया था. इसमें कुछ पुलिस अधिकारी भी घायल हो गए थे. हुबली शहर में धारा-144 लगाना पड़ा और करीब 40 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और कुछ एफआईआर दर्ज की गई हैं.
गुजरात में मामूली घटना हिंसा में तब्दील
गुजरात की बात करें तो वहां इस साल के आखिर में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. क्या आप सोच सकते हैं कि एक मामूली सड़क दुर्घटना भी साम्प्रदायिक दंगे का रुप ले सकती है. गुजरात के वडोदरा शहर में बीती 18 अप्रैल को यही हुआ, जब सांप्रदायिक तनाव इतना फैल गया कि दोनों समुदायों के लोगों ने एक-दूसरे पर जमकर पथराव किए और एक धार्मिक स्थल तथा वाहनों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया. इस हिंसा में 8-10 लोग घायल हुए हैं. गुजरात में बीजेपी पिछले 27 सालों से सत्ता में है और छड़ी बार सरकार में वापसी के कवायद में है. ऐसे में गुजरात में अचानक सांप्रदायकि हिंसा ने दो समुदाय के बीच तनाव बना दिया है.
महाराष्ट्र में क्यों सांप्रादियक तनाव
मुंबई में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना से प्रमुख राज ठाकरे ने लाउडस्पीकर के बहाने अजान और हनुमान चालीसा बजाने का जो विवाद छेड़ा है, उससे सियासत गर्मा गई है. राज ठाकरे खुलकर हिंदुत्व कार्ड खेल रहे हैं, जिसमें बीजेपी उनके साथ पूरी तरह खड़ी नजर आ रही है. इतना ही नहीं निर्दलीय सांसद नवनीत राणा ने माताश्री के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने के पाठ करने का ऐलान किया था, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था. ऐसे में सियासी तनाव बना हुई है. कुछ महीने में मुम्बई महानगर पालिका और ठाणे की कारपोरेशन के चुनाव होने हैं. मुंबई महानगर पालिका पर फिलहाल शिव सेना का कब्जा है. राज ठाकरे अब बीजेपी के साथ मिलकर महानगरपालिका की सत्ता पर कब्जाने के फिराक में है.
दिल्ली में सांप्रदायिक तनाव बना हुआ है
दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में हनुमान जयंती पर निकले जुलूस पर पथराव से सांप्रदायिक तनाव बन गया था और दोनों ही समुदाय आमने-सामने आ गए थे. जहांगीरपुरी इलाके में माहौल बिगाड़ने के लिए दोनों ही समुदाय के लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. बीजेपी ने नवरात्रि के दौरान मांस की दुकाने बंद कराने का अभियान चलाया. दक्षिण दिल्ली और पूर्वी दिल्ली के मेयर ने नवरात्रि के समय मीट शॉप बंद रखने को कहा है. दक्षिण दिल्ली नगर निगम के मेयर मुकेश सूर्यन ने कमिश्नर ज्ञानेश भारती को एक पत्र लिखकर कहा कि नवरात्रि के समय मीट की दुकानें खोलने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि 11 अप्रैल तक मीट शॉप को बंद रखने की अपील की.
दिल्ली में भी नगर निगम के चुनाव जल्द होने हैं, जहां पर 15 साल से बीजेपी का कब्जा है. दिल्ली में जहांगीरपुरी इलाके से शुरू ही बुलडोजर की कार्यवाई शाहीन बाग तक पहुंच गई, जो मुस्लिम बहुल माना जाता है. दिल्ली के मस्लिम इलाकों में अतिक्रमण हटाने को लेकर तनाव बना हुआ है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने एमसीडी को पत्र लिखकर मुस्लिम बहुल इलाके शहीन बाग, ओखला सहित तमाम जगह से अतिक्रमण हटाने की अपील की थी, जिस पर काफी तनाव बना हुआ है. दिल्ली के मुगलों और मुस्लिम के नाम पर जो बस्तियां हैं, उनके नाम बदलने की मुहिम बीजेपी चला रही है. इससे दिल्ली में तनाव बना हुआ है.
हिमाचल में खालिस्तानी समर्थक अचानक सक्रिय
हिमाचल प्रदेश में इसी साल आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले अचानक खलिस्तान का मुद्दा गर्मा गया है. हिमाचल प्रदेश सरकार ने इस साल मार्च में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मारे गए खालिस्तानी आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले के झंडे वाले वाहनों के राज्य में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था. ऐसे में आतंकवादी संगठन सिख फॉर जस्टिस बौखलाया हुआ है.
चुनावी सरगर्मियों के बीच विधानसभा के बाहर खालिस्तान के समर्थन में झंडे लगाए गए तो गुरपतवंत सिंह पन्नू ने हिमाचल के सीएम जयराम ठाकुर को धमकी दी है. हालांकि, इससे पहले जून 2021 में भी प्रसिद्ध नैना देवी मंदिर के पास एक सड़क के किनारे लगे मील पत्थर पर लिखा गया था, 'खालिस्तान की सीमा यहां से शुरू होती है.' इस तरह हिमाचल में चुनाव से पहले तनाव बन गया है.