
विपक्षी दलों ने 2024 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को मजबूत चुनौती देने के लिए गठबंधन का ऐलान कर दिया है. विपक्ष के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (I.N.D.I.A.) को अस्तित्व में आए अभी एक हफ्ते भी नहीं हुए कि घमासान भी शुरू हो गया है.
किसी को दोस्ती मंजूर नहीं है तो कोई दुश्मनी भुलाने को तैयार नहीं है. इस गठबंधन में आम आदमी पार्टी के शामिल होने पर आपत्ति जताते हुए पंजाब कांग्रेस की पूरी इकाई ही विरोध में खड़ी हो गई है तो वहीं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने प्रधानमंत्री पद पर दावा ठोक दिया है. नए गठबंधन की राह में पंजाब से लेकर पश्चिम बंगाल तक, कई रोड़े हैं.
AAP की एंट्री के खिलाफ पंजाब कांग्रेस
पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग और विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने विपक्षी गठबंधन में आम आदमी पार्टी की एंट्री का विरोध किया है. पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष ने साफ कहा है कि हम कई मुद्दों पर आम आदमी पार्टी के खिलाफ लड़ रहे हैं. कांग्रेस नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है, जेल में डाला जा रहा है. पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच समझौता नहीं हो सकता.
कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने भी दो टूक कहा कि हम आम आदमी पार्टी और इसके नेताओं के खिलाफ हैं. हमें गठबंधन से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन इसमें आम आदमी पार्टी को शामिल किए जाने का फैसला स्वीकार नहीं है. पंजाब कांग्रेस के नेता केजरीवाल की पार्टी की एंट्री के खिलाफ जहां खुलकर सामने आ गए हैं तो वहीं दिल्ली कांग्रेस के नेता भी ये दोस्ती स्वीकार करने में हिचक रहे हैं.
AAP के साथ कैसे होगा सीट समझौता
नए गठबंधन में आम आदमी पार्टी की एंट्री के साथ ही चार राज्यों में सीटों का समीकरण उलझ गया है. अहम सवाल है कि क्या AAP दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के लिए सीटें छोड़ेगी? क्या कांग्रेस मध्य प्रदेश और राजस्थान में AAP को सीटें देगी? अरविंद केजरीवाल की पार्टी दिल्ली की सभी सात और पंजाब की सभी 13 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है.
ये भी पढ़ें- विपक्ष की साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल क्यों नहीं हुए नीतीश? बिहार पहुंच कर खुद बताई वजह
AAP पहले ही साफ कह चुकी है कि कांग्रेस दिल्ली और पंजाब छोड़ दे तो हम भी मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव नहीं लड़ेंगे. ऐसे में दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर कैसे सहमति बनती है? इसपर भी नजरें होंगी.
हरियाणा में आइएनएलडी से कैसे होगा समन्वय
हरियाणा की सियासत में दो धुर विरोधी किस तरह से समन्वय स्थापित करेंगे? कांग्रेस और इंडियन नेशनल लोक दल यानी आईएनएलडी, दोनों कभी साथ नहीं रहे हैं. चौटाला परिवार और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की अदावत भी जगजाहिर है. आईएनएलडी भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर हमलावर रही है और आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस सरकार के समय बदले की भावना से हुई कार्रवाई की वजह से ओमप्रकाश चौटाला को जेल जाना पड़ा. कांग्रेस पार्टी आईएनएलडी को हराकर ही हरियाणा की सत्ता में आई थी. हरियाणा की राजनीति में ये दोनों पार्टियां लंबे समय तक मुख्य प्रतिद्वंदी रही हैं.
बदली परिस्थितियों में आईएनएलडी की सियासी पकड़ चौटाला परिवार में फूट के बाद कमजोर पड़ी है. दुष्यंत चौटाला जननायक जनता पार्टी बनाकर बीजेपी के साथ हैं. कभी हरियाणा की सियासत पर मजबूत पकड़ रखने वाली पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव में एक सीट पर सिमट गई थी. लोकसभा चुनाव में आईएनएलडी खाता तक नहीं खोल सकी थी.
आईएनएलडी को अपना सियासी वजूद बचाने के लिए सहारे की जरूरत है और कांग्रेस को खुद को खड़ा करने के लिए. दोनों ही दलों को एक-दूसरे की जरूरत है लेकिन बड़ी चुनौती ये है कि नेता और कार्यकर्ता लंबे समय तक एक-दूसरे का विरोध करते रहे हैं. दोनों दल सीटों के साथ ही नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच किस तरह से समन्वय स्थापित करेंगे?
पश्चिम बंगाल में ममता और अधीर में सामंजस्य चुनौती
I.N.D.I.A. ने आकार ले लिया है और इसमें ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी भी शामिल है. पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के दौरान ममता और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी, दोनों ने ही एक-दूसरे पर जमकर बयानी तीर चलाए. ममता ने कांग्रेस को बीजेपी की बी टीम बता दिया तो अधीर ने टीएमसी को चोरों की पार्टी. नए गठबंधन में शामिल लेफ्ट पार्टियां पहले ही कह चुकी हैं कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी के साथ गठबंधन नहीं हो सकता.
