उत्तर प्रदेश की घोसी विधानसभा सीट पर होने जा रहा उपचुनाव कई मायनों में बेहद अहम है. यह चुनाव अब महज एक विधानसभा सीट तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि NDA बनाम INDIA गठबंधन का लिटमस टेस्ट बन गया है. एक के खिलाफ एक उम्मीदवार देने की जिस योजना पर INDIA गठबंधन ने अपनी रणनीति तैयार की है, उसका पहला टेस्ट इसी घोसी उपचुनाव में होने जा रहा है.
बीजेपी ने हाल ही में सपा के विधायक पद से इस्तीफा देकर आए दारा सिंह चौहान को अपना उम्मीदवार बनाया तो वहीं, सपा ने अपने पुराने धुरंधर चेहरे सुधाकर सिंह पर दांव लगाया है. दोनों का ये चुनाव बिल्कुल आमने-सामने का हो गया है. INDIA गठबंधन भी राष्ट्रीय स्तर पर NDA को इसी तरह चुनौती देना चाहता है.
अखिलेश ने रैली कर दिया बड़ा संदेश
पहले ही यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने घोसी की अपनी जनसभा में यह स्पष्ट कर दिया था की यह चुनाव 2024 के लिए एक संदेश है. अखिलेश के भाषण से ये साफ हो गया है कि विपक्ष इसे INDIA बनाम NDA गठबंधन की तरह ही देख रहा है. अखिलेश की सभा में सभी घटक दलों के झंडे दिखाई दिए थे. यहां तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी अपना समर्थन दिया था. लेकिन असल सवाल यह है कि आखिर घोसी की जमीन पर सपा और बीजेपी की लड़ाई कैसी है.
एक-दूसरे के वोट बैंक पर दोनों की नजर
दरअसल, जमीन पर यह लड़ाई बहुत कांटे की होती जा रही है. समाजवादी पार्टी अपने बेस वोट के अलावा दलित और सवर्णों के वोट बैंक में सेंधमारी करती नजर आ रही है तो वहीं बीजेपी अपने परंपरागत सवर्ण वोटों से दूर अति पिछड़ी जातियों में जबरदस्त तरीके से पकड़ बनाए हुए है. इसकी असल वजह बीजेपी से कहीं ज्यादा दारा सिंह चौहान, ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद जैसे नेताओं की तिकड़ी है, जो नेता तो अपनी जातियों के हैं. लेकिन बीजेपी के पोस्टर बॉय बन चुके हैं.
दारा सिंह चौहान को जीत का भरोसा
बीजेपी के उम्मीदवार दारा सिंह चौहान ने आजतक से खास बातचीत में कहा कि बीजेपी का पूरा वोट बैंक उनके साथ मजबूती से खड़ा है. जबकि राजभर, चौहान और निषाद के साथ-साथ दलित समुदाय प्रधानमंत्री को और मजबूत करना चाहता है. इसलिए वह समाजवादी पार्टी के फैलाई झूठे भ्रम में नहीं पड़ेगा और ऐसे सभी जिन्हें प्रधानमंत्री की योजनाओं का लाभ मिला है वह सभी उनके साथ मजबूती से खड़े हैं
दारा सिंह को सुधाकर ने बताया बाहरी
समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार सुधाकर सिंह कहते हैं कि उन्हें सभी जाति और बिरादरी का वोट मिल रहा है. यहां तक की बीजेपी नेता और समर्थक उनके साथ खड़े हैं. वह भी उन्हें समर्थन कर रहे हैं. हालांकि, सुधाकर सिंह यह भी कह रहे हैं कि ये चुनाव घोसी का बेटा और बाहरी के बीच है.
कुछ ऐसा है बीजेपी का चुनावी गणित
बीजेपी के चुनावी गणित को समझें तो जितना बेस वोट समाजवादी पार्टी का है. यानी यादव और मुसलमानों का वोट. उतना अंतर बीजेपी के साथ खड़ी 3 जातियों के वोट पूरा कर देते हैं. ये वोट बेस चौहान, राजभर और निषाद का है. ओमप्रकाश राजभर चुनावी गणित को बड़ी आसानी से समझा देते हैं. 80-85 हजार मुसलमान और 50-55 हजार यादव को जोड़ कर सपा का बेस वोट मान भी लें तो भी चौहान, राजभर और निषाद इसके बराबर पंहुच जाते हैं.
