गुजरात की राजनीति में अब भूपेंद्र अध्याय शुरू होने जा रहा है. सभी को फिर चौंकाते हुए बीजेपी ने गुजरात का नया मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को बना दिया है. रेस में तो नितिन पटेल भी थे और मनसुख मंडाविया भी, लेकिन सत्ता भूपेंद्र पटेल को दे दी गई है. ऐसा नाम जो जमीन से जुड़ा जरूर है लेकिन सुर्खियों से हमेशा दूर रहता है.
अब सवाल है कि आखिर भूपेंद्र पटेल ऐसे कौनसे मापदंडों पर खरे उतरे कि उन्हें सीधे गुजरात की सत्ता सौंप दी गई?
मोदी-शाह की रणनीति पर एक नजर डालेंगे तो इस सवाल का जवाब भी मिल जाएगा.पिछले चुनाव देख लीजिए, बीजेपी के फैसले देख लीजिए, अंदाजा हो जाएगा कि बिना रिस्क लिए एक जमीनी नेता को चुनना पार्टी की कार्यशैली बन चुकी है. गुजरात में कहने को बीजेपी के पास पाटीदार समुदाय से नितिन पटेल जैसे बड़े नेता मौजूद थे. मंडाविया को भी केंद्र में बड़ी भूमिका दी जा चुकी थी, सीआर पाटिल भी गुजरात बीजेपी के अध्यक्ष थे. लेकिन फिर भी इन सभी को पछाड़ भूपेंद्र पटेल के नाम पर मोहर लगी.
कारण नंबर 1- अंदरूनी लड़ाई से बचाने का सटीक उपाय
ये मोहर इसलिए लगी क्योंकि भूपेंद्र कोई बहुत बड़े नेता नहीं हैं. हां जमीन से जुड़े माने जाते हैं, वर्तमान में घटोडिया सीट से विधायक भी हैं, लेकिन लोकप्रियता के मामले में कई वरिष्ठ नेताओं से काफी पीछे हैं. ऐसे में उनका चयन सिर्फ और सिर्फ इसलिए हुआ है क्योंकि उनके ऊपर आने से बीजेपी में अंदरूनी लड़ाई ज्यादा नहीं होगी.
अगर नितिन पटेल या कह लीजिए मनसुख मंडाविया को ये जिम्मेदारी दी जाती तो पार्टी के अंदर गुटबाजी हो सकती थी. एक वरिष्ठ को सीएम कुर्सी मिलती तो दूसरे वरिष्ठ नेता का नाराज होना लाजिमी रहता. ऐसे में मोदी-शाह ने भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बना बड़ा दांव खेल दिया है.
कारण नंबर 2- विजय रुपाणी को नाराज नहीं कर सकते
भूपेंद्र पटेल के नाम का जब ऐलान हुआ तब कहा गया कि विजय रुपाणी के प्रस्ताव के बाद ही उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया गया. ऐसे में रुपाणी से इस्तीफा जरूर लिया गया है, लेकिन उन्हीं की पसंद को गुजरात का नया मुख्यमंत्री बना दिया गया है. ये भी बीजेपी की एक पुरानी रणनीति रही है जिसके जरिए कई मौकों पर पार्टी आपसी तालमेल बैठाने की कोशिश करती है.
बिहार में जब सुशील कुमार मोदी से डिप्टी सीएम का पद छिना था, तब भी उन्हीं के सुझाए नाम पर बाद में मोहर लगाई गई थी. ऐसे में बीजेपी अपने किसी भी बड़े नेता को नाराज नहीं रखती है. इसी कारण से रुपाणी के प्रस्ताव पर भूपेंद्र पटेल को सीएम कुर्सी दे दी गई है.
कारण नंबर 3- कदवा पाटीदार, सियासी समीकरण साधने में आसानी
अब यहां पर ये जानना भी जरूरी है कि भूपेंद्र पटेल भी पाटीदार समुदाय से आते हैं. लेकिन वे कदवा पाटीदार हैं. ऐसे में उन्हें आगे कर बीजेपी ने कई सिसायी समीकरण साधने का प्रयास किया है. अटकलें तो पहले से थीं कि बीजेपी किसी पाटीदार समुदाय के चेहरे को ही चुनाव से पहले सीएम बनाएगी, अब भूपेंद्र पटेल को ये जिम्मेदारी देकर इस रणनीति को और पुख्ता कर दिया गया है. 2017 में पाटीदार आंदोलन ने ही बीजेपी की जीत को काफी संघर्षपूर्ण बना दिया था, सौराष्ट्र में तो पार्टी का सूपड़ा साफ रहा था. ऐसे में अब नए सीएम के तौर पर भूपेंद्र पटेल को उस नाराजगी को कम करना पड़ेगा.
कारण नंबर 4- RSS प्रष्ठभूमि का मिला फायदा
जातीय समीकरण से ऊपर उठकर देखें तो एक और बात भूपेंद्र पटेल के पक्ष में जाती है. भूपेंद्र ने बीजेपी में तो एक लंबी पारी खेली ही है, लेकिन इससे पहले RSS से भी लंबे समय से जुड़े रहे हैं. बीजेपी ने कई मौकों पर RSS पृष्ठभूमि वाले नेताओं को आगे करने की कोशिश की है. फिर चाहे वो हरियाणा के वर्तमान सीएम मनोहर लाल खट्टर हों या फिर उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी.
ऐसे में जमीन से जुड़ा नेता होना, संगठन पर मजबूत पकड़ रखने वाला, RSS प्रष्ठभूमि, ये तामम वो पहलू हैं जो बीजेपी की नजर में किसी को भी सीएम पद की दावेदारी दिलवा सकते हैं. भूपेंद्र पटेल के साथ भी यही हुआ है जो अब गुजरात में बतौर मुख्यमंत्री कार्यभार संभालने जा रहे हैं.
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