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'चुनी हुई सरकार को LG कर रहे दरकिनार' , मनीष सिसोदिया ने उपराज्यपाल पर जमकर साधा निशाना

दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के खिलाफ एक बार फिर दिल्ली सरकार ने मोर्चा खोल दिया है. मंगलवार को डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि LG लगातार चुनी हुई सरकार को दरकिनार कर रहे हैं, जिसके कारण भारी कानूनी संकट खड़ा हो गया है.

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मनीष सिसोदिया (File Photo)
मनीष सिसोदिया (File Photo)

दिल्ली सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) के बीच घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है. मंगलवार को दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कई मुद्दों को लेकर एलजी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि LG लगातार चुनी हुई सरकार को दरकिनार कर रहे हैं, जिसके कारण भारी कानूनी संकट खड़ा हो गया है. इतना ही नहीं सिसोदिया ने अधिकारियों की खिंचाई करते हुए कहा कि वह LG के इशारे पर अवैध काम कर रहे हैं.

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सिसोदिया ने कहा कि एलजी के निर्वाचित सरकार को दरकिनार करने से अपराधियों को अदालतों से छूटने में मदद मिलेगी. सीआरपीसी की धारा 106 का जिक्र करते हुए सिसोदिया ने कहा कि अरोपी शख्स के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए मंत्री की तरफ से अभियोजन की स्वीकृति मिलना जरूरी है.
  
उन्होंने आगे कहा कि दशकों से सही कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जा रहा था, लेकिन अचानक पिछले कुछ महीनों से मुख्य सचिव आपराधिक कानूनों के प्रावधानों के खिलाफ सीधे उपराज्यपाल को अभियोजन स्वीकृति फाइलें भेज रहे हैं. डिप्टी सीएम ने कहा कि उन्होंने CS को यह बताने के लिए कहा है कि सिस्टम में बदलाव क्यों किया गया.  उन्होंने ऐसे सभी मामलों की लिस्ट सौंपने के लिए भी कहा है, जिसमें पिछले छह महीनों के अंदर अवैध तौर पर अभियोजन की स्वीकृति जारी की गई है.

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मनीष सिसोदिया ने कहा कि आईपीसी की धारा 196 कहती है कि राज्य के खिलाफ किए गए अपराधों के मामले में कोई भी अदालत राज्य सरकार की मंजूरी के बिना संज्ञान नहीं लेगी. कई जघन्य अपराध इसी श्रेणी में आते हैं. दिल्ली सरकार के कानून विभाग के मुताबिक इस कानून में 'राज्य सरकार' का अर्थ निर्वाचित सरकार है. इसका मतलब यह है कि प्रभारी मंत्री ही सक्षम प्राधिकारी है और इन सभी मामलों में मंत्री की स्वीकृति ली जानी चाहिए. मंत्री की मंजूरी लेने के बाद फाइल LG को यह तय करने के लिए भेजी जाएगी कि क्या उनका मत मंत्री के फैसले से अलग है और क्या वे इसे भारत के राष्ट्रपति को रेफर करना चाहते हैं.

सिसोदिया ने आगे कहा कि एलजी और मुख्य सचिव ने हर मामले में चुनी हुई सरकार को दरकिनार करने के अपने अति उत्साह में एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है, जिसमें गंभीर अपराध करने वाले बहुत से आरोपी छूट सकते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ महीने पहले तक यही प्रक्रिया अपनाई जा रही थी.

बता दें कि पिछले कुछ महीनों से, मुख्य सचिव ने मंत्री को दरकिनार करते हुए इन सभी फाइलों को सीधे LG को भेजना शुरू कर दिया. LG ने भी इन सभी मामलों में अप्रूवल दिया, हालांकि वे स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी नहीं हैं. इसलिए, पिछले कुछ महीनों में ऐसे सभी आपराधिक मामलों में अभियोजन पक्ष के लिए दी गई मंजूरी अमान्य है. जब आरोपी इस बात को कोर्ट में उठाएंगे तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा. 

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उप मुख्यमंत्री, जो प्रभारी मंत्री हैं, ने मुख्य सचिव को बुधवार शाम 5 बजे तक ऐसे सभी मामलों की सूची उनके सामने रखने का निर्देश दिया है, जिसमें मंत्री से मंजूरी नहीं ली गई है. मुख्य सचिव और एलजी ने दिल्ली सरकार के लिए अजीबोगरीब स्थिति पैदा कर दी है. 

क्या कहती है सीआरपीसी?

धारा 196 (1) सीआरपीसी के तहत, राज्य सरकार से अभियोजन के लिए वैध मंजूरी कुछ अपराधों के लिए एक पूर्व-आवश्यकता है. इसमें अभद्र भाषा, धार्मिक भावनाओं को आहत करना, घृणा अपराध, राजद्रोह, राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ना, दुश्मनी को बढ़ावा देना जैसे अपराध शामिल हैं. 

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