कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद मंथन का दौर शुरू हो गया है. निवर्तमान मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने भी कहा है कि हमसे कहां चूक हुई, इस पर मंथन करेंगे. बीजेपी की हार, कांग्रेस की जीत के कारण और सियासी निहितार्थ भी तलाशे जाने लगे हैं लेकिन इन सबके बीच एक पहलू ये भी है कि कर्नाटक के मतदाताओं ने किसी भी राजनीतिक पार्टी को सत्ता में रिपीट नहीं करने का करीब चार दशक पुराना ट्रेंड बरकरार रखा है.
चुनाव नतीजें देखें तो चुनाव प्रचार के दौरान जो मुद्दे उठाए गए और सर्वे में जो बताया गया, उसकी तस्वीर भी झलकती है. कांग्रेस की ये जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व ने स्थानीय मुद्दों पर फोकस किया और सामाजिक सौहार्द के साथ ही प्रो-पुअर एजेंडे का इंद्रधनुषी जाल बुना. बीजेपी के लिए कर्नाटक की हार विंध्य के दक्षिण में पार्टी की सत्ता समाप्त होने का प्रतीक मानी जा रही है. जनता दल सेक्यूलर (जेडीएस) को भी सीटों के साथ ही वोट शेयर का भी नुकसान उठाना पड़ा है. कर्नाटक के कई इलाकों में, कई सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला देखने को मिला.
कांग्रेस के सामने स्पष्ट जनादेश के बाद अब मुख्यमंत्री पद के लिए विधायक दल का नेता चुनने की चुनौती है. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के नेताओं की एकजुटता नजर आई लेकिन अब जबकि पार्टी को चुनाव में जीत मिल चुकी है, कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री चुनना बड़ी चुनौती है. कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार और विधानसभा में विपक्ष के नेता सिद्धारमैया, दोनों ही मुख्यमंत्री पद के मजबूत दावेदार हैं और दोनों ही समय-समय पर मुख्यमंत्री बनने की अपनी आकांक्षा जाहिर भी कर चुके हैं. दोनों नेताओं ने पहले ये भी स्वीकार किया है कि अगर वे एक साथ काम नहीं करते हैं तो पार्टी के सत्ता में आने की संभावनाएं बहुत कम हो जाएंगी.
डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया, दोनों ही नेता सामाजिक समीकरण साधने में कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण रहे. सिद्धारमैया लंबे समय से AHINDA आंदोलन की आवाज रहे हैं जो गैर-प्रमुख पिछड़ी जातियों, दलित, आदिवासी और मुसलमानों का गठबंधन था. वहीं, डीके शिवकुमार प्रभावशाली वोक्कालिगा समुदाय के मजबूत नेताओं में गिने जाते हैं. कांग्रेस को कर्नाटक में जीत के लिए जिस तरह के सामाजिक समीकरणों की जरूरत थी, उसके लिहाज से दोनों ही नेता महत्वपूर्ण थे.
सीएम के लिए सर्वे में सिद्धारमैया पहली पसंद
अब, जब कांग्रेस को पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने का जनादेश मिल गया है. सवाल ये उठ रहे हैं कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? अधिकतर सर्वे में सीएम पद के लिए सिद्धारमैया को पहली पसंद बताया गया. सिद्धारमैया के मुकाबले डीके शिवकुमार की सीएम पद के लिए लोकप्रियता सर्वे रिपोर्ट्स में कम नजर आई. सर्वे में अधिकतर लोगों ने पांच साल सीएम रहे सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद बताया था. जेडीएस सरकार में सिद्धारमैया डिप्टी सीएम भी रहे. बतौर वित्त मंत्री सबसे अधिक बजट पेश करने का रिकॉर्ड भी सिद्धारमैया के ही नाम है.
सिद्धारमैया की गहरी राजनीतिक समझ, प्रशासनिक क्षमता का लाभ कांग्रेस को चुनाव अभियान के दौरान मिला भी. सिद्धारमैया साल 2013 में जब मुख्यमंत्री बने, कांग्रेस के अधिकतर विधायकों के साथ ही उनको पार्टी हाईकमान का भी पूरा समर्थन था. सिद्धारमैया की मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी को पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते भी मजबूती मिल रही है तो वहीं इसका नुकसान भी है. नुकसान ये कि उनके मुख्यमंत्री रहते पार्टी को मिली हार की वजह से दावेदारी कमजोर भी हो रही है.
संकट में भी कांग्रेस के साथ रहे शिवकुमार
डीके शिवकुमार की गिनती कांग्रेस के वफादार नेताओं में होती है. शिवकुमार तब भी कांग्रेस के साथ खड़े रहे जब पार्टी संकट में थी. शिवकुमार की छवि क्राइसिस मैनेजर की है. संगठन के मामलों में दक्ष शिवकुमार 1999 से 2004 के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा के करीबियों में थे और प्रशासन में अहम भूमिका निभाई. साल 2018 में चुनाव के बाद जेडीएस के साथ गठबंधन में भी शिवकुमार की अहम भूमिका थी. शिवकुमार ने बतौर प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस को कर्नाटक में मजबूती से खड़ा किया.
डीके शिवकुमार ने कांग्रेस के लिए फंड जुटाने में भी मोर्चे पर रहकर काम किया. मुख्यमंत्री पद के लिए शिवकुमार की दावेदारी भी मजबूत मानी जा रही है. कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद शिवकुमार भी ये मानकर चल रहे हैं कि उनके लिए सबसे अच्छा मौका है. डीके शिवकुमार 60 साल से अधिक उम्र के हो चुके हैं और उनका मानना है कि अगर इस बार उनकी बस छूट गई तो फिर दूसरा मौका शायद न मिले. हालांकि, उनके खिलाफ चल रही कुछ मामलों की जांच मुख्यमंत्री बनने की राह में रोड़े अटका सकती है.
कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा फैसला
कर्नाटक में नई सरकार का नेतृत्व सिद्धारमैया करेंगे या डीके शिवकुमार, इसे लेकर फैसले तक पहुंचना कांग्रेस पार्टी के लिए आसान नहीं होगा. कर्नाटक सरकार के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस कैसे किसी नतीजे पर पहुंचती है, ये देखने वाली बात होगी. चर्चा ये भी है कि सिद्धारमैया को सरकार की कमान सौंपकर डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम बनाया जा सकता है. ढाई-ढाई साल के कार्यकाल के फॉर्मूले की भी चर्चा है लेकिन कहा ये भी जा रहा है कि इसे लेकर सिद्धारमैया शायद ही मानें.
(रिपोर्ट- संदीप शास्त्री)