scorecardresearch
 

नेतृत्व पर नाराजगी: कांग्रेस के लेफ्टिनेंट आखिर क्यों हुए बागी?

कांग्रेस में बगावत का बिगुल फूंकने वाले नेता अलग-अलग समय पर पार्टी अध्यक्ष के लेफ्टिनेंट की भूमिका में रह चुके है. इसके बावजूद क्या मजबूरी थी कि पार्टी के दिग्गज नेताओं को सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखनी पड़ी है? ये वो नेता हैं, जिन्हें भविष्य की चिंता सता रही है. ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बनाने और संगठन में अपना दबदबा बरकरार रखने के तहत चिट्ठी लिखी गई है. 

Advertisement
X
राहुल गांधी और सोनिया गांधी
राहुल गांधी और सोनिया गांधी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • गुलाम नबी का राज्यसभा का टर्म पूरा हो रहा
  • जितिन प्रसाद की राजनीतिक दाल यूपी में नहीं गल रही
  • मिलिंद देवड़ा राज्यसभा सीट न मिलने से नाराज

कांग्रेस में नेतृत्व को लेकर 23 वरिष्ठ नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में आमूलचूल बदलाव की मांग की है, जिसके बाद पार्टी में अच्छी खासी उथल-पुथल है. हालांकि, कांग्रेस में बगावत का बिगुल फूंकने वाले नेता अलग-अलग समय पर पार्टी अध्यक्ष के लेफ्टिनेंट की भूमिका में रह चुके है. इसके बावजूद क्या मजबूरी थी कि पार्टी के दिग्गज नेताओं को सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखनी पड़ी है? 

Advertisement


दरअसल, कांग्रेस के एक धड़े का मानना है कि पार्टी के अंदर वरिष्ठ नेताओं का एक बड़ा तबका है, जिन्हें पार्टी से ज्यादा अपने भविष्य की चिंता सता रही है. इन कांग्रेसी दिग्गजों की 12 तुगलक लेन (राहुल गांधी का आवास) में पकड़ ना होने के चलते पार्टी में क्या चल रहा है, इसका ना तो पता चलता है और ना ही इन दिग्गज नेताओं से कोई राजनीतिक सलाह मशवरा इन दिनों किया जाता है. ऐसे में कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बनाने और संगठन में अपना दबदबा बरकरार रखने के तहत चिट्ठी लिखी गई है.

गुलाम नबी आजाद


सोनिया गांधी को लिखे गए पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में गुलाम नबी आजाद का नाम भी शामिल है. आजाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं, लेकिन पार्टी आलाकमान उनकी परफॉर्मेंस से बहुत खुश नहीं है. उनका राज्यसभा का कार्यकाल अगले साल 10 फरवरी को पूरा हो रहा है. ऐसे में उन्हें राज्यसभा में एंट्री मिलनी लगभग नामुमकिन सी लग रही है. वहीं, एक वक्त था जब अंबिका सोनी का कार्यकाल खत्म होने से एक साल पहले ही पार्टी ने उन्हें राज्यसभा में भेज दिया था और वह 6 साल तक अपने पद पर बनी रहीं थीं. 

Advertisement


गुलाम नबी आजाद को भी उम्मीद थी कि उनके साथ भी ऐसा ही होगा, लेकिन हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में ना तो उनसे कोई राय ली गई और ना ही उनको दोबारा राज्यसभा देने का किसी तरह से फैसला हुआ. ऐसे में पार्टी उनकी जगह किसी दूसने नेता को राज्यसभा में विपक्ष का नेता बना सकती है. राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे की एंट्री इस ओर इशारा करती है. कांग्रेस आलाकमान ने खड़गे के रूप में शायद नेता विपक्ष के लिए आजाद का विकल्प ढूंढ लिया है. गुलाम नबी आजाद राज्यसभा की कुर्सी गंवाने के बाद वह संगठन के अंदर अपनी जगह बनाए रखना चाहते हैं? 

मिलिंद देवरा और मुकुल वासनिक


कांग्रेस हाईकमान को लिखी गई चिट्टी में पूर्व मंत्री मिलिंद देवड़ा और मुकुल वासनिक भी हस्ताक्षर करने वाले नेताओं में हैं. ये दोनों नेता महाराष्ट्र से आते हैं और अभी किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं. ऐसे में राज्यसभा की आस लगाए बैठे हुए थे, लेकिन उनके हाथ निराशा ही लगी. पिछले साल मुकुल वासनिक का नाम कांग्रेस अध्यक्ष के नाम पर उछाला गया था. उसके बाद से ही पार्टी आलाकमान उनकी महत्वाकांक्षाओं को लेकर सचेत हो गया है.

 
वहीं, दूसरी तरफ मिलिंद देवड़ा के एक समय राहुल गांधी से रिश्ते अच्छे रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र से राज्यसभा नहीं मिलने से देवड़ा नाराज हैं. यही वजह है कि पार्टी के अंदर उठी आवाजों को लेकर वह काफी मुखर रहे हैं. उन्होंने पार्टी नेतृत्व को भी घेरा था, जिसकी वजह से पार्टी आलाकमान बहुत खुश नहीं है. सूत्रों की माने तो मिलिंद देवड़ा लगातार अपने लिए बीजेपी में विकल्प तलाश रहे हैं. कई बार ऐसा देखा गया है जब वो राहुल के ट्वीट के खिलाफ ट्वीट करते दिखे. 