ऐसे में पश्चिम बंगाल में गठबंधन का कुनबा किस तरह से एकजुट हो पाएगा? क्या कांग्रेस-टीएमसी साथ आएंगे और लेफ्ट पार्टियां अलग ताल ठोकेंगी? ये वक्त बताएगा लेकिन पश्चिम बंगाल कांग्रेस और टीएमसी के बीच समन्वय स्थापित करना भी कांग्रेस नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती है.
महाराष्ट्र में भी बदल गए हैं राजनीतिक समीकरण
महाराष्ट्र में कांग्रेस का शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के साथ पहले से ही गठबंधन है. तीनों दल विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) में शामिल हैं. हालांकि, एमवीए की स्थापना के समय से लेकर अब तक, राजनीतिक तस्वीर और समीकरण काफी बदल चुके हैं. शिवसेना और उद्धव की शिवसेना, दोनों ही दलों की ताकत टूट की वजह से बहुत कम हो गई है. जो कांग्रेस गठबंधन की स्थापना के समय तीनों दलों में विधानसभा सीटों के लिहाज से सबसे छोटी पार्टी थी, वह बदले हालात में सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है.
उद्धव की शिवसेना पिछले चुनाव में बीजेपी के साथ थी और तब पार्टी ने 48 में से 23 लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. शिवसेना को 18 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि, 18 में से 12 सांसद उद्धव का साथ छोड़ शिंदे के खेमे में जा चुके हैं. तब यूपीए की ओर से कांग्रेस के हिस्से में 26 सीटें आई थीं. एनसीपी को 22 सीटें मिली थीं. शरद पवार की पार्टी चार और कांग्रेस महज एक सीट ही जीत सकी थी. उद्धव की पार्टी नए गठबंधन में कम से कम 20 सीटें चाहती है. वहीं, बदले हालात में गठबंधन की ड्राइविंग सीट पर आई कांग्रेस के नेता भी अधिक सीटें चाहते हैं. एनसीपी को भी पिछले चुनाव से कम सीटें मंजूर नहीं. ऐसे में महाराष्ट्र की सीट बंटवारे की पहेली कैसे सुलझेगी?
गठबंधन का ड्राइविंग फोर्स कौन
I.N.D.I.A. का गठन तो हो गया लेकिन इस नए गठबंधन की ड्राइविंग फोर्स कौन होगा? कौन चेहरा होगा, कौन नेतृत्व करेगा? इन सबको लेकर अभी तस्वीर साफ नहीं है. एकजुटता की इस पूरी कवायद के कर्णधार नीतीश कुमार की नजर संयोजक की कुर्सी पर है. लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) भी चाहती है कि नीतीश गठबंधन का संयोजक बनकर दिल्ली में एक्टिव हो जाएं. वहीं, नीतीश संयोजक बनना तो चाहते हैं लेकिन बिहार के सीएम की कुर्सी की कीमत पर नहीं.
पटना की मीटिंग के बाद संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में लालू यादव ने राहुल गांधी से कहा था कि आप दूल्हा बनिए, हम सब लोग बाराती बनने को तैयार हैं. तारिक अनवर ने इसके राजनीतिक मायने भी समझा दिए थे. तारिक ने इसे प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से जोड़ दिया था. कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह भी कह चुके हैं कि राहुल गांधी ही हमारा चेहरा हैं. दूसरी तरफ, बेंगलुरु की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि हमें सत्ता या किसी पद का मोह नहीं है. टीएमसी ने इसके बाद पीएम के लिए ममता का नाम बढ़ा दिया. गठबंधन को इन सभी चुनौतियों से भी पार पाना होगा.
I.N.D.I.A. के सामने नेतृत्व को लेकर निर्णय लेने की चुनौती है. देश में एनडीए हो या यूपीए, गठबंधन वही सफल रहा है जिसमें ड्राइविंग फोर्स बीजेपी रही हो या कांग्रेस. इन दोनों गठबंधनों के अस्तित्व में आने से पहले भी गठबंधन बने जिनकी ड्राइविंग फोर्स कोई और पार्टी रही लेकिन ये प्रयोग कभी सफल नहीं रहा. देश में 1998 से पहले चंद्रशेखर, वीपी सिंह, आईके गुजराल समेत कई नेताओं के नेतृत्व में गठबंधन अस्तित्व में आए, सरकार भी बनाई लेकिन ये सभी प्रयोग विफल रहे. गैर बीजेपी, गैर कांग्रेस गठबंधन तैयार करने की कवायद भी मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में हुई लेकिन ये प्रयोग भी विफल रहा था.
जो दल किसी के साथ नहीं, वे भी रोड़े
नए गठबंधन की राह में वो पार्टियां भी बड़ा रोड़ा हैं जो इसके अस्तित्व में आने से पहले ही किनारा कर गईं. ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) ने 2022 का यूपी चुनाव सपा के साथ गठबंधन कर लड़ा था. अब वो बीजेपी के साथ है. इसी तरह बिहार में जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्यूलर) कुछ महीने पहले तक जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में थी. उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू छोड़ राष्ट्रीय लोक जनता दल नाम से नई पार्टी बना ली. अजित पवार ने चाचा शरद पवार की पार्टी तोड़ दी और एनडीए से हाथ मिला लिया. एकनाथ शिंदे ने उद्धव की पार्टी के नाम-निशान पर कब्जा कर लिया और अब एनडीए के साथ हैं. ये सभी पार्टियां भी लोकसभा चुनाव में I.N.D.I.A. की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं.