चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे को लेकर अधिक पारदर्शिता बरतने के लिए कमर कस ली है. इस संबंध में आयोग ने केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय को एक पत्र लिखकर अपनी कार्ययोजना का मसौदा पेश किया है.
चुनाव में काले धन के इस्तेमाल पर लगाम लगाने के लिए चुनाव आयोग ने गुमनाम चंदे की सीमा 20,000 रुपये से घाटकर 2,000 रुपये कर दी है.
आयोग के इस मसौदे के मुताबिक, किसी भी राजनीतिक पार्टी को मिलने वाला चंदा कुल चंदे का 20 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए. इतना ही नहीं, किसी भी स्थिति में नगद चंदा 20 करोड़ से अधिक नहीं होना चाहिए. इससे राजनीतिक पार्टियों में कूपन सिस्टम के जरिए वसूले जाने वाले नकद और बेहिसाब चंदे की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी.
नए प्रस्ताव के तहत राजनीतिक पार्टियों को 2,000 रुपए से ज्यादा के नगद चंदे का ब्योरा भी आयोग के साथ साझा करना होगा.
अब तक आयोग में जमा कराए गए राजनीतिक दलों के सालाना आय-व्यय ब्यौरे के विवरण में कुछ दल तो कई वर्षों से यही लिखते आ रहे हैं कि हमें 20,000 रुपए से ज्यादा का नगद चंदा किसी आदमी या संस्था ने नहीं दिया. लिहाजा नियमानुसार हम उसका ब्योरा आयोग को नहीं दे रहे.
भारतीय जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 29c के मुताबिक, पार्टियों को किसी भी व्यक्ति या संस्था से 20,000 रुपए से अधिक राशि का नगद चंदा मिलने पर सारा ब्योरा आयोग के साथ साझा करना होता है. इसके साथ ही दलों को अपने सालाना आय-व्यय ब्यौरे के जरिए साझा करना होता है.
लेकिन चुनाव आयोग के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने पर इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदे का लेन-देन करना सबके लिए अनिवार्य होगा. इससे काले चंदे का गोरखधंधा बंद होगा. पारदर्शिता आएगी.
नगद चंदे की सीमा तय होने पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
चुनाव आयोग के नगद चंदे की सीमा तय होने के खबर मिलने पर राजनीतिक दलों में हलचल शुरू हो गई है. सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने विरोध किया है.
नगद चंदा लेने के लिए चर्चित बीएसपी के नेता और सांसद कुंवर दानिश अली ने इस योजना पर निशाना साधते हुए कहा है कि इससे बड़े राजनीतिक दलों को ही लाभ होगा. लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने वाले क्षेत्रीय दल पिसकर रह जाएंगे. इसकी वजह से सभी दलों को चुनाव में समान अवसर नहीं मिल सकेंगे क्योंकि अधिकतर क्षेत्रीय दलों का आधार आम आदमी होते हैं कोई कॉरपोरेट नहीं. आम आदमी अपनी जमा पूंजी में से छोटी रकम का ही नकद चंदा देते हैं, कोई कॉरपोरेट की तरह इलेक्टोरल बॉन्ड्स नहीं देते.
बिहार और यूपी की कई क्षेत्रीय पार्टियों ने भी चुनाव आयोग और कानून एवं न्याय मंत्रालय को अपनी राय भेजनी शुरू कर दी है.
चुनाव आयोग का कागजी राजनीतिक पार्टियों पर एक्शन
इससे पहले चुनाव आयोग ने सिर्फ कागज पर चल रहीं राजनीतिक पार्टियों पर एक्शन लिया था. ऐसी 86 राजनीतिक पार्टियों को आयोग ने हटा दिया है. चुनाव आयोग ने रजिस्टर्ड लेकिन गैर मान्यता प्राप्त दलों की सूची से 253 निष्क्रिय हो चुके राजनीतिक दलों को भी हटा दिया है. इन पार्टियों के चुनाव चिह्न भी रद्द कर दिए गए हैं.
आयोग ने इनको सूची से हटाने के साथ ही कारण बताओ नोटिस जारी किया है. पूछा गया है कि क्यों न उनके खिलाफ समुचित कानूनी और दंडात्मक कार्रवाई की जाए.