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कर्नाटक में क्यों बीजेपी के लिए आसान नहीं है येदियुरप्पा को 'त्रिवेंद्र' बनाना

उत्तराखंड में सीएम का चेहरा बदले जाने के बाद अब दक्षिण भारत में बीजेपी के इकलौते मजबूत दुर्ग कर्नाटक में मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को बदलने की आवाज उठने लगी है. येदियुरप्पा को लेकर बीजेपी विधायक बसंगौड़ा पाटिल यत्नाल ने कहा कि आगामी चुनाव से पहले कर्नाटक में बीजेपी को बचाने के लिए बीएस येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाना होगा, लेकिन बीजेपी के लिए येदियुरप्पा को 'त्रिवेंद्र' बनाना आसान नहीं है!

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कर्नाटक सीएम बीएस येदियुरप्पा
कर्नाटक सीएम बीएस येदियुरप्पा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बीजेपी विधायक ने कर्नाटक सीएम बदलने की मांग उठाई
  • कर्नाटक में येदियुरप्पा के कद का कोई दूसरा नेता नहीं
  • येदियुरप्पा के हटने से लिंगायत वोट छिटकने का खतरा

उत्तराखंड में विधायकों की नाराजगी और आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया है. उत्तराखंड में सीएम का चेहरा बदले जाने के बाद अब दक्षिण भारत में बीजेपी के इकलौते मजबूत दुर्ग कर्नाटक में मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को बदलने की आवाज उठने लगी है. येदियुरप्पा को लेकर बीजेपी विधायक बसंगौड़ा पाटिल यत्नाल ने कहा कि आगामी चुनाव से पहले कर्नाटक में बीजेपी को बचाने के लिए बीएस येदियुरप्पा को सीएम पद से हटाना होगा, लेकिन बीजेपी के लिए येदियुरप्पा को 'त्रिवेंद्र' बनाना आसान नहीं है! 

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बीजेपी विधायक बसंगौड़ा पाटिल यत्नाल ने कहा, 'कर्नाटक में मुख्यमंत्री का परिवर्तन 100 फीसदी सुनिश्चित है. वरना इस मुख्यमंत्री (बीएस येदियुरप्पा) के साथ आगामी चुनाव लड़ना मुश्किल होगा. बीजेपी के राष्ट्रीय  महासचिव अरुण सिंह इस बात से वाकिफ हैं, लेकिन वह बस यूं ही कह रहे हैं कि सीएम नहीं बदलेगा.' उन्होंने कहा कि मैं जनता का प्रतिनिधि हूं. मैं कर्नाटक में बीजेपी के भविष्य के लिए लड़ रहा हूं. येदियुरप्पा को दक्षिण भारत का अंतिम बीजेपी सीएम नहीं बनना चाहिए. कर्नाटक में अगले 10 से 20 साल के लिए बीजेपी के सीएम होने चाहिए. मैं उस दिशा में लड़ रहा हूं. उन्होंने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी के आदर्शों से कोई कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनना चाहिए.

कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा को लेकर बीजेपी नेता कई बार मोर्चा खोल चुके हैं, लेकिन अभी तक उन्हें कुर्सी से हिला नहीं सके हैं. इससे पहले भी बीजेपी के सात विधायकों ने दिल्ली में आकर पार्टी हाईकमान से मुख्यमंत्री बदलने की मांग की थी. वहीं, येदियुरप्पा किसी भी सूरत में अपनी कुर्सी छोड़ने के तैयार नहीं हैं. ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाना बीजेपी के लिए आसान भी नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि कर्नाटक में बीजेपी एक बार येदियुरप्पा को हटाकर सियासी हश्र देख चुकी है तो क्या फिर से वैसा ही जोखिम भरा कदम उठाएगी?
 
बीजेपी पर येदियुरप्पा की मजबूत पकड़

कर्नाटक में बीजेपी का चेहरा ही बीएस येदियुरप्पा माने जाते हैं. उन्होंने अकेले दम पर कर्नाटक में पार्टी के आधार को मजबूत करने का काम किया है. 1983 में वह बीजेपी से पहली बार विधायक बने और 80 के दशक में बीजेपी की कमान संभाली तो पार्टी को संगठनात्मक तौर पर प्रदेश के हर जिले में मजबूत करने का काम किया. किसानों के मुद्दों को लेकर सड़क से विधानसभा तक लड़ाई लड़ी. इस तरह से पार्टी पर उनकी जबरदस्त पकड़ मानी जाती है.

