कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हो चुके हैं. कांग्रेस को भारी जनादेश मिला है और पार्टी 43 प्रतिशत मतों के साथ 136 सीटें जीतने में कामयाब रही है. यह पिछले तीन दशकों में राज्य में कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी जीत है. भारतीय जनता पार्टी केवल 65 विधानसभा सीटें जीतने में सफल रही जबकि जबकि जनता दल (सेक्युलर) के खाते में सिर्फ 19 सीटें ही आईं.
कांग्रेस की जीत में कई बातें सामने निकलकर आई हैं. पार्टी ने क्षेत्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन किया और विपक्ष के मजबूत किले को भेदने में भी सफल रही. कांग्रेस हैदराबाद कर्नाटक में एक मजबूत पार्टी रही है, जबकि तटीय कर्नाटक और मुंबई कर्नाटक बीजेपी को गढ़ माना जाता है.ओल्ड मैसूर क्षेत्र में जेडीएस को सबसे दमदार पार्टी माना जाता था लेकिन इस बार सारे समीकरण ध्वस्त हो गए. कर्नाटक में आमतौर पर तीन प्रमुख पार्टियों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखा जाता है। हालाँकि, निर्वाचन क्षेत्र के स्तर पर अधिकांश सीटों में मुकाबला कमोबेश हमेशा दो दलों के बीच रहा है.
हमने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में पिछले चार विधानसभा चुनावों में पार्टियों के प्रदर्शन का तुलनात्मक विश्लेषण किया और पाया कि 2023 के विधानसभा चुनाव कई मायनों में ट्रेंड-चेंजर रहे. तो, आइए विभिन्न क्षेत्रों का विश्लेषण कर देखते हैं कि कैसे सियासी समीकरण इस चुनाव में ध्वस्त होते हुए दिखाई दिए.
इस क्षेत्र में 19 सीटें हैं, जिनमें से भाजपा ने 12, कांग्रेस ने छह और जद(एस) ने केवल एक सीट जीती है. यह एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां भाजपा ने कांग्रेस से दोगुनी सीटें जीतीं. तटीय कर्नाटक में लड़ाई हमेशा से भाजपा और कांग्रेस के बीच रही है. पिछले कुछ चुनावों में, चाहे वह लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, भाजपा यहां बढ़त बनाने में कामयाब रही है. इस बार बीजेपी का वोट शेयर 2018 के समान रहा, भाजपा को 49 फीसदी वोट मिले जबकि कांग्रेस को 43 फीसदी वोट मिले.
23 विधानसभा सीटों वाला यह इलाका स्विंग करने वाला इलाका कहा जाता है. यहां कांग्रेस ने इस बार 15 सीटों पर जीत हासिल की है. गौर करने वाली बात यह है कि 2018 में भाजपा ने लगभग इतनी ही सीटें जीती थीं. 2008 में भाजपा यहां सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन 2013 में कांग्रेस ने बढ़त बना ली थी. वोट शेयर के मामले में भी ऐसा ही रूझान देखने को मिला.
बेंगलुरु क्षेत्र राज्य के अन्य क्षेत्रों से अलग है क्योंकि यहां अधिकांश विधानसभा क्षेत्र शहरी हैं. बीजेपी और कांग्रेस दोनों के बीच हमेशा से ही बेंगलुरु में टक्कर रही है.दोनों ने पिछले चार विधानसभा चुनावों में लगभग 40 प्रतिशत वोट प्राप्त किए, जिसमें 2023 भी शामिल है. हालांकि, 2013 में, बीजेपी को यहां 32 प्रतिशत वोट मिले थे. हालाँकि, यह हिस्सा पार्टी के राज्य के औसत 20 प्रतिशत से 12 प्रतिशत अधिक था. सीटों के बंटवारे के लिहाज से दोनों पार्टियों को ज्यादातर दहाई अंक में जीत मिली है. इस बार, कांग्रेस ने 13 सीटें जीतीं, जो 2018 की तुलना में दो कम हैं. भाजपा को इस बार पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में चार सीटों का फायदा हुआ है. पिछले चुनाव में दो सीटें जीतने वाली जद (एस) इस बार दोनों हार गई.
हैदराबाद क्षेत्र में इस बार कांग्रेस ने अपना परचम लहराया है, जो कि पार्टी का गढ़ रहा है. हालांकि, इस बार पार्टी पिछले दो दशकों में हुए सभी चुनावों से ज्यादा हासिल करने में कामयाब रही है. पार्टी को 2018 के पिछले विधानसभा चुनावों की तुलना में चार प्रतिशत अधिक वोट मिले.
इस क्षेत्र में कांग्रेस का प्रदर्शन दो कारणों से महत्वपूर्ण है- पहला, यह एक आर्थिक रूप से कमजोर क्षेत्र है जहां अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या अधिक है. दूसरा, वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इसी क्षेत्र से हैं. इन दो कारकों ने संभवतः पार्टी को इस क्षेत्र में सबसे अधिक वोट (46 फीसदी) जीतने में योगदान दिया है. जो पार्टी के लिए उनके राज्य के औसत से तीन प्रतिशत अधिक है. सीटों की बात करें तो इस क्षेत्र की 40 में से 26 सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली, जबकि बीजेपी को सिर्फ 10 सीटें मिलीं.
यह क्षेत्र भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है. यहां ज्यादा सीटों के अलावा बड़ी संख्या में लिंगायत मतदाता भी हैं. अक्टूबर 1990 में लोकप्रिय लिंगायत नेता वीरेंद्र पाटिल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद लिंगायतों ने दशकों से कांग्रेस पार्टी से दूरी बनाई हुई है. इस कथित विश्वासघात की पार्टी को वर्षों से भारी कीमत चुकानी पड़ी है.
हालाँकि, 2023 में यहां बीजेपी को झटका और कांग्रेस के लिए खुशखबरी आई. कांग्रेस पार्टी ने यहां की 50 विधानसभा सीटों में से 33 पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा की सीटें 2018 की 33 सीटों से घटकर इस बार केवल 16 रह गईं. वोट शेयर के मामले में, कांग्रेस ने तीन दशकों में पहली बार इस क्षेत्र में 40 प्रतिशत से अधिक वोट प्राप्त किए.
वास्तव में, राज्य की 69 लिंगायत बहुल विधानसभा सीटों में (जिन सीटों पर लिंगायतों की आबादी 20 प्रतिशत से अधिक है, मुख्य रूप से उत्तरी और मध्य कर्नाटक में), कांग्रेस ने 45 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा मह 20 सीटें ही जीत सकी.
यह राज्य का सबसे बड़ा क्षेत्र है और एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां जद (एस) का गढ़ माना जाता है. जद (एस) हमेशा यहां अग्रणी पार्टी रही है. इस बार, हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने जद (एस) से बेहतर प्रदर्शन किया और 42 प्रतिशत वोट हासिल किए, जो 2018 के अपने हिस्से से सात प्रतिशत अधिक था. पार्टी ने इस क्षेत्र में अपनी सबसे अधिक विधानसभा सीटें (43) भी जीतीं.
दूसरी ओर जद (एस) यहां की 64 विधानसभा सीटों में से 26 फीसदी वोटों के साथ केवल 14 सीटें जीतने में कामयाब रही. पार्टी को इस क्षेत्र में नौ फीसदी वोटों का नुकसान हुआ (जबकि राज्य स्तर पर उसे 5 फीसदी वोटों का नुकसान हुआ)। बीजेपी को इस इलाके में दो फीसदी अधिक वोट मिले लेकिन उसे यहां 11 सीटों का नुकसान हुआ.