लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) के गठबंधन ने सीटों के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में दम दिखाया. सपा कांग्रेस गठबंधन को सूबे की 80 में से 43 सीटों पर जीत मिली और पिछले चुनाव में 62 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) महज 33 सीटें ही जीत सकी. बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की बात करें तो उसे कुल 36 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. यूपी में सपा के साथ गठबंधन कर दम दिखाने के बाद कांग्रेस की नजर अब मायावती पर है.
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को इंडिया ब्लॉक में शामिल होने का न्योता दिया है. प्रमोद तिवारी ने लोकसभा चुनाव का जिक्र करते हुए कहा है कि अगर बसपा प्रमुख मायावती महागठबंधन के साथ रही होतीं तो यूपी का रिजल्ट कुछ और होता. उन्होंने दावा किया कि बसपा साथ होती तो इंडिया ब्लॉक 80 की 80 सीटें जीत लेता. प्रमोद तिवारी ने कहा कि महागठबंधन ने अपनी ओर से बहुत कोशिश की थी कि मायावती की पार्टी भी साथ आ जाए लेकिन उन्होंने (मायावती ने) अकेले ही चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था.
उन्होंने यह भी कहा कि हम हाथ पर गिन कर बता सकते हैं कि बसपा अगर हमारे साथ होती तो 16 सीटों पर नतीजे बदल जाते. जिन सीटों पर हम हारे हैं, उन सीटों पर बसपा के उम्मीदवार इतना वोट पा गए जितने मिल जाने पर हम जीत सकते थे. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने आगे कहा कि मायावती को हमारी यही सलाह है कि अगर बीजेपी को हराना चाहती हैं तो महागठबंधन के साथ आ जाएं. गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव से पहले भी कांग्रेस के नेता लगातार यह कहते रहे कि हमारे दरवाजे बसपा के लिए अंतिम समय तक खुले रहेंगे लेकिन मायावती ने एकला चलो का नारा दे दिया था.
बदली परिस्थितियों में कांग्रेस को गठबंधन की आस
मायावती ने चुनाव से पहले दो टूक कह दिया था कि हम अकेले चुनाव लड़ेंगे, बसपा किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होगी. बसपा ने अकेले चुनाव लड़ा भी. अब चुनाव संपन्न होने के बाद कांग्रेस को बसपा के गठबंधन में आने की आस है तो यह भी आधारहीन नहीं है. तब से अब तक परिस्थितियां बहुत बदल चुकी हैं. लोकसभा चुनाव में 10 सांसदों के साथ बीजेपी के बाद यूपी में दूसरे नंबर की पार्टी के रूप में उतरी बसपा इस बार खाली हाथ रह गई है. उसका वोट शेयर भी इस बार कांग्रेस से भी कम रहा है. यूपी विधानसभा में पहले से ही एक सीट है. अब लोकसभा में सूपड़ा साफ होने के बाद बसपा के अस्तित्व पर सवाल उठने लगे हैं.
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लोकसभा चुनाव 2014 में भी बसपा शून्य पर सिमट गई थी. तब भी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी थी. 2019 के चुनाव में बसपा और सपा साथ आए. बसपा गठबंधन में 10 सीटें जीत गई और सपा पांच की पांच पर ही रह गई. चुनाव नतीजों के ऐलान के बाद मायावती ने यह कहते हुए गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया था कि सपा के वोट बसपा को ट्रांसफर नहीं हुए. बसपा 10 साल बाद फिर से उसी तरह की सिचुएशन में है. कांग्रेस ने न्योता दे तो दिया है लेकिन अखिलेश का रुख क्या रहता है? नजरें इस पर भी होंगी.
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कांग्रेस क्यों चाहती है बसपा का साथ
अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि विपक्षी गठबंधन 43 सीटें जीतकर सबसे बड़ा गठबंधन बनकर उभरा है. फिर कांग्रेस क्यों चाहती है कि बसपा भी उसके साथ आ जाए? दरअसल, इसका जवाब हाल ही में आए लोकसभा चुनाव के नतीजों में छिपा है. बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने एक सीट पर एक उम्मीदवार का फॉर्मूला दिया था. यूपी में बसपा के गठबंधन से दूर रहने की वजह से यह फॉर्मूला लागू नहीं हो पाया फिर भी इंडिया ब्लॉक 43 सीटें जीतने में सफल रहा. एनडीए उतनी सीटें भी नहीं जीत सका जितनी अकेले सपा ने जीती हैं. अब कांग्रेस नेताओं को शायद ये लग रहा है कि सपा के साथ अगर बसपा भी इंडिया ब्लॉक में आ जाए तो सूबे में बीजेपी को और कम सीटों पर रोका जा सकता है.