प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने देश की राजनीति में ऐसी लकीर खींची है, जिसमें केंद्र से लेकर देश के तमाम राज्यों में बीजेपी का कब्जा है और कांग्रेस के पास गिने चुने राज्य बचे हैं. ऐसे में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने देश की सियासत में अपनी जगह बनाने की बड़ी चुनौती है. यही वजह है कि कोरोना संकट के बादल छटते ही राहुल गांधी ने किसानों के मुद्दे को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ हल्ला बोल दिया है. राहुल सड़क पर उतरकर संघर्ष के जरिए विपक्ष के नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने की कवायद में जुट गए हैं.
दरअसल, देश की राजनीति की हवा जिस तरह बह रही है ऐसे में माना जा रहा है कि राहुल गांधी सिर्फ सड़क पर उतरकर संघर्ष के जरिए खुद के साथ-साथ पार्टी को भी मजबूत कर सकते हैं. ऐसे में किसान वोटबैंक एक ऐसा सेफ पॉकेट है, जिसके जरिए अब राहुल गांधी ने पीएम मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ राहुल सड़क पर उतर गए हैं और मोदी सरकार को उद्योगपतियों की सरकार और कॉरपोरेट सेक्टर का हितैषी बताते रहे हैं.
कांग्रेस के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताता है कि राहुल गांधी ने पंजाब दौरे पर पार्टी नेताओं से कहा है कि यह संघर्ष जारी रहना चाहिए. देश के तमाम मुद्दों को लेकर सड़क पर ऐसे ही उतरना होगा और आंदोलन करने होंगे. इसका मतलब साफ है कि राहुल गांधी ने तय कर लिया है कि वो लगातार सड़क पर उतरकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेंगे. ऐसे में कांग्रेसी नेताओं को भी अब अपने एसी कमरे से बाहर निकलकर सड़क पर उतरकर पसीना बहाना होगा.
हाथरस पर राहुल-प्रियंका का मोर्चा
कोरोना संकट के बादल छटते ही राहुल गांधी और यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी ने हाथरस के 'मौके' को लपक लिया है. इससे दोनों के अपने अपने फायदे हैं. वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि प्रियंका को उत्तर प्रदेश की राजनीति में इससे फायदा होने की उम्मीद है तो राहुल गांधी को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि को मजबूत करने की है. राहुल-प्रियंका को हाथरस कांड में पीड़िता के गांव जाने के लिए संघर्ष करना पड़ा, लेकिन इसके जरिए स्ट्रीट फाइटर राजनेता के तौर पर वो अपनी छवि दिखाने में कामयाब रहे. वहीं, यूपी में दलित राजनीति करने वाली मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव दृश्य से गायब हैं, ऐसे में राहुल-प्रियंका हाथरस में दलित परिवार के साथ खड़े होकर सियासी संदेश देने में कामयाब रहे हैं.
किसानों के बीच उतरे राहुल गांधी
हाथरस के बाद राहुल गांधी कृषि कानून को लेकर पंजाब में चल रहे किसान आंदोलन में पहुंचे. राहुल पंजाब में ट्रैक्टर रैली 'खेती बचाओ यात्रा' में शामिल हुए और नरेंद्र मोदी सरकार पर जमकर हमले किए. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार काले कानून बनाकर किसानों की आजादी छीनना चाहती है लेकिन ऐसा नहीं होने दिया जाएगा और कांग्रेस की सरकार आएगी तो इन कानूनों को खत्म किया जाएगा. कृषि कानून को लेकर पंजाब में जबरदस्त किसानों में मोदी सरकार के खिलाफ गुस्सा है. ऐसे में राहुल दो दिन तक पंजाब में किसानों के बीच उनके साथ खड़े होकर राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है.
हरियाणा के किसानों को देंगे संदेश
राहुल गांधी का पंजाब के बाद हरियाणा सरकार के खिलाफ बड़े प्रदर्शन करने का प्लान है. राहुल किसानों के साथ देवीगढ़ से हरियाणा में प्रवेश करेंगे और फिर पेहवा से पीपली-निलोखेड़ी-कैथल और कुरुक्षेत्र होते हुए करनाल मंडी में अपनी यात्रा समाप्त करेंगे. कृषि कानून को लेकर हरियाणा के किसानों में काफी आक्रोश है. पिछले दिनों हरियाणा के किसान और पुलिस के बीच टकराव हो चुका है, जिसे लेकर खट्टर सरकार पर सवाल खड़े हुए थे और जेजेपी पर समर्थन वापस लेने का दबाव बनाए जाने लगा था. ऐसे में राहुल हरियाणा के किसानों के बीच पहुंचकर सियासी संदेश देने चाहते हैं.
शकील अख्तर कहते हैं कि राहुल गांधी किसानों के मुद्दे को लंबे समय से उठाते रहे हैं. राहुल भूमि अधिग्रहण बिल पर सरकार के पीछे हटने के लिए मजबूर कर चुके हैं. मौजूदा माहौल में बिना संघर्ष के कुछ मिल सकता है, लेकिन राहुल ही नहीं बल्कि कांग्रेस के नेताओं को भी सड़क पर उतरना होगा, जिसके लिए सोनिया गांधी लंबे समय से कहती रही हैं. राहुल गांधी ने कोरोना और चीन मामले पर जिस तरह से मोदी सरकार को घेरने का काम किया है वो देश की दूसरी विपक्षी पार्टी के नेता नहीं कर सके हैं. किसानों के मामले में जिस तरह से वो सड़क पर उतरे हैं, उसका देश के लोगों के बीच राजनीतिक संदेश जा रहा है.