Advertisement

मनीष तिवारी-शशि थरूर


कांग्रेस नेतृत्व को लेकर लिखे गए पत्र में हस्ताक्षर करने वाले नेताओं में मनीष तिवारी और शशि थरूर भी शामिल हैं. मनीष तिवारी और शशि थरूर अच्छे वक्ता हैं. इन दोनों नेताओं का कद और राजनीतिक प्रोफाइल अधीर रंजन चौधरी से ज्यादा ग्लैमरस लगता है. इसके बावजूद राहुल गांधी ने अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में संसदीय दल का नेता बनाया, जिसके चलते दोनों नेता नाराज माने जा रहे हैं. 


यूपीए-दो सरकार को लेकर पार्टी में उठे सवालों पर भी मनीष तिवारी ने काफी आक्रामक रुख अपनाया था. यह सवाल भी उठाए थे कि 2014 में हार के साथ 2019 के हार के कारणों पर भी विचार किया जाना चाहिए. इतना ही नहीं, ये दोनों नेता सोशल मीडिया पर कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व को लेकर अपनी बात करते आ रहे हैं. राहुल गांधी के डिजाइन करने के बाद प्रियंका गांधी के नाम का कैंपेन चलाया था. बताया जाता है कि पार्टी शीर्ष नेतृत्व के दखल के बाद ही शशि थरूर शांत हुए थे. 

राज्यसभा सीट का खतरा


कांग्रेस में आमूलचूल बदलाव के लिए लिखे गए पत्र में राज बब्बर, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा जैसे दिग्गज कांग्रेसी नेताओं ने भी हस्ताक्षर किए हैं. इनमें से ऐसे कई नेता हैं, जिनका राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो रहा है.  राज बब्बर का कार्यकाल इसी साल 25 नवंबर को खत्म हो रहा है. राज बब्बर उत्तराखंड से सांसद हैं और अब दोबारा से उच्चसदन में उनकी वापसी संभव नहीं है. लोकसभा चुनाव में हार के बाद यूपी प्रदेश अध्यक्ष के पद से भी हटाया गया है, इस तरह से संगठन में भी कोई पद नहीं है. 

Advertisement


वहीं, कपिल सिब्बल और आनंद शर्मा का कार्यकाल 2022 में खत्म हो रहा है. कपिल सिब्बल न तो कांग्रेस कार्यसमिति में हैं और ना ही पार्टी आलाकमान की गुड बुक में आते हैं. वहीं, 2019 में पार्टी की पब्लिसिटी और कैंपेन को लेकर आनंद शर्मा और सैम पित्रोदा की रार किसी से छिपी नहीं है. सिब्बल सपा के सहयोग से राज्यसभा में आए थे और अब दोबारा से इनकी वापसी संभव नहीं है. ऐसे में दोनों नेता संगठन में अहम भूमिका चाहते हैं, लेकिन फिलहाल ये भी संभव नहीं है. जबकि, आनंद शर्मा की नजर राज्यसभा सदन के नेता की कुर्सी पर है, लेकिन खड़गे की राज्यसभा में एंट्री ने उनके अरमानों पर ग्रहण लगा दिया है. यही वजह है कि आनंद शर्मा बेचैन नजर आ रहे हैं. 

जितिन प्रसाद

प्रियंका गांधी के महासचिव बनने के बाद से जितिन प्रसाद की दाल उत्तर प्रदेश में गल नहीं रही. प्रदेश अध्यक्ष के लिए जितिन प्रसाद ने बहुत कोशिश की, लेकिन बाजी अजय लल्लू के हाथ लगी. जितिन के इलाके शाहजहांपुर में भी अगर कांग्रेस का प्रदर्शन होता है तो उसकी हवा उनको नहीं लगती है.

हालांकि, कांग्रेस कार्यसमिति में मेंबर हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि उन्होंने कभी भी किसी बैठक में पार्टी नेतृत्व या पार्टी की नीतियों को लेकर सवाल नहीं खड़े किए. जितिन के लिए भी यह वर्चस्व की लड़ाई है और आने वाले समय में वह खुद को प्रासंगिक रखने की कोशिश में हैं. यही वजह है कि वह अपने ब्राह्मण सम्मेलन तो करते हैं पर उसका कोई सपोर्ट उनको प्रदेश कांग्रेस से नहीं मिलता. 

Advertisement


बता दें कि कांग्रेस नेतृत्व को लेकर पार्टी के दिग्गजों में विचार-विमर्श चल रहा था, उस समय भी एक बड़े नेता ने इन लोगों को सोनिया गांधी से मिलकर अपनी बात रखने को कहा था, लेकिन इन नेताओं ने चिट्ठी लिखकर अपनी बात कहना सही समझा. यह भी महत्वपूर्ण है कि उन्होंने चिट्ठी ऐसे वक्त लिखी जब सोनिया गांधी की तबीयत काफी खराब है और वह अस्पताल में भरती थीं. यही वजह है कि चिट्टी अब बम बनकर फूटी है और कांग्रेस में उथल-पुथल मच गई है.
 

Advertisement
Advertisement