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नीतीश का 'सेल्फ गोल', बाकी 2 दल भी बैकफुट पर... INDIA गठबंधन में अब कांग्रेस का रास्ता एकदम साफ!

इंडिया गठबंधन में शामिल कई पार्टियां अलग-अलग तरह की चुनौतियों से घिरी हैं. दिल्ली के अरविंद केजरीवाल पर संशय है तो वहीं नीतीश कुमार खुद ही अपनी फजीहत करा रहे हैं. टीएमसी की दिल्ली में सबसे मुखर आवाज महुआ मोइत्रा की सांसदी पर तलवार लटकी है तो कई बड़े नेता केंद्रीय एजेंसियों की रडार पर हैं. बदले हालात में गठबंधन के भीतर कांग्रेस का रास्ता क्या है?

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विपक्षी गठबंधन में मजबूत हुई कांग्रेस की स्थिति (फाइल फोटो)
विपक्षी गठबंधन में मजबूत हुई कांग्रेस की स्थिति (फाइल फोटो)

विपक्षी इंडिया गठबंधन का जब से गठन हुआ है, जितनी पार्टियां प्रधानमंत्री पद के उतने दावेदार सामने आ रहे थे. विपक्षी गठबंधन के गठन में अहम रोल अदा करने वाले नीतीश कुमार से लेकर ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल तक के नाम प्रधानमंत्री पद के दावेदारों की लिस्ट में थे. दावेदारों और दावों की लंबी फेहरिश्त के बीच वक्त ने ऐसी करवट ली है कि इंडिया गठबंधन में कांग्रेस का रास्ता साफ बताया जाने लगा है.

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अरविंद केजरीवाल पर संशय

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर संशय की स्थिति है. दिल्ली और पंजाब में इंडिया गठबंधन का क्या होगा, सीट शेयरिंग पर कैसे बात बनेगी? इन सबको लेकर सवाल उठ ही रहे थे, अब दिल्ली शराब घोटाले के जांच की आंच भी केजरीवाल तक पहुंच चुकी है. आम आदमी पार्टी प्रधानमंत्री पद के लिए केजरीवाल का नाम आगे भी बढ़ा रही थी. गठबंधन का नाम इंडिया गठबंधन रखे जाने को लेकर भी आम आदमी पार्टी केजरीवाल को श्रेय दे रही थी लेकिन अब ताजा घटनाक्रम के बाद कहा जा रहा है कि उनकी दावेदारी कमजोर होगी.

नीतीश ने खुद करा ली फजीहत

दरअसल, जेडीयू बिहार के सीएम नीतीश को पीएम मटेरियल बता रही थी. पिछले 18 साल से बिहार जैसे जटिल राजनीतिक-सामाजिक समीकरणों वाले बिहार जैसे राज्य की सत्ता के शीर्ष पर लगातार काबिज नीतीश के पास प्रशासन चलाने का लंबा अनुभव है. नीतीश ने इस दौरान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस, विपरीत ध्रुव मानी जाने वाली सियासी पार्टियों के साथ गठबंधन चलाई है. ये राजनीतिक कौशल भी उनके पक्ष में जा रहा था.

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इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद घटक दलों के नेता (फाइल फोटोः पीटीआई)
इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद घटक दलों के नेता (फाइल फोटोः पीटीआई)

विपक्षी गठबंधन के घटक दल 2024 चुनाव जीतकर सत्ता में आने पर जातिगत जनगणना कराने के बाद वादे कर रहे हैं. नीतीश ने बिहार में जातिगत जनगणना कराकर, इसके आंकड़े विधानसभा में पेश कर और इसके आधार पर आरक्षण की सीमा बढ़ाकर भी एक बड़ी लकीर खींच दी. लेकिन ये आंकड़े जब विधानसभा में पेश किए गए, सीएम नीतीश ने सेक्स पर ज्ञान देकर खुद अपनी फजीहत करा ली. बीजेपी ने नीतीश को महिला विरोधी बताते हुए मोर्चा खोल दिया तो वहीं महिला संगठनों ने भी सुशासन बाबू की आलोचना की.

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विवाद बढ़ता देख नीतीश ने माफी जरूर मांग ली लेकिन खुद ही खुद की फजीहत कराने के बाद गठबंधन में भी उनके कद पर नकारात्मक असर पड़ सकता है. प्रशासनिक अनुभव से लेकर गठबंधन के कौशल तक पर नीतीश की ओर से विधानसभा में दिया गया सेक्स ज्ञान भारी पड़ सकता है.

टीएमसी के बड़े नेता एजेंसियों की रडार पर

विपक्षी दलों के गठबंधन की दूसरी बैठक बेंगलुरु में हुई थी. तब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा था कि हमारा उद्देश्य सत्ता नहीं है, हमें प्रधानमंत्री पद की लालसा नहीं है. खड़गे के इस बयान के बाद पीएम दावेदारों की सूची में पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी टीएमसी की भी एंट्री हो गई थी.टीएमसी ने पीएम पद के लिए ममता बनर्जी का नाम आगे बढ़ा दिया था.लेकिन तब से अब तक तस्वीर बहुत बदल गई है.

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी और राहुल गांधी (फाइल फोटो)
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी और राहुल गांधी (फाइल फोटो)

टीएमसी की सबसे मुखर सांसद और दिल्ली में पार्टी की आवाज तक कही जाने लगीं महुआ मोइत्रा की संसद सदस्यता भी खतरे में आ गई है. कैश फॉर क्वेरी केस में एथिक्स कमेटी ने उनकी संसद सदस्यता रद्द करने की सिफारिश कर दी है तो वहीं लोकपाल ने सीबीआई जांच की. महुआ की सदस्यता जाए या बच जाए, लेकिन संसद में टीएमसी की सबसे मुखर आवाज का मौन हो जाना तय माना जा रहा है.

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केवल महुआ ही नहीं, ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी समेत टीएमसी के कई बड़े नेता पहले से ही केंद्रीय एजेंसियों के कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं. मुकुल रॉय जैसे नेता पार्टी में लौट तो आए हैं लेकिन दल-बदल के बाद फिर से पुराना कद वापस मिल पाएगा, ऐसा लगता नहीं है.

क्या साफ हो गई कांग्रेस की राह?

इंडिया गठबंधन के अलग-अलग दल अलग-अलग तरह की चुनौतियों से घिरे हैं. ऐसे में सवाल ये भी उठ रहे हैं कि कांग्रेस के लिए क्या हालात अनुकूल हो गए हैं? राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि गठबंधनों का अतीत देखें तो वही सफल रहे हैं जिनकी धुरी बीजेपी या कांग्रेस में से कोई एक राष्ट्रीय पार्टी रही हो. इन दोनों में से किसी भी दल की गैरमौजूदगी में गठबंधन की जो कोशिशें हुई हैं, वह फेल साबित होती रही हैं. कांग्रेस तो पहले से ही इंडिया गठबंधन की अघोषित ड्राइविंग फोर्स थी.अब अलग-अलग दलों की मुश्किलों ने उसकी इस जगह को और मजबूत कर दिया है.

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