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एकजुटता की कमी, चरम पर चाटुकारिता... गुलाम नबी आजाद की आत्मकथा में कांग्रेस पर बड़े वार

गुलाम नबी आजाद की आत्मकथा 'आजाद' बुधवार को लॉन्च हो रही है. पूर्व कांग्रेस नेता ने इस पुस्तक में अपने 55 सालों के खट्टे-मीठे राजनीतिक अनुभवों का जिक्र किया है. इस किताब में उन्होंने अपने दो पुराने सहयोगियों जयराम रमेश और सलमान खुर्शीद के साथ हाल के वैचारिक टकराव का पूरा लेखा-जोखा दिया है.

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गुलाम नबी आजाद (पीटीआई)
गुलाम नबी आजाद (पीटीआई)

कांग्रेस से बगावत कर अलग सियासी राह पर चलने वाले गुलाम नबी आजाद ने अपनी आत्मकथा में राजनीति के कई ऐसे चैप्टर से पर्दा उठाया है, जिससे विवाद खड़ा हो सकता है. गुलाम नबी आजाद की आत्मकथा 'आजाद' बुधवार को दिल्ली में रिलीज हो रही है. 

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अपनी आत्मकथा में गुलाम नबी आजाद ने लिखा है कि जब गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में आर्टिकल 370 को हटाने की घोषणा की और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का निर्णय सुनाया तो विपक्ष के नेता धरने पर बैठे लेकिन इस प्रदर्शन में जयराम रमेश शामिल नहीं हुए. तब जयराम रमेश राज्यसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप थे. जयराम रमेश अभी कांग्रेस के महासचिव हैं और संचार विभाग के इंचार्ज हैं.   

कांग्रेस नेता डॉ कर्ण सिंह बुधवार को नई दिल्ली में इस पुस्तक का विमोचन करेंगे और इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई इस कार्यक्रम का संचालन करेंगे. 

370 के खिलाफ धरना और गायब दिग्गज कांग्रेसी 

गुलाम नबी आजाद उस दिन की घटना का जिक्र करते हुए अपनी आत्मकथा 'आजाद' की पृष्ठसंख्या 251 में लिखते हैं,"जिस क्षण गृह मंत्री ने संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के केंद्र के कदम की घोषणा की, मैंने अपना ईयरफोन बंद कर दिया और सीधे सदन के वेल में चला गया. मैंने पूरे विपक्ष को धरने में बैठने का आह्वान किया. मैंने कांग्रेस पार्टी के लोगों से भी ऐसा ही करने के लिए आग्रह किया. सभी लोग प्रदर्शन करने आए. लेकिन जयराम रमेश नहीं आए, वे बैठे रहे और उन्होंने विरोध नहीं किया."

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बता दें कि 5 अगस्त 2019 को जब अमित शाह ने अनुच्छेद 370 की समाप्ति की घोषणा की उस वक्त गुलाम नबी आजाद राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष थे. 

गुलाम नबी आजाद की किताब में उनकी नाराजगी सिर्फ जयराम रमेश को लेकर ही नहीं है, सलमान खुर्शीद का भी जिक्र है. सलमान खुर्शीद ने ही कांग्रेस के असंतुष्टों के ग्रुप G-23 में आजाद की भूमिका को लेकर सवाल खड़ा किया था. अपनी आत्मकथा के एक चैप्टर में आजाद लिखते हैं, "मैं आज उन्हें बताना चाहता हूं कि हममें से कुछ लोगों ने बदले में हमें जो मिला उससे कई गुना अधिक समय दिया, कई अन्य लोगों के विपरीत जिन्होंने अनुचित लाभ उठाया लेकिन ट्वीट के माध्यम से अपनी उपस्थिति दिखाने के अलावा पार्टी के लिए कुछ नहीं किया."

 मत पूछो कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है

आजाद की इस सख्त टिप्पणी के पीछ सलमान खुर्शीद का वो बयान है जो उन्होंने अगस्त 2020 में दिया था और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन कैनेडी के कथन का जिक्र किया था. तब सलमान खुर्शीद ने कहा था, "यह मत पूछो कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है; यह पूछें कि आप अपने देश (पार्टी पढ़ें) के लिए क्या कर सकते हैं. कांग्रेस को हजारों कार्यकर्ताओं ने अपना काफी कुछ दिया है लेकिन उन्हें बदले में काफी कम या कुछ भी नहीं मिला. ऐसे कार्यकर्ता लोकतंत्र में विश्वास करते हैं, ये कार्यकर्ता जी-23 नेताओं से अलग हैं जिन्होंने काफी कुछ उपलब्धियां हासिल की हैं. 

