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मास्टर स्ट्रोक या मास्टर फेलियर...KCR की राष्ट्रीय पार्टी BJP के लिए बनेगी चुनौती?

के चंद्रशेखर राव ने अपनी राष्ट्रीय पार्टी का ऐलान कर दिया है. इस एक ऐलान ने उन्हें 2024 की चुनावी लड़ाई में एक सक्रिय भूमिका प्रदान कर दी है. लेकिन इस फैसले के बाद राजनीतिक गलियारों में एक बहस तेज हो गई है- केसीआर का राष्ट्रीय पार्टी बनाना एक मास्टर स्ट्रोक है या फिर एक मास्टर फेलियर?

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सीएम के चंद्रशेखर राव
सीएम के चंद्रशेखर राव

दक्षिण भारत की राजनीति में अपना सिक्का जमाने वाले के चंद्रशेखर राव के सपने अब राष्ट्रीय स्तर के हो गए हैं. तेलंगाना में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करवाने वाले मुख्यमंत्री अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर देने की तैयारी कर रहे हैं. तेलंगाना से बाहर निकल वे राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग ही राजनीति को धार देना चाहते हैं. इसी कड़ी में उनकी तरफ से 'भारत राष्ट्र समिति' नाम से पार्टी लॉन्च कर दी गई है. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या केसीआर का ये फैसला एक मास्टर स्ट्रोक साबित होता है या फिर इसे मास्टर फेलियर बताया जाए?

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केसीआर का बड़ा सपना

अब इस सवाल का जवाब जानने के लिए के चंद्रशेखर राव की राजनीति और उनकी पार्टी का उदेश्य समझना जरूरी हो जाता है. केसीआर सिर्फ तेलंगाना के एक बड़े नेता नहीं हैं, बल्कि इसे अलग राज्य का दर्जा दिलवाने में भी उनकी अहम भूमिका रही है. उनकी पार्टी टीआरएस 2001 में बनाई गई थी, उदेश्य सिर्फ तेलंगाना को एक अलग राज्य का दर्जा देना था. ऐसे में लंबे समय तक केसीआर की राजनीति सिर्फ और सिर्फ एक आंदोलन तक सीमित रही, बाद में जब तेलंगाना अलग राज्य बन भी गया तो उनका जनाधार, उनकी योजनाएं तेलंगाना को ध्यान में रखकर तैयार की गईं. इसी वजह से उनकी छवि एक मुख्यमंत्री के रूप में तो जरूर मजबूत हुई, लेकिन राष्ट्रीय नेता बनने की उनकी आस अधूरी रह गई.

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हिंदी पट्टी राज्यों में पैठ बनाना मुश्किल

ऐसे में अब उस मुख्यमंत्री वाली छवि से बाहर निकलना ही के चंद्रशेखर राव के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकता है. खास तौर पर हिंदी पट्टी राज्यों में उन्हें अपना जनाधार बनाने में समय लग सकता है. अब समय रहते केसीआर के पक्ष में माहौल बन सके, इसलिए पार्टी अभी से उन्हें एक 'क्रांतिकारी', गरीबों का हितैषी बताने की कोशिश कर रही है. बुधवार को जब केसीआर ने अपनी राष्ट्रीय पार्टी लॉन्च की तो कार्यकर्ताओं ने जोर-जोर से नारे लगाए. जो नारे लगाए गए, वो बताने के लिए काफी थे कि केसीआर एक लंबी रेस का हिस्सा बनने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय होने की कोशिश कर रहे हैं. 

सीएम वाली छवि से बाहर निकलना चुनौती

देश का नेता केसीआर, Dear India, he is coming, KCR is on the way जैसे नारे लगातार गूंजते रहे. ये सभी नारे बताने के लिए काफी थे कि केसीआर 2024 में बीजेपी का रथ रोकने की तैयारी कर रहे हैं. इसमें सफल कितना होते हैं, ये अभी बता पाना मुश्किल है. लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि केसीआर की ये नई राह आसान नहीं रहने वाली है. इस राह पर उनसे पहले कई दूसरे नेता भी चल चुके हैं, लेकिन जो सफलता उन्हें क्षेत्रीय राजनीति के दौरान मिली, राष्ट्रीय स्तर पर उनका करिश्मा फीका साबित हुआ. इस बारे में तेलंगाना जन समिति के संस्थापक और राजनीतिक जानकार M Kodandaram कहते हैं कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि कोई क्षेत्रीय पार्टी अपना नाम बदल रही हो. ये एक नुकसान वाला सौदा साबित होने वाला है. हमे नहीं भूलना चाहिए टीडीपी की आंध्र प्रदेश में मजबूत उपस्थिति है, वो एक राष्ट्रीय पार्टी भी है, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में उसे कुछ खास लाभ नहीं पहुंचा है. बड़ी बात ये है कि TDP और AIMIM ने अपना नाम भी नहीं बदला था, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ पाए. 

