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केरल: समुद्रतटीय इलाकों में कांग्रेस का फीका प्रदर्शन, राहुल की मेहनत नहीं आई काम 

अगर सिर्फ कांग्रेस का प्रदर्शन अलग से देखा जाए तो बेहद खराब रहा है. कांग्रेस ने कुल 93 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे जिसमें से केवल 21 कैंडिडेट जीत पाए हैं. उन कोस्टल (समुद्रतटीय) इलाकों में भी कांग्रेस को कुछ खास नहीं मिला, जहां राहुल गांधी ने काफी मेहनत की थी