कांग्रेस के राज्यसभा के दस उम्मीदवारों की कांग्रेस की सूची ने पार्टी के बाहर कई लोगों को चौंका दिया होगा, लेकिन पार्टी के वफादारों और 'दरबार की साज़िशों' और खेल से परिचित लोगों को ये दांव समझ में आता है. ये वैसे खेल हैं जो अक्सर ग्रैंड ओल्ड पार्टी में खेले जाते हैं. राज्यसभा की लिस्ट ने उदयपुर चिंतन शिविर में लिए गए फैसलों का मजाक बना दिया है, जैसे कि एक परिवार-एक टिकट, युवाओं और सीनियर नेताओं को 50- 50 टिकट, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व.
राजीव शुक्ला, प्रमोद तिवारी, मुकुल वासनिक, रणदीप सिंह सुरजेवाला और रंजीता रंजन को लिस्ट में शामिल करना दिखाता है कि सोनिया गांधी वफादारी को इनाम देती हैं. जयराम रमेश, पी चिदंबरम, विवेक तन्खा, अजय माकन और इमरान प्रतापगढ़ी ने अपनी 'यूटिलिटी' फैक्टर के आधार पर इस लिस्ट में जगह पाई है.
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा की अनुपस्थिति इसे और भी पेचीदा बना देती है क्योंकि इन दो असंतुष्टों को हाल ही में AICC की राजनीतिक मामलों की समिति में शामिल किया गया था. लेकिन राज्यसभा की सीट के बिना, कांग्रेस संसदीय बोर्ड की नकल जैसे दिखने वाले इस शक्तिहीन और ताकतविहान संगठन में होने का कोई मतलब नहीं है. राजस्थान में तीन 'बाहरी' लोगों की कांग्रेस पसंद- सुरजेवाला, वासनिक और तिवारी और एक अन्य पार्टी शासित राज्य छत्तीसगढ़ से दो नाम- शुक्ला और रंजीता रंजन, सबसे चौंकाने वाला है.
इसके अलावा दो मुख्यमंत्रियों का पूरा सरेंडर भी काफी चौंकाने वाला है. क्योंकि अशोक गहलोत और भूपेश बघेल ने अपने राज्य से किसी नेता को सपोर्ट नहीं किया.
अगर एक और स्तर पर देखें तो कांग्रेस की लिस्ट 'दरबार की साज़िशों' की अभिव्यक्ति है.
जो हो न सका!
10 मार्च, 2022 को राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के कुछ दिन बाद ही असंतुष्टों के एक समूह ने पार्टी में बगावत करने की कोशिश की थी. लेकिन पेशेवर मजबूरियों, संसाधनों की कमी, नेतृत्व का सवाल और साहस की कमी ने कांग्रेस में विभाजन को बचा लिया.
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विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि [13-15 मई, 2022 के उदयपुर चिंतन शिवर से पहले आयोजित] एक सभा में, एक अनुभवी नेता ने कथित तौर पर एक प्रमुख वकील को इसका नेतृत्व करने के लिए कहा था. उन्हें आकर्षक कानूनी पेशा छोड़ने और संसाधन जुटाने के बदले में सहायता की पेशकश की गई थी. ये वकील बड़े महात्वाकांक्षी माने जाते हैं और मोदी पर लगातार हमला करते रहते हैं. हालांकि, इस वकील ने इस ऑफर को रिजेक्ट कर दिया और कहा कि वे विपक्ष की एकता और मजबूत करने के लिए दूसरे उपाय पर गौर करेंगे इसके बजाय कि वे कांग्रेस से टूटे हुए एक गुट का नेतृत्व करें.
हरियाणा के एक और कद्दावर नेता यहां मुकर गए. उन्होंने कहा कि वे अक्टूबर 2024 में कांग्रेस को लीड करने के लिए एक और कोशिश करेंगे. हालांकि इस असंतुष्ट नेता और उनके बेटे को बाद में कांग्रेस में समायोजित कर लिया गया है.
कानूनी पृष्ठभूमि के तीन और व्यक्ति जो खुद को असंतुष्टों के रूप में देखते हैं, उन्होंने भी किसी भी अलग समूह का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया. इनके तर्क बड़े मजेदार थे. एक वकील ने खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया, दूसरे ने संसद में अपने शेष कार्यकाल की बात की और तीसरे ने कांग्रेस की अंतरिम प्रमुख सोनिया गांधी के लिए सम्मान का हवाला दिया. दरअसल सोनिया के प्रति कृतज्ञता और वफादारी की भावना सभी असंतुष्टों के बीच एक सामान्य धागा रहा है जो उन्हें पार्टी से जोड़े रहता है.
इसके अलावा हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और कई दूसरे राज्यों के नेता ने भी कहा कि एक अलग पहचान के तहत नई जुटान से न तो विधानसभा चुनाव में फायदा होगा और न ही लोकसभा चुनाव में. असंतुष्ट नेताओं ने राजस्थान के एक प्रमुख कांग्रेस नेता को अपना चेहरा चुनने की कोशिश की, लेकिन दूसरे बागियों ने इस नेता के ट्रैक रिकॉर्ड की ओर इशारा किया और कहा कि ये नेता जानबूझ कर बागी नेताओं के खेमे से दूर रहे हैं.
असंतुष्टों के बीच सोनिया का 'जासूस'
कांग्रेस के विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि असंतुष्ट नेताओं के बीच जो भी खिचड़ी पकती थी इसकी जानकारी सोनिया गांधी को हो जाती थी. कहा जाता है कि असंतुष्टों के ग्रुप में सोनिया के एक से ज्यादा जासूस थे. जाहिरा तौर पर, सोनिया इसे ज्यादा तवज्जो नही देती थीं, लेकिन राज्यसभा की सीटों की सूची को अंतिम रूप देते हुए, उन्होंने उन चीजों पर ध्यान दिया जो कि पार्टी में चल रही थीं. इस तरह से राज्यसभा के लिस्ट से पता चलता है कि सोनिया कुछ प्रमुख असंतुष्टों के बारे में क्या महसूस करती हैं?
अब तक सब ठीक है!
लेकिन सवाल है कि आगामी भविष्य में कांग्रेस का क्या होने वाला है. 2024 लोकसभा चुनाव से पहले गुजरात, हिमाचल, जम्मू और कश्मीर, कर्नाटक, तेलंगाना और अन्य सात राज्यों में चुनौतियों का सामना करने के लिए कोई टास्क फोर्स समूह नहीं है.
संक्षेप में, कांग्रेस के सभी नेताओं-वफादारों और असंतुष्टों ने एक साथ तैरने या एक साथ डूबने का फैसला किया है. हालांकि निश्चित रूप से इनमें कुछ ऐसे व्यक्ति हैं जो राज्यसभा सीटों को पाने में विफल रहने के बाद कांग्रेस छोड़ सकते हैं.