सपा को कैसे मिल सकती है बढ़त?
हालांकि, घोसी उपचुनाव में जीत और हार का पूरा खेल सवर्ण और दलित मतदाताओं के वोट पर टिका है. माना जा रहा है ठाकुर मतदाताओं का स्पष्ट रुझान सपा की तरफ है. क्योंकि सुधाकर सिंह उसी बिरादरी से आते हैं. वहीं, सवर्णों का एक तबका सुधाकर के स्थानीय और जमीनी होने की वजह से उनसे आत्मीय तौर पर काफी जुड़ा हुआ है. यह तबका सपा को चुनावी बढ़त दिलाता दिख रहा है, लेकिन चुनाव आते-आते सवर्ण मतदाता खासकर ब्राह्मण-कायस्थ और भूमिहार मतदाताओं के मूड बदलने के आसार हो सकते हैं. क्योंकि बीजेपी ने जातियों के कस्बे-कस्बे गांव-गांव विधायकों और मंत्रियों की फौज उतार दी है.
दलित वोटों के एक तबके पर नजर
स्थानीय जानकर भी मानते हैं कि चुनाव कांटे का होता जा रहा है, लेकिन चुनाव की असली चाबी दलित मतदाताओं के हाथ है. मऊ जिले के वरिष्ठ पत्रकार श्रीराम जयसवाल का मानना है कि सभी पार्टियों के अपने बेस वोट उनके साथ चिपकते जा रहे हैं. लेकिन दलित वोटों का एक बड़ा तबका फिलहाल फ्री है. यानी कि उसे मायावती को इस बार वोट नहीं करना, क्योंकि उन्होंने उम्मीदवार नहीं उतरा है. ऐसे में यही वोट घोसी में हार और जीत को तय करेगा.
बीजेपी को मिल सकती है बड़ी राहत
मऊ के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण राय का मानना है कि चुनाव शुरू होने के साथ जो बढ़त समाजवादी पार्टी को मिली हुई थी. खासकर दारा सिंह चौहान के पाला बदलकर भाजपा में आने से उपजी नाराजगी की वजह से, वह अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है. यह बीजेपी के लिए राहत वाली बात है, क्योंकि तब बीजेपी का अपना वोट बैंक जो फिलहाल दारा सिंह चौहान की वजह से नाराज है. वह आखिर होते-होते बीजेपी के साथ आ सकता है.
दलितों वोट बैंक पर सब कर रहे दावा
इस सीट पर मुसलमानों के बाद सबसे ज्यादा तादाद दलितों की है. जो बसपा का कोर वोटर माना जाता रहा है, लेकिन इस बार बीएसपी चुनाव मैदान में नहीं है. ऐसे में बसपा के मतदाता फ्री हैं और दोनों पार्टियां दावा कर रही हैं कि दलितों का अधिकांश वोट उनके पास आ रहा है. तमाम दावों के साथ आपको बता दें कि घोसी में सभी जातियों की अनुमानित संख्या क्या है?
सबसे ज्यादा मुस्लिम फिर SC मतदाता
घोसी विधानसभा क्षेत्र में अनुमान के मुताबिक 70 हजार मतदाता अनुसूचित जाति के हैं, जिसमें चमार, धोबी, खटीक, पासी, मुसहर आदि शामिल हैं. वहीं, 85 हजार मुस्लिम मतदाता हैं, जिसमें सबसे ज्यादा अंसारी बुनकर हैं. इसके बाद 50 हजार राजभर मतदाता और 55 हजार चौहान नोनिया मतदाता हैं. यहां 19 हजार मल्लाह निषाद मतदाता, 15हजार क्षत्रिय, 14हजार भूमिहार, 7 हजार ब्राम्हण, 30 हजार बनिया जिसमें जायसवाल, साहू वैश्य, बरनवाल, उमर वैश्य, स्वर्णकार आदि मतदाता हैं. 15 हजार कोइरी और पांच हजार से ज्यादा प्रजापति कुम्हार हैं. बहरहाल घोसी का चुनाव तय करेगा कि 2024 में आमने-सामने का चुनाव क्या बीजेपी को हराने के प्रयोग में सफल होगा या नहीं.