Congress President Election: कांग्रेस के नए अध्यक्ष के लिए वोटिंग जारी है. मुकाबला शशि थरूर और मल्लिकार्जुन खड़गे के बीच है. दो दशक के बाद यह पहला मौका है जब गांधी परिवार के बाहर का कोई सदस्य कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा. वोटों की गिनती 19 अक्टूबर को होगी और उसी दिन नतीजे घोषित कर दिए जाएंगे. अध्यक्ष पद के चुनाव में भले ही खड़गे का पल्ला भारी हो, लेकिन शशि थरूर हार कर भी इतिहास रच सकते हैं अगर एक हजार हासिल करने में कामयाब रहते हैं?
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में 9300 डेलीगेट्स मतदान करेंगे और यह मतदान सीक्रेट बैलेट के जरिए हो रहा है. बीते दिनों में मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर ने तमाम प्रदेश कांग्रेस कमेटियों के दफ्तर में जाकर अपने लिए समर्थन मांगा. ऐसे में थरूर को मुश्किलों का जरूर सामना करना पड़ा है, लेकिन कांग्रेस में बड़े बदलाव के कई अहम वादे किए हैं. ऐसे में थरूर चुनावी मैदान में उतरकर पहली पंक्ति के नेता के तौर पर खुद को तो खड़ा कर ले गए हैं, लेकिन 882 से ज्यादा वोट हासिल करने में कामयाब रहते हैं तो इतिहास भी रच देंगे.
तीसरा मुकाबला
दरअसल, पिछले तीन दशक में दो बार कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए हैं और अब तीसरी बार मुकाबला है. नरसिंहा राव के बाद साल 1997 में कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ था, जिसमें गांधी परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ा था और न ही किसी को समर्थन किया था. साल 1997 में हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट जैसे दिग्गज नेता किस्मत आजमाने उतरे थे.
सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट के बीच त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था. महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों को छोड़कर कांग्रेस की सभी प्रदेश इकाइयों ने सीताराम केसरी का समर्थन किया था. इसके बावजूद सीताराम केसरी ने 6224 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी जबकि शरद पवार जैसे नेता को 882 मिलव सके थे और राजेश पायलट को 354 वोटों से संतोष करना पड़ा था.
सोनिया और जितेंद्र प्रसाद के बीच मुकाबला
1997 के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए वोटिंग की नौबत साल 2000 में तब आई, जब सोनिया गांधी को कांग्रेस के भीतर से दिग्गज नेता जितेंद्र प्रसाद से चुनौती मिली. इस चुनाव में सोनिया गांधी को 7448 वोट मिले थे तो जितेंद्र प्रसाद जैसे नेता को महज 94 वोटों से संतोष करना पड़ा था. इसके बाद से लगातार सोनिया गांधी अध्यक्ष रही और दिसंबर 2017 में उनकी जगह राहुल गांधी निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए थे.
सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ने पर 24 साल बाद गांधी-परिवार से बाहर के नेता के पास पार्टी की कमान होगी. मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर चुनावी मैदान में एक-दूसरे के मुकाबले खड़े हैं. गांधी परिवार ने किसी भी उम्मीदवार के पक्ष में कोई समर्थन नहीं किया है. इसके बावजूद औपचारिक रूप से माना जा रहा है कि खड़गे को गांधी परिवार का समर्थन हासिल है. ऐसे शशि थरूर को जरूर चुनाव में मुश्किलों को सामना जरूर करना पड़ा है, लेकिन अपने आप को कांग्रेस में बदलाव लाने वाले उम्मीदवार के तौर पर पेशकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है.
कांग्रेस हाईकमान के साथ खड़गे की निकटता भी किसी से छिपी नहीं है जबकि कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं यानी जी-23 की सूची में शशि थरूर भी शामिल रहे हैं. ऐसे में खड़गे का पलड़ा स्वाभाविक रूप से भारी दिख रहा है, पर शशि थरूर अपनी लोकप्रियता के भरोसे जीत की आस लगाए हैं. कांग्रेस को दोबारा से खड़ा करने के लिए थरूर ने 10 प्वाइंट का घोषणा पत्र जारी किया था तो एक-एक राज्य में जाकर पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से सीधे मुलाकात की थी.
2009 में कांग्रेस में आए थे थरूर
शशि थरूर भले ही मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष पद के चुनाव में ना हरा पाएं, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक ये मानते हैं कि वो अपने आप को कांग्रेस नेताओं की पहली पंक्ति में शामिल करने में जरूर कामयाब रहेंगे. 66 साल के शशि थरूर ने साल 2009 में कांग्रेस का दामन थामा और तब से लगातार चुनाव जीत रहे हैं और तीसरी बार सांसद है. वहीं, खड़गे के पास लंबा राजनीतिक अनुभव है. सीएम अशोक गहलोत से लेकर मनीष तिवारी तक ने खड़गे के पक्ष में मतदान करने की अपील की है.
शशि थरूर अकेले ही चुनावी मैदान में डटे रहे. ऐसे में पार्टी के कुल 9300 डेलीगेट्स में से अगर एक हजार वोट भी हासिल करने में वो कामयाब रहते तो निश्चिततौर पर इतिहास रच देंगे, क्योंकि शरद पवार जैसे नेता 882 वोट ही हासिल कर सके थे जबकि महाराष्ट्र में तीन बार सीएम रहे और केंद्र में मंत्री रहे हैं. इसके अलावा राजेश पायलट जैसे नेता को 354 वोट मिले तो जितेंद्र प्रसाद को 94 वोट हासिल हुए थे. ऐसे में शशि थरूर अगर इन तीनों ही नेताओं से ज्यादा वोट हासिल करने में सफल रहते हैं तो सियासी तौर पर बड़ी उपलब्धि होगी.
कांग्रेस के आंतरिक सियासी समीकरणों को भली भांति समझ रहे शशि थरूर अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन के बाद से ही गांधी परिवार के साथ किसी तरह का बैर-भाव नहीं होने का संदेश दे रहे हैं. चाहे चुनाव प्रचार के दौरान उनके वीडियो संदेश हों, राजनीतिक बयान या सोशल मीडिया पोस्ट, हर जगह वे चुनाव में न केवल गांधी परिवार के तटस्थ रहने की बात कर रहे हैं बल्कि अपनी दूरियां घटाने का भी नेताओं-कार्यकर्ताओं को संदेश दे रहे हैं. खड़गे जैसे नेता से मुकाबला होने की सियासी चुनौती को शशि थरूर समझ रहे हैं.
शशि थरूर ने लखनऊ में कहा है कि 'खड़गे साहब वरिष्ठ नेता हैं अगर वे जीतेंगे तो हम सब उनके साथ सहयोग और काम करेंगे. पार्टी हमारा घर और परिवार है.' ऐसे में थरूर ने अध्यक्ष पद के चुनाव में उतरकर खुद को कांग्रेसे के पहली पंक्ति के नेताओं में खड़ा कर लिया और अब अगर एक हजार वोट हासिल करने में कामयाब रहते हैं तो सियासी तौर पर इतिहास भी लिख देंगे?