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महिला-किसानों वाली राजनीति पर जोर

M Kodandaram ने इस बात पर भी जोर दिया कि के चंद्रशेखर राव राष्ट्रीय स्तर पर एक मुख्यमंत्री के रूप में लोकप्रिय हैं, लेकिन एक राष्ट्रीय पार्टी बन जाना, जनाधार का विस्तार होना आसान नहीं है. लेकिन एक दूसरे राजनीतिक जानकार मानते हैं कि केसीआर कभी भी बिना सोचे कोई कदम नहीं उठाते हैं. अगर वे राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय होने की तैयारी कर रहे हैं, इसका मतलब ये है कि उनके मन में कोई प्लान जरूर है. वे बताते हैं कि केसीआर उन नेताओं में नहीं आते हैं जो बिना कारण कोई फैसला लें. उन्हें इस बात का अहसास है कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष मजबूत नहीं है, वैक्यूम बना हुआ है. ऐसे में महिला, किसान और पिछड़ों की राजनीति कर केसीआर, बीजेपी को टक्कर दे सकते हैं.

कांग्रेस के कमजोर होने से होगा फायदा?

अब विपक्ष सिर्फ कमजोर नहीं है, उसका अब तक एकजुट ना हो पाना भी बीजेपी के पक्ष में काम कर रहा है. बड़ी बात ये है कि पिछले कुछ सालों में कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार लचर रहा है, कुछ चुनावी जीतों को छोड़ दिया जाए तो पार्टी जमीन पर सिर्फ कमजोर होती गई है. उसकी उस कमजोरी ने ही थर्ड फ्रंड वाली थ्योरी को भी हवा दी है. ऐसे में इस समय केसीआर राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री कर उस स्पेस को भरना चाहते हैं. आसान नहीं होगा, लेकिन वे अपनी जन कल्याणकारी योजनाओं के दम पर एक अलग जनाधार बनाने की कोशिश जरूर करेंगे.

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केसीआर की लोकप्रिय योजनाएं

तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की लोकप्रियता का एक बड़ा कारण भी उनकी कुछ वो योजनाएं हैं जिन्होंने सीधे सीधे किसानों से लेकर महिलाओं तक को फायदा पहुंचाया है. उन योजनाओं का प्रचार भी इस तरह से हुआ है कि अगर उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर दिया जाए तो जमीन पर स्थिति तेजी से बदल सकती है. तेलंगाना में इस समय किसानों के लिए रायथु बंधु योजना काफी सफल साबित हुई है. इस योजना से किसानों को शुरुआती निवेश की जरूरतों के लिए समय पर नकद धनराशि देना और यह सुनिश्चित करना कि किसान कर्ज के जाल में न फंसें. इस योजना के तहत केसीआर सरकार प्रत्येक लाभार्थी किसान को हर फसल के मौसम से पहले प्रति एकड़ 4,000 रुपए प्रदान करती है. इसी तरह दलित बंधु के जरिए SC परिवारों को 10 लाख रुपये तक की सहायता दी जाती है जिससे वे अपना एक व्यापार खड़ा कर सकें. गर्भवती महिलाओं के बीच केसीआर किट भी काफी लोकप्रिय है जिसमें 12000 रुपये तक की सहायता दी जाती है.

अवसर से ज्यादा चुनौतियों का सामना

अब इन योजनाओं का प्रचार कर केसीआर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश तो कर सकते हैं, लेकिन उन्हें सफलता मिल जाएगी, इसकी गारंटी नहीं दी जा सकती. ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि 1980 के बाद से देश में कई क्षेत्रीय पार्टियां सक्रिय जरूर हुईं, फिर चाहे वो बीएसपी हो, सपा हो, जेडीयू हो या फिर डीएमके. इन पार्टियों ने केंद्र की राजनीति में एक सहायक वाली भूमिका तो हर बार निभाई, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान बना पाना हमेशा मुश्किल रहा. ऐसे में अब केसीआर एक नई राजनीति की ओर अग्रसर तो हो रहे हैं, लेकिन अभी उनके सामने अवसर से ज्यादा चुनौतियां हैं.

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