केंद्र सरकार का विवादित कृषि कानून एक बार फिर चर्चा में है. पंजाब सरकार जो शुरू से ही कृषि से जुड़े तीन कानूनों का विरोध करते आई है, वो विधानसभा में चार नए बिल लेकर आई. अब ज्यादातर गैर-बीजेपी शासित राज्य भी पंजाब की राह पर चलेंगे और आने वाले समय में केंद्र और राज्यों के बीच के संबंधों में खटास भी आएगी.
संसद के मॉनसून सत्र के दौरान कृषि बिलों को लेकर हंगामा देखने को मिला था और अब जिन राज्यों में बीजेपी की सरकार नहीं है, वहां की विधानसभाओं में भी हंगामा देखने को मिल सकता है. अनाज मंडियों में यथास्थिति बहाल करने के लिए पंजाब विधानसभा में चार नए बिलों को पारित करने के लिए केंद्र और विपक्ष के बीच टकराव तेज हो गया है. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि नए कानून देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन कर रहे हैं.
पार्टी के प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि केंद्र के कृषि कानून राज्यों में विशेष विधायी क्षमता का उल्लंघन करते हैं. केंद्र ने सूची 2 की 14, 26, 28 और 66 को दरकिनार किया. कांग्रेस शासित राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नवंबर के पहले सप्ताह में विधानसभा का विशेष सत्र बुला सकते हैं.
भूपेश बघेल शासित छत्तीसगढ़ सरकार भी पंजाब के नक्शेकदम पर चलेगी, लेकिन केंद्र के कृषि कानूनों को चुनौती देने के लिए आगे की राह आसान नहीं हो सकती है. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अनुच्छेद 254 के तहत राज्यपाल इन विधेयकों को अपनी सहमति के लिए राष्ट्रपति को भेज सकते हैं. कांग्रेस शासित राज्यों की राह पर वाम दल भी चल पड़े हैं. केरल पर शासन करने वाले वाम दल केंद्र के कृषि कानूनों का विरोध करने के लिए सभी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं.
एक ओर जहां कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां कृषि कानून का विरोध करने के लिए खुलकर सामने आई गई हैं, वहीं विपक्षी एकता की असली परीक्षा पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में होगी.