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किसान आंदोलन हुआ मकसद में सफल, शाहीन बाग के चेहरों का क्या है अगला प्लान?

किसान आंदोलन के चलते कृषि कानून रद्द किए जाने की घोषणा के बाद नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) के खिलाफ दिल्ली के शाहीनबाग आंदोलकारियों में एक उम्मीद की किरण जागी है. ऐसे में अब एक बार फिर से वो नए सिरे से CAA-NRC खिलाफ अपनी लड़ाई को धार देना चाहते हैं? 

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सीएए-एनआरसी के खिलाफ शाहीन बाद का आंदोलन
सीएए-एनआरसी के खिलाफ शाहीन बाद का आंदोलन
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अब तक नोटिफाई नहीं हुए हैं CAA के नियम
  • CAA को लेकर आंदोलन की चर्चा नहीं- अनस
  • कृषि कानून रद्द होने से जगी उम्मीद

कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली की सीमा पर एक साल से चल रहे किसान आंदोलन का मकसद सफल रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानून को वापस लेने का ऐलान कर दिया है, जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में अमलीजामा पहना दिया जाएगा.

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कृषि कानून रद्द किए जाने की घोषणा के बाद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (एनआरसी) के खिलाफ दिल्ली के शाहीनबाग आंदोलकारियों में एक उम्मीद की किरण जागी है. ऐसे में अब एक बार फिर से वो नए सिरे से सीएए-एनआरसी खिलाफ अपनी लड़ाई को धार देना चाहते हैं? दो साल बीत जाने के बाद भी सीएए पर मोदी सरकार आगे नहीं बढ़ी है और अब तक इस कानून के नियम तक नोटिफाई नहीं हुए हैं. आंदोलनकारी इसे भी अपने आंदोलन की जीत के तौर पर देख रहे हैं.

शाहीन बाग आंदोलन में प्रमुख रूप से शामिल रहे आबिद शेख aajtak.in से बातचीत करते हुए कहा कि आंदोलन सिर्फ सड़क पर नहीं होता है बल्कि उसके कई पहलू होते हैं. 24 मार्च 2020 को सीएए-एनआरसी के विरोध आंदोलन सिर्फ शाहीन बाग की सड़क से उठा था, लेकिन कानूनी लड़ाई और वर्चुअली हम उसे लड़ रहे हैं. किसान आंदोलन की सफलता से कहीं न कहीं हमारे अंदर भी एक उम्मीद जागी है, लेकिन हम यह जानते हैं कि वो किसान थे और हम मुसलमान है.

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वो कहते हैं कि CAA को सरकार ने जिस तरह मुसलमानों से जोड़ा है, लेकिन लोगों को यह बताने में काफी हद तक सफल रहे हैं कि सीएए किसी एक धर्म और समाज के लिए नहीं है बल्कि सभी इसकी जद में आएंगे बस मुस्लिम पहले टारगेट पर हैं. सीएए-एनआरसी की लड़ाई हमारे लिए आसान नहीं है, क्योंकि किसान आंदोलन से बीजेपी को चुनाव में अपने वोटबैंक के खिसकने का डर सता रहा था. सीएए से बीजेपी को इस तरह का खतरा नहीं है. ऐसे में हम न्यायिक लड़ाई के साथ-साथ आंदोलन के लिए नई रूप रखा बना रहे हैं ताकि इसे सिर्फ मुस्लिमों से न जोड़ा जा सके बल्कि जनआंदोलन का रूप बने और सभी समाज के लोगों की भागेदारी हो.