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सलमान खुर्शीद ने आगे कहा था कि G-23 के नेताओं को नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र एक गतिमान प्रक्रिया है और ये स्थिर नहीं रह सकता है. आखिर में यह एक प्रासंगिक प्रश्न है कि जिस सीढ़ी से आप जीवन के उस शिखर बिंदू पर पहुंचे हैं, जहां से भाषण देना आसान है, क्या उसी सीढ़ी पर लात मारना उचित है? लेकिन उन बहुत से लोगों के बारे में सोचिए जो सीढ़ी तक तो नहीं पहुंच पाए, उनके लिए तो ऊंचा मंच उनकी पहुंच से बहुत दूर है. 

दरअसल जब जी-23 के जरिए गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाया तो सलमान खुर्शीद ने उन्हें ये बताना चाहा कि वे कांग्रेस के प्लेटफॉर्म से जिंदगी में बहुत कुछ हासिल कर चुके हैं, उन्हें उन हजारों-लाखों कार्यकर्ताओं के बारे में सोचना चाहिए जिन्होंने कांग्रेस का झंडा तो उठाया लेकिन उन्हें कुछ मिला नहीं.  

जिस सीढ़ी से शीर्ष पर पहुंचे, उसे लात नहीं मारी

सीढ़ी को लात मारने के आरोपों पर गुलाम नबी आजाद ने अपनी जीवनी में इसका जवाब सलमान खुर्शीद को दिया है. वे लिखते हैं, "मैं यह दोहराना चाहूंगा कि हमने उस सीढ़ी को लात नहीं मारी है जिससे हम शीर्ष पर पहुंचे थे. बल्कि मेरे जैसे लोग वो सीढ़ी थे जिसका इस्तेमाल कर कुछ नेता ऊपर तक पहुंचते थे और शिखर पर पहुंचने के बाद उन्हें सीढ़ी की कोई ज़रूरत ही नहीं रह गई थी. हमारा मकसद उस सीढ़ी को मजबूत करना था, जो अयोग्य और अनुभवहीन लोगों के बोझ से चरमराने लगी थी. जो लोग हमें बता रहे हैं कि हम उस सीढ़ी को लात मार रहे थे, जिसके जरिए हम शीर्ष पर पहुंच गए थे, वे भूल जाते हैं कि कुछ लोग तो पैराशूट से टॉप पर पहुंचे थे. 

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कांग्रेस ऐसे अपना लीडरशिप खत्म करता है

आज़ाद की आत्मकथा मोटे तौर पर हर उस चीज के सभी पहलू पर चर्चा करती दिख जाती है जो कांग्रेस के साथ गलत हुई है. अगस्त 2022 में कांग्रेस छोड़ने से पहले आजाद ने लगभग 55 साल इसी पार्टी में बिताए. वे लिखते हैं कि कांग्रेस के पतन का मूल कारण यह है कि "यह राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर अपने ही काबिल नेतृत्व के खिलाफ समानांतर, अक्षम नेतृत्व खड़ा करके उसे नष्ट कर देता है, इस प्रकार इस प्रक्रिया में पार्टी को ऊपर से नीचे तक खत्म कर दिया जाता है." 

चाटुकारिता ने पार्टी में एक केंद्रीय स्थान ले लिया

आजाद पछताते हुए कहते हैं कि एक अंतराल से चाटुकारिता ने पार्टी में एक केंद्रीय स्थान ले लिया है. "दुर्भाग्य से, कोई भी कड़वा सच नहीं सुनना चाहता. 

अपने बेहद चर्चित सहयोगी प्रणब मुखर्जी की तरह, लेखक आजाद ने यह कहने की आदत विकसित कर ली है कि 'तीन चीजें हैं - ए और बी...' लेकिन किसी तरह C भाग अनकहा रह गया है. मानो इसे जानबूझकर किया गया है.  आजाद का 'आजाद' इस अंतर्निहित, जानबूझकर की गई कमजोरी से मुक्त नहीं है.

कहा ये भी जा रहा है कि आजाद ने जी-23 पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों सहित कांग्रेस में अपने दोस्तों को "खुद को शर्मिंदगी से बचाने के लिए" पुस्तक के विमोचन समारोह में नहीं आने के लिए कहा है. 

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