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भारत सरकार ने घोषणा की है कि अगल-अलग राज्यों में प्रेशर स्विंग एडजोरप्शन (PSA) मेडिकल ऑक्सीजन का अतिरिक्त प्लांट लगाया जाएगा. केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि इस तरह के लगभग 581 साइट्स की पहचान की गई है. मिनिस्टरी ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाइवे के अंतर्गत आने वाली NHAI, इस प्लांट के एक्सिक्यूटिंग सिविल और इलेक्ट्रीकल वर्क के लिए नोडल एजेंसी के तौर पर काम करेगा और निर्माण को युद्धस्तर पर पूरा करेगा.
नितिन गडकरी ने कहा कि हमारे इंजीनियर, डॉक्टर्स के साथ मिलकर काम करेंगे और जरूरतमंद मरीजों के लिए ऑक्सीजन सप्लाई सुनिश्चित करेंगे. सड़क निर्माण में हमने जिस तेजी से काम किया, उसी तेजी से प्रत्येक भारतीयों की जान बचाने के लिए रिकॉर्ड समय में इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करेंगे.
Pressure Swing Adsorption एक ऐसी तकनीक है जिसका इस्तेमाल दबाव के जरिए गैसों के मिश्रण से अलग करने के लिए किया जाता है. देश में कोरोना संक्रमण की रफ्तार बेकाबू होती जा रही है. मरीज बढ़ते जा रहे हैं. मौतें बढ़ती जा रही हैं. ज्यादातर मौतों के पीछे वजह ऑक्सीजन की कमी को माना जा रहा है. लेकिन बहुत जल्द ही इस समस्या का समाधान होने की उम्मीद है. क्योंकि सरकार अब नाइट्रोजन प्लांट के जरिए ऑक्सीजन बनाने पर काम कर रही है, ताकि ऑक्सीजन की कमी को दूर किया जा सके.
दरअसल, मोदी सरकार ऐसे नाइट्रोजन प्लांट्स की पहचान कर रही है, जिसे ऑक्सीजन प्लांट्स के रूप में बदला जा सके. बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने अब तक 14 नाइट्रोजन प्लांट्स की पहचान कर ली है. 37 प्लांट्स की पहचान और होनी है. प्रधानमंत्री मोदी ने इसको लेकर रिव्यू मीटिंग भी की थी.
क्या है पूरा प्लान?
मीटिंग में मौजूदा प्रेशर स्विंग एड्सॉर्प्शन (पीएसए) नाइट्रोजन प्लांट्स को ऑक्सीजन बनाने के लिए तब्दील करने की प्रोसेस पर बात की गई. मीटिंग में बताया गया कि नाइट्रोजन प्लांट्स में कार्बन मॉलिक्यूलर सीव (CMS) का उपयोग किया जाता है जबकि ऑक्सीजन बनाने के लिए जियोलाइट मॉलिक्युलर सीव (ZMS) की जरूरत होती है. इसलिए, CMS को ZMS के साथ बदलकर और कुछ अन्य बदलावों जैसे ऑक्सीजन एनालाइजर, कंट्रोल पैनल सिस्टम, फ्लो वाल्व आदि के साथ मौजूदा नाइट्रोजन प्लांट्स को ऑक्सीजन के प्रोडक्शन के लिए बदला जा सकता है.