संघर्ष और आंदोलन के बगैर कुछ नहीं मिल सकता

सीएए के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने वाले यूनाइटेड अगेंस्ट हेट संस्था के संयोजक नदीम खान कहते हैं कि किसान आंदोलन से यह बात साबित हो गई है कि देश में संघर्ष और आंदोलन बगैर कुछ नहीं मिल सकता है. साथ ही उन्हें भी जवाब मिल गया है कि जो यह बात कहते थे कि सड़कों पर बैठने से क्या होगा. ऐसे में हमें किसान आंदोलन से हमें एक उम्मीद जागी है और सरकार सीएए-एनआरसी-एनपीआर पर किसी तरह का कोई रुख अपनाती है तो हम पिछली बार से ज्यादा ताकत और मजबूती के साथ सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे. 

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शाहीन बाग आंदोलन में शामिल शामिल रही कनीज फातिमा कहती हैं कि सीएए-एनआरसी के खिलाफ आंदोलन अभी भी जारी है बस वो शाहीन बाग की सड़के के बजाय हम अदालत में लड़ रहे हैं. हालांकि, कोर्ट में अभी इस मामले पर सुनवाई नहीं हो रही है, लेकिन सीएए के खिलाफ हमारी लड़ाई अभी भी जारी है. बस का रूप बदल है और अब कृषि कानून की वापसी के बाद आगे की लड़ाई को धार देंगे.

सभी काले कानूनों की वापसी तक जारी रहेगा आंदोलन

वह कहती हैं कि कृषि कानून के खिलाफ किसान आंदोलन में हम सभी जिस तरह से कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे, उससे जनआंदोलन का रूप लिया. इसीलिए यह सिर्फ किसानों की लड़ाई नहीं बल्कि तमाम काले कानूनों के खिलाफ लड़ाई है, जो किसान, मजदूर, दलित और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हैं. कृषि कानून की वापसी हमारी पहली जीत है, लेकिन अब ये लड़ाई उन सभी काले कानूनों की वापसी तक जारी रहेगा. इसमें सीएए, एनआरसी और यूएपीए जैसे कानून को भी खत्म कराने की मांग है. 

शाहीन बाग आंदोलन के खड़े करने में अहम भूमिका अदा करने वाले फहद अहमद कहते हैं कि सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन फेल नहीं हुआ बल्कि कई मायने में सफल रहा. यह आंदोलन का ही असर था कि देश में एनआरसी पर रोक लग गई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कहना पड़ा कि एनआरसी कराने की मंशा नहीं है. एनपीआर में डॉक्यूमेंट का क्लॉज को खत्म करना पड़ा. सीएए के लागू करने के नियम अभी तक नहीं बने. आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता यह थी कि देश के शहरों और कस्बों में ही नहीं बल्कि गांव-गांव मुस्लिम लीडरशिप खड़ी हो पाई, जिसमें मुस्लिम महिलाएं शामिल हैं.

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किसान आंदोलन की सफलता से जगी है उम्मीद

फहद कहते हैं कि किसान आंदोलन की सफलता से बेशक हमें भी उम्मीद जागी है. आंदोलन को सड़क पर करने से पहले आंदोलन के बैकग्राउंड पर काम करने की जरूरत है. किसान आंदोलन में जिस तरह से पंजाब के गांव-गांव में समिति बनी और कैसे उन्होंने आंदोलन में अपनी भागीदारी को बनाए रखा है. ऐसे में उसी तर्ज पर हमें भी तैयारी करने की जरूरत और सीएए आंदोलन से जो लीडरशिप खड़ी हुई है, उसे निखारने और मजबूत करने पर काम करना है. हमें सिर्फ सीएए ही नहीं बल्कि अब मुस्लिमों से जुड़े तमाम मुद्दों पर आंदोलन का रुख अख्तियार करेंगे. 

सीएए विरोध आंदोलन मामले जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय का छात्र आसिफ इकबाल तन्हा एक साल से ज्यादा जेल रहने के बाद फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. आसिफ कहते हैं कि कोरोना के चलते सीएए आंदोलन सड़कों से हटा था, पर खत्म नहीं हुआ. हम अभी भी अपने स्टैंड से पीछे नहीं हटे हैं, लेकिन सीएए विरोध करने वाले तमाम चेहरे अभी जेल में बंद है. ऐसे में आंदोलन को फिलहाल दोबारा खड़े करने पर अभी तो कोई बात नहीं हो रही है, क्योंकि सरकार भी उस पर कोई एक्शन नहीं ले रही है. ये आंदोलन का ही असर है.

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इस बार पूरी प्लानिंग के साथ होगा आंदोलन

आसिफ कहते हैं कि मोदी सरकार अगर दोबारा से सीएए-एनआरसी पर कदम बढ़ाती है तो हम सड़क पर उतरेंगे और आंदोलन करेंगे. इस बार का आंदोलन बकायदा पूरी प्लानिंग के साथ होगा, जिस तरह से किसान एकजुट होकर अपने अधिकार की लड़ाई लड़ें है, उसी तर्ज पर देश का मुसलमान भी मुस्तैदी के साथ उतरेगा. किसान आंदोलन से भी एक बात साफ हो गई है कि बिना आंदोलन के हमें कुछ नहीं मिलने वाला. ऐसे में सबसे बड़ी चिंता है कि जो लोग सीएए मामले में जेल में गए हैं. वो बाहर आए और उन्हीं के अगुवाई में किसी तरह का आंदोलन किया जाए. 

सीएए के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने वाले और शाहीन बाग आंदोलन में शामिल रहे सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अनस तनवीर कहते हैं कि अभी फिलहाल सिविल सोसायटी में अभी सीएए के खिलाफ किसी तरह का कोई आंदोलन करने की चर्चा नहीं है. जो लोग सीएए पर फिर से आंदोलन करने की बात कर रहे हैं, वो राजनीति से प्रेरित नजर आ रही है. सीएए असंवैधानिक है, इस पर कोई संदेह नहीं है. लेकिन हमारे लिए सबसे बड़ा मुद्दा एनआरसी और एनपीआर था, जिस पर किसी तरह कार्य नहीं हो रहा है. शाहीन बाग आंदोलन जीता हुआ है, ऐसे में हम दोबारा से इस पर आंदोलन क्यों करेंगे.

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वहीं, कृषि कानून वापस लिए जाने के फैसले के साथ ही सीएए कानून के वापसी की मांग उठने लगी है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कानपुर के अधिवेशन में सीएए वापस लेने की मांग का प्रस्ताव पारित किया है.

असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि सरकार को नागरिकता संशोधन कानून भी वापस ले लेना चाहिए. जमीयत उलमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि पीएम मोदी को उन कानूनों पर ध्यान देना चाहिए जो मुसलमानों के संबंध में लाए गए हैं. कृषि कानूनों की तरह ही सीएए कानून को भी वापस लेना चाहिए.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से शुरू हुआ था आंदोलन

बता दें कि साल 2019 के आखिर में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय आंदोलन शुरू हुआ, जिसका केंद्र शाहीन बाग बन गया. सीएए-एनआरसी के खिलाफ शाहीन बाग का प्रोटेस्ट एक मॉडल बन गया है और इस आंदोलन की चिंगारी देश भर में फैल गई है. देश के तमाम शहरों में शहीन बाग की तर्ज पर महिलाओं और बच्चों सड़कों पर उतरकर धरने दे रहे थे. 

हालांकि, कोरोना संक्रमण के चलते सीएए-एनआरसी के खिलाफ शाहीन बाग में चलने वाला आंदोलन साल 2020 में खत्म हो गया. इसके बाद देश के दूसरे शहरों में भी सीएए के विरोध में चल रहे आंदोलनों को प्रशासन ने खत्म कर दिए थे, लेकिन कृषि कानून के वापस लिए जाने के बाद अब शाहीन बाग आंदोलन में शामिल रहे प्रमुख चेहरो को एक नई उम्मीद किरण दिखी है. वो सीएए एनआरसी को लेकर अपने आंदोलन को दोबारा से शुरू करने की रणनीति बनाने पर काम शुरू कर दिया है. 
 

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