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येदियुरप्पा ने जेडीएस के साथ मिलकर 2006 में सरकार बनाई थी. 2007 में येदियुरप्पा सीएम बने थे, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाने के चलते इस्तीफा देना पड़ा था. इसके बाद येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी 2008 में कर्नाटक में कमल खिलाने में कामयाब रही और स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाई. तब बीजेपी दक्षिण भारत में पहली बार सरकार बनाने में सफल रही थी, जो येदियुरप्पा की बदौलत ही संभव वो सका था. हालांकि, भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते अगस्त 2011 में येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद हालात ऐसे बने कि येदियुरप्पा ने नाराज होकर बीजेपी छोड़ दी और अपनी अलग पार्टी बना ली.

कर्नाटक में येदियुरप्पा के बगैर बीजेपी
बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक प्रजा पार्टी के नाम से अपनी पार्टी बनी ली. 2013 में हुए चुनाव में येदियुरप्पा की वजह से बीजेपी को काफी नुकसान हुआ और सत्ता से उसे हाथ धोना पड़ गया था. बीजेपी के पास राज्य में ऐसा कोई चेहरा नहीं था, जो पार्टी की नैया को पार लगा सके. येदियुरप्पा ने मैदान में उतरकर बीजेपी के सारे समीकरण ध्वस्त कर दिए थे.  2013 के चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और सिद्धारमैया कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने. बीजेपी को इस बात का जल्द ही एहसास हुआ और फिर येदियुरप्पा की ससम्मान पार्टी में वापसी हुई. ऐसे में येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया और पार्टी ने उन्हें कर्नाटक में बीजेपी की कमान सौंप दी.

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कर्नाटक में बीजेपी की वापसी के शिल्पकार
येदियुरप्पा ने बीजेपी की कमान संभालने के बाद पार्टी को कर्नाटक में दोबारा से मजबूत किया. इसका नतीजा 2014 के लोकसभा चुनाव में दिखा जब राज्य की 28 में से 17 सीटें बीजेपी को मिलीं. इसके बाद 2018 विधानसभा चुनाव में बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी और महज 9 सीटें कम हो जाने के चलते सत्ता से दूर हो गई थी. यहां कांग्रेस-जेडीएस की गठबंधन सरकार बनी, लेकिन कांग्रेस और जेडीएस के कुछ विधायकों के इस्तीफे की वजह से सरकार अल्पमत में आई और गिर गई. इसके बाद येदियुरप्पा बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बने. कांग्रेस और जेडीयू के 17 विधायकों को येदियुरप्पा ने अपने दम पर पार्टी में लाने का काम किया था. ऐसे में उन पर बीजेपी के दूसरे नेताओं से ज्यादा मजबूत पकड़ येदियुरप्पा की मानी जाती है. 

बीजेपी को लिंगायत वोट के छिटकने का डर 
कर्नाटक की सियासत में लिंगायत समुदाय किंगमेकर और प्रभावशाली माना जाता है. कर्नाटक में करीब 17 फीसदी लिंगायत समुदाय का वोट है. बीएस येदियुरप्पा इसी समाज से आते हैं, जिनकी वजह से लिंगायत बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़े हुए हैं. लिंगायत समुदाय के सभी प्रमुख मठ और उनके धार्मिक-आध्यात्मिक गुरु भी येदियुरप्पा का खुलकर समर्थन करते हैं. बीजेपी से उनके अलग होने के बाद लिंगायत वोटों में काफी नाराजगी बढ़ी थी. ऐसे में बीजेपी के लिए चिंता का सबब है कि अगर येदियुरप्पा को हटाकर किसी दूसरे नेता को कुर्सी सौंपी गई तो लिंगायत कहीं नाराज होकर दूर न हो जाएं. यही वजह है कि बीजेपी इसम मामले में बड़ी सावधानी के साथ कदम बढ़ा रही है. 

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कर्नाटक बीजेपी में बगावत का खतरा 
बीजेपी अगर बीएस येदियुरप्पा से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा लेती है तो कर्नाटक बीजेपी में बगावत की चिंगारी सुलग सकती है. 2011 में येदियुरप्पा ने पार्टी छोड़ी थी तो काफी नेताओं ने भी बीजेपी को अलविदा कह दिया था. ऐसे में अब बीजेपी के लिए ऐसा करना दोबारा से जोखिम भरा कदम उठाने जैसा होगा. इसके अलावा कांग्रेस और जेडीएस से आए हुए नेताओं पर बीजेपी के दूसरे नेताओं से ज्यादा येदियुरप्पा की पकड़ है. येदियुरप्पा को हटाने पर उनकी घर वापसी भी एक बड़ी टेंशन बन सकती है, क्योंकि कांग्रेस और जेडीएस की सीटें मिलाकर बीजेपी के आंकड़े के करीब है. ऐसे में पार्टी के लिए यह भी एक चिंता का सबब है. यही वजह है कि कर्नाटक के बीजेपी प्रभारी अरुण सिंह ने साफ तौर पर कह दिया था कि राज्य में मुख्यमंत्री बदलने का कोई सवाल ही नहीं है.  

 

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