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EC ने किस आधार पर शिंदे को सौंपी शिवसेना? जानें बालासाहेब की सियासी विरासत छिनने के बाद उद्धव के पास क्या है विकल्प

शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की सियासी विरासत पर दावा करने वाले उद्धव ठाकरे गुट को करारा झटका लगा है. क्योंकि उद्धव ठाकरे के हाथ से पार्टी का नाम और निशान फिसल गया है. चुनाव आयोग ने शिवसेना पर नियंत्रण का हक एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट के हाथों में दे दिया है. ऐसे में ये जानना जरूरी है कि EC ने ये फैसला किस आधार पर लिया. साथ ही उद्धव के पास अब क्या विकल्प है?

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EC ने शिवसेना का नाम और पार्टी का सिंबल एकनाथ शिंदे को सौंप दिया है (फाइल फोटो)
EC ने शिवसेना का नाम और पार्टी का सिंबल एकनाथ शिंदे को सौंप दिया है (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र में शिवसेना के नाम और निशान को लेकर लंबे समय से चली आ रही तनातनी अब खत्म हो गई है. चुनाव आयोग ने पार्टी का नाम और निशान एकनाथ शिंदे गुट को सौंप दिया है. एकनाथ शिंदे का गुट अब से शिवसेना कहलाएगा और उनका चुनाव चिह्न तीर-कमान होगा. चुनाव आयोग ने चुनाव चिह्न (रिजर्वेशन एंड अलॉटमेंट) ऑर्डर 1968 के आधार पर फैसला लिया है. इलेक्शन कमीशन इस बात का फैसला करने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है कि चुनाव चिह्न किसे मिलेगा.

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इस फैसले पर पहुंचने से पहले चुनाव आयोग ने पार्टी संविधान के उद्देश्यों पर विचार किया. क्योंकि एकनाथ शिंदे गुट ने दावा किया था कि उद्धव गुट पार्टी के उद्देश्यों और लक्ष्यों से विचलित हो गया है. इसके चलते वह कई विचारधाराओं वाले दलों के साथ गठबंधन बनाने में लगे हुए हैं. यह पार्टी में असहमति और निराशा की मूल वजह बन गया है. 

वहीं, उद्धव ठाकरे गुट ने दावा किया था कि पार्टी संविधान के अनुच्छेद-5 में वर्णित शिवसेना की विचारधारा ये है कि पार्टी तर्कसंगत धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और राष्ट्रीय अखंडता के लिए प्रतिबद्ध होगी. इन लोकाचारों का पालन करने से कोई विचलित नहीं हुआ है.

चुनाव आयोग ने पाया कि जिस पार्टी संविधान पर उद्धव ठाकरे गुट काफी भरोसा कर रहा था वह अलोकतांत्रिक था. इतना ही नहीं, उद्धव ठाकरे द्वारा साल 2018 में किए गए पार्टी के संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के बारे में आयोग के कहने के बावजूद EC को सूचित नहीं किया गया था.

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वोटों के गणित में किसे मिला बहुमत?

चुनाव आयोग ने अपने 78 पेज के फैसले में कहा कि विधान मंडल के सदन से लेकर संगठन तक में बहुमत शिंदे गुट के ही पास दिखा. आयोग के सामने दोनों पक्षों ने अपने-अपने दावे और उनकी पुष्टि के लिए दस्तावेज प्रस्तुत किए थे. एकनाथ शिंदे गुट के पास एकीकृत शिवसेना के टिकट पर जीतकर आए कुल 55 विजयी विधायकों में से 40 विधायक हैं. मसलन, पार्टी में कुल 47,82,440 वोटों में से 76 फीसदी यानी 36,57,327 वोटों के दस्तावेज शिंदे गुट ने अपने पक्ष में पेश कर दिए.

वहीं, उद्धव ठाकरे गुट ने शिवसेना पर पारिवारिक विरासत के साथ ही राजनीतिक विरासत का दावा करते हुए 15 विधायकों और कुल 47,82,440 वोट में से सिर्फ 11,25,113 वोटों के ही दस्तावेजी सबूत पेश किए. यानी कुल 23.5 फीसदी वोट ही ठाकरे गुट के पास थे. शिवसेना के कुल 55 विधायकों में सिर्फ 15 का समर्थन ठाकरे गुट के पास था.

लोकसभा चुनावों में शिंदे गुट का समर्थन करने वाले 13 सांसदों ने कुल 1,02,45,143 वोटों में से 74,88,634 मत प्राप्त किए थे, जो पार्टी के कुल 18 सदस्यों के पक्ष में डाले गए लगभग 73 प्रतिशत मत हैं, ये 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में विजेता सांसद थे. उधर, ठाकरे गुट का समर्थन करने वाले 5 सांसदों द्वारा 27,56,509 वोट हासिल किए गए थे, जो कि18 सदस्यों के पक्ष में डाले गए कुल मतों का 27 प्रतिशत है.

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अपने फैसले में क्या कहा चुनाव आयोग ने?

चुनाव आयोग ने कहा कि जब कोई विवाद आयोग के पास आता है, तब तक पार्टी के संविधानों को बिना किसी चुनाव के पदाधिकारियों के रूप में एक मंडली के लोगों को अलोकतांत्रिक रूप से नियुक्त करने के लिए विकृत किया जाता है. इस तरह की पार्टी संरचनाएं चुनाव आयोग के विश्वास को बढ़ाने में असफल रहती हैं. 

चुनाव आयोग ने कहा कि सभी राष्ट्रीय और राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त दलों के लिए यह अनिवार्य होना चाहिए कि वे नियमित रूप से बड़े पैमाने पर अपने आंतरिक पार्टी के कामकाज के प्रमुख पहलुओं को जनता के सामने रखें. जैसे कि संगठनात्मक विवरण और चुनाव कराना, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनकी पार्टी का संविधान लोकतांत्रिक लोकाचार को दर्शाता है.

EC ने कहा कि आंतरिक लोकतांत्रिक तंत्रों को खत्म करके पार्टी संविधानों को अक्सर अपने खुद के विनाश की अनुमति देने के लिए संशोधित किया जाता है. आयोग ने ये भी कहा कि आदेश को अंतिम रूप देते समय पार्टी संविधान के परीक्षण और बहुमत के परीक्षण के सिद्धांतों को लागू किया. 

उद्वव के पास क्या है विकल्प

उद्धव ठाकरे के खेमे के वकीलों का कहना है कि वे चुनाव आयोग के आदेश के खिलाफ सोमवार तक सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सकते हैं. उद्धव गुट दावा कर रहा है कि चुनाव आयोग ने उनकी दलीलों पर विचार नहीं किया है. ठाकरे गुट ने कहा कि चुनाव आयोग ने 1999 में शिवसेना के मूल संविधान को आधार बना लिया है. जबकि उद्धव ठाकरे और शिंदे दोनों गुटों ने कहा था कि 2018 का पार्टी संविधान लागू था.

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