वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नवंबर 2016 में केंद्र सरकार के नोटबंदी के कदम को सही ठहराने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. सीतारमण ने अदालत के फैसले पर ट्वीट कर कहा है कि केंद्र और आरबीआई के बीच छह महीनों तक इसे लेकर चर्चा हुई थी. यह फैसला बाद में सही साबित हुआ. इस फैसले को सिर्फ इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि इसे केंद्र सरकार ने लागू किया था.
सीतारमणन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के नोटबंदी पर दिए गए फैसले का स्वागत है. पांच जजों की पीठ ने इस मामले पर सावधानी से विचार करने के बाद नोटबंदी को बरकरार रखा है. केंद्र के इस फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है.
बता दें कि केंद्र सरकार ने आठ नवंबर 2016 को 500 और 1000 रुपये के नोटों को सर्कुलेशन से बाहर करने का ऐलान किया था.
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार के 2016 में 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं को खारिज करते हुए ये फैसला सुनाया था. जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 4:1 के बहुमत से नोटबंदी के पक्ष में फैसला सुनाया था. बेंच ने कहा था कि आर्थिक फैसलों को बदला नहीं जा सकता. वहीं, जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि मैं साथी जजों से सहमत हूं लेकिन मेरे तर्क अलग हैं.
इससे पहले जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने पांच दिन की बहस के बाद 7 दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. फैसला सुनाने वाली बेंच में जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन, और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना शामिल रहे.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या क्या कहा?
- सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से केंद्र सरकार के 2016 में नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया. कोर्ट ने माना कि केंद्र की 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना वैध है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी से पहले केंद्र और आरबीआई के बीच सलाह-मशविरा हुआ था. सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि नोटबंदी का फैसला लेते समय अपनाई गई प्रक्रिया में कोई कमी नहीं थी. इसलिए, उस अधिसूचना को रद्द करने की कोई जरूरत नहीं है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा- केंद्र सरकार को संविधान और आरबीआई एक्ट ने अधिकार दिए हैं. उसका इस्तेमाल करने से कोई बाधा नहीं कर सकता. अब तक दो बार नोटबंदी यानी विमुद्रीकरण के इस अधिकार का इस्तेमाल अब तक हुआ है. ये तीसरा मौका था. रिजर्व बैंक अकेले विमुद्रीकरण का फैसला नहीं कर सकता.
जस्टिस बीवी नागरत्ना की राय अलग
जिस तरह से नोटबंदी की गई, उस पर जस्टिस बीवी नागरत्ना अलग रहे. उन्होंने कहा कि नोटबंदी कानून के माध्यम से होना चाहिए था. जस्टिस नागरत्ना ने कहा, विमुद्रीकरण (नोटबंदी)की शुरुआत कानून के विपरीत और गैरकानूनी शक्ति का इस्तेमाल था. इतना ही नहीं यह अधिनियम और अध्यादेश भी गैरकानूनी थे. इसके चलते भारत के लोगों को कठिनाई से गुजरना पड़ा. हालांकि, इसे ध्यान में रखते हुए कि ये फैसला 2016 में हुआ था, ऐसे में इसे बदला नहीं जा सकता.