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जातीय समीकरण, गुटों में बैलेंस... कर्नाटक में सरकार तो बन गई, कैबिनेट गठन में ये हैं अड़चनें

कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बन गई है और सत्ता की कमान सिद्धारमैया को सौंप दी गई तो डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम बनाया गया है. हालांकि कैबिनेट विस्तार को लेकर पेंच फंसता दिख रहा है, जिसमें जातीय और क्षेत्रीय बैलेंस बनाने के साथ गुटों को भी साधे रखने की चुनौती है.

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डीके शिवकुमार, मल्लिकार्जुन खड़गे और सिद्धारमैया
डीके शिवकुमार, मल्लिकार्जुन खड़गे और सिद्धारमैया

कर्नाटक में कांग्रेस सरकार का गठन हो गया है. सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री और डीके शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री कुर्सी मिली. साथ ही 8 नेताओं को भी मंत्री बनाया गया है, लेकिन कांग्रेस की असल अग्निपरीक्षा कैबिनेट विस्तार है. कांग्रेस के तमाम दिग्गज विधायक और एमएलसी मंत्री बनने के जुगाड़ में लगे हैं तो सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार भी अपने-अपने करीबी नेताओं को कैबिनेट में जगह दिलाने की कवायद में जुटे हैं. 

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सिद्धारमैया vs शिवकुमार... किसका पलड़ा भारी?

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके श‍िवकुमार मुख्‍यमंत्री की रेस में पीछे रहे गए. ऐसे में माना जा रहा है कि शिवकुमार अपने खेमे के ज्‍यादा से ज्यादा नेताओं को मंत्री बनवाना चाहते हैं. वहीं, सिद्धारमैया मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने के साथ ही मंत्रिमंडल में अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहते हैं.

कांग्रेस सूत्रों की माने तो शपथ ग्रहण समारोह से पहले पिछले सप्ताह दिल्ली में हुई चर्चा के दौरान कुछ नामों को लेकर सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच मतभेद सामने आए थे, जिसके चलते उस समय सिर्फ 8 नेताओं को ही मंत्री पद की शपथ दिलाई थी. अब फिर से कैबिनेट विस्तार के लिए कर्नाटक के दोनों ही नेता बुधवार देर शाम दिल्ली पहुंचे. 

कांग्रेस हाईकमान से मिलेंगे दोनों नेता

पिछले सप्ताह मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार दिल्ली से एक ही चार्टर प्लेन पर सवार होकर दिल्ली से बेंगलुरु पहुंचे थे, लेकिन अब ताजपोशी के बाद कैबिनेट विस्तार पर पार्टी हाईकमान से मंथन के लिए अलग-अलग प्लेन से दिल्ली आए हैं. सिद्धारमैया और शिवकुमार कांग्रेस शीर्ष नेताओं के साथ मुलाकात करेंगे. साथ ही मंत्रिमंडल विस्तार और मौजूदा मंत्रियों को विभागों के आवंटन पर चर्चा की संभावना है.

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क्षेत्रीय बैलेंस और गुटों का साधने का चैलेंज

बता दें कि सीएम सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम शिवकुमार के साथ 8 नेताओं ने 20 मई को मंत्री पद की शपथ ली थी. न ही डिप्टी सीएम और न ही मंत्रियों को अभी विभागों का आवंटन नहीं किया गया है. ऐसे में कर्नाटक से दिल्ली दौरे पर पहुंचे सिद्धारमैया और शिवकुमार कांग्रेस हाईकमान के साथ मिलकर मंत्रियों के विभागों का बंटवारा की रूपरेखा तैयार करेंगे.

कर्नाटक की सत्ता में फिर से काबिज सिद्धारमैया ऐसे मंत्रिमंडल गठन करने की कवायद में हैं, जिसमें सभी समुदायों, क्षेत्रों, गुटों और नई व पुरानी पीढ़ी के विधायकों को प्रतिनिधित्व हासिल हो. सिद्धारमैया के लिए काफी चुनौतीपूर्ण कार्य है. कर्नाटक मंत्रिमंडल में मंत्रियों की स्वीकृत संख्या 34 है. इसे देखते हुए कांग्रेस के कई नेता मंत्री बनने की होड़ में शामिल हैं. 

जातीय समीकरण साधने की चुनौती

कर्नाटक में कांग्रेस के व‍िधायकों में लिंगायत के 39 विधायक, वोक्कालिगा के 21, दलित के 22, अनुसूचित जनजाति के 15, मुस्लिम समुदाय के 9 और कुरुबा के 8  विधायक समेत अन्य शाम‍िल हैं. इसमें ज्‍यादातर अनुभव के आधार पर मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण भूमिकाएं देने की मांग कर रहे हैं. 

कांग्रेस ने 36 एससी आरक्षित सीटों में से 21 सीटें जीतीं और एसटी की 15 में से 14 सीटें हासिल कीं. बीजेपी को एसटी की एक भी सीट नहीं मिली. एकमात्र सीट जेडीएस को चली गई. बीजेपी को एससी की 15 सीटें मिली हैं. कांग्रेस के लिए यह गुड न्यूज है, क्योंकि 2018 में उसने 7 एसटी सीटें और 12 एससी सीटें जीती थीं.

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कांग्रेस की तरफ दलित-मुस्लिम लौटे

कर्नाटक में ओबीसी समुदाय से मुख्यमंत्री (सिद्धारमैया) और वोक्कालिगा समुदाय से डिप्टी सीएम (डीके शिवकुमार) के साथ तीन दलित और एक एसटी मंत्री को बनाकर कांग्रेस ने अपनी मंशा साफ कर दी. कांग्रेस के सियासी स्टैंड में बदलाव मामूली नहीं है. कांग्रेस हमेशा ब्राह्मणों, दलितों और मुसलमानों के वोट से चुनाव जीतती रही है. ब्राह्मण अभी भी बीजेपी के साथ है. वो कांग्रेस में नहीं लौटा लेकिन कर्नाटक में तो दलित और मुसलमानों दोनों ही लौटे. इसीलिए कांग्रेस की कैबिनेट में इसकी झलक दिख रही है. 

तीन दलित मंत्री बनाए गए तो एक मुस्लिम को कैबिनेट में जगह मिली है और स्पीकर का पद भी मुसलमान के खाते में गया है. कर्नाटक में पहली बार कोई मुस्लिम विधानसभा अध्यक्ष चुना गया है. यानी आगे जब मंत्रिमंडल विस्तार होगा तो दलित समुदाय के मंत्रियों की संख्या बढ़ सकती है. ऐसे में कैबिनेट में अपनी जगह पाने के लिए नेताओं ने मशक्कत भी शुरू कर दी है. सिद्धारमैया के मंत्रिमंडल में जगह पाने के लिए कांग्रेस विधायक डी सुधाकर के समर्थकों ने मुख्यमंत्री के घर के बाहर धरना दिया. 

शिवकुमार का गुटबाजी से इनकार

डीके शिवकुमार ने अपने और मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे को 'सामान्य नियमित दौरा' बताते हुए कहा कि वो कर्नाटक से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मिलेंगे. हमें अपनी कैबिनेट का विस्तार कर मंत्रिमंडल को जल्द पूरा करना है. इसके लिए कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से मिलूंगा. 

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शिवकुमार ने पार्टी के अंदर गुटबाजी और मतभेदों की बातों को खारिज करते हुए कहा कि प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मैं आपको बता रहा हूं कि पार्टी में कोई आंतरिक मतभेद नहीं है. वहीं, सिद्धारमैया के घर के बाहर पार्टी विधायक डी सुधाकर के समर्थकों द्वारा धरना देने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह स्वाभाविक है. पार्टी के सभी कार्यकर्ता मंत्री बनना चाहते हैं, जिसके लिए अपने-अपने तरीके से अपनी बात रख रहे हैं.

एमबी पाटिल और शिवकुमार के भाई भिड़े

सिद्धारमैया के करीबी और मंत्री एमबी पाटिल ने दावा किया कि मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच कोई समझौता नहीं हुआ है. उन्होंने शिवकुमार के ढाई साल बाद या 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद सीएम के रूप में कार्यभार संभालने की अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि अगर इस तरह की कोई बात होती तो पार्टी हाईकमान जरूर इस बात की जानकारी देता. 

वहीं, एमबी पाटिल के बयान से डीके शिवकुमार और उनके भाई डीके सुरेश नाराज बताए जा रहे हैं. शिवकुमार ने कहा कि कोई भी कुछ भी कह सकता है, उन्हें कहने दें. कांग्रेस के बड़े नेता इसे देखेंगे. शिवकुमार के भाई और बेंगलुरु ग्रामीण से सांसद डीके सुरेश ने खुले तौर पर पाटिल के बयान पर नाराजगी जाहिर की है. साथ ही कहा, 'अगर आप एमबी पाटिल के बयान का जवाब चाहते हैं तो पार्टी महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला से मिल सकते हैं. वो इस संबंध में बेहतर बता सकते हैं, कहने को तो मैं भी बहुत कुछ बोल सकता हूं, लेकिन मुझे अभी कुछ नहीं कहना है.' इस तरह सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार खेमे के बीच बयानबाजी और मतभेद सामने आने लगे हैं.

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