लोकसभा चुनाव के नतीजे घोषित हो चुके हैं. NDA गठबंधन को बहुमत मिला है. लेकिन INDIA ब्लॉक के प्रदर्शन ने इस चुनाव को रोमांचक बना दिया. विपक्षी दलों का गठबंधन बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को 300 के आंकड़े से नीचे सीमित करने में कामयाब रहा. वहीं बीजेपी भी बहुमत से नीचे रह गई है. ऐसे में इस बार के चुनाव और उसके नतीजों से पांच बड़ी बातें निकलकर सामने आती हैं.
1. एनडीए को मिलती बढ़त पर लगाम: INDIA ब्लॉक ने इस बार के लोकसभा चुनाव में 'मोदी मैजिक' फैक्टर को डेंट पहुंचाया है. पूरे चुनाव में बीजेपी ने मोदी फैक्टर को कल्याणवाद, राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पहचान के आधार पर खूब भुनाने की कोशिश की थी. न केवल विपक्ष ने आक्रामक और ध्रुवीकरण अभियान के बावजूद एनडीए को 300 से कम सीटों पर सफलतापूर्वक रोक दिया, बल्कि कांग्रेस ने भी 2019 की तुलना में 99 सीटें हासिल कर अपनी संख्या दोगुनी की. भाजपा तीन कार्यकालों में पहली बार अपने दम पर 272 के बहुमत के आंकड़े को पार नहीं कर सकी और 240 पर सिमट गई.
2. भाजपा-एनडीए अपने ही जाल में फंसी: भाजपा-एनडीए की प्रचार मशीनरी का '400 पार' का नारा इस चुनाव में उलटा पड़ गया. कारण, जब इतना बड़ा टारगेट सेट किया गया हो और एग्जिट पोल से लेकर राजनीतिक विश्लेषक तक ने नारे को सटीक बताया तो तब बीजेपी की 240 सीटों की जीत से मोदी फैक्टर को तगड़ा झटका लगता दिखता है.
3. भाजपा में क्षेत्रीय नेताओं का हाशिए पर जाना: भाजपा वसुंधरा राजे जैसे अपने क्षेत्रीय दिग्गज नेताओं का सही से इस्तेमाल करने में विफल रही, जो राजस्थान में कांग्रेस की वापसी को रोक सकते थे. कुछ लोग ऐसा भी कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ को राज्य के बाहर प्रचारक के रूप में प्रभावी ढंग से इस्तेमाल नहीं किया गया.
4. गांधी भाई-बहन का सस्पेंस सुलझा: अब गांधी भाई-बहन यानी राहुल-प्रियंका का सस्पेंस क्लियर हो गया है. इससे पहले तक चर्चाओं का बाजार गर्म था कि अमेठी और रायबरेली से कौन चुनाव लड़ेगा. प्रियंका गांधी का नाम दोनों सीटों पर प्रबल था. लेकिन उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा. राहुल गांधी ने केरल में वायनाड और उत्तर प्रदेश में रायबरेली दोनों सीटें जीत ली हैं. वहीं अमेठी से पार्टी ने कार्यकर्ता के.एल शर्मा को उतारा था. जिन्होंने जीत दर्ज की. इस बार कांग्रेस के वोट शेयर में वृद्धि यह भी साबित करती है कि राहुल की रणनीति कारगर रही और उनके नेतृत्व में भारत जोड़ो यात्रा ने इसमें अहम भूमिका निभाई. 19 जून को 54 साल के होने वाले राहुल एक स्वीकार्य और सम्माननीय नेता बन गए हैं, जबकि प्रियंका गांधी एक प्रभावी अभियान योजनाकार के रूप में उभरी हैं. माना जा रहा है कि आगे भी यह जोड़ी ऐसे ही कमाल दिखाती रहेगी.
5. दलित वोट दिल्ली दरबार को तोड़ सकते हैं या बना सकते हैं: इस चुनाव में यह भी साबित हो गया है कि नए समीकरणों के साथ, दलित वोट अब दिल्ली के सपने को बना या बिगाड़ सकते हैं. सभी की निगाहें इस साल अक्टूबर में हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों पर हैं, जो बताएंगे कि क्या दलित वोटबैंक एनडीए से छिटक रहा है और INDIA ब्लॉक में शामिल हो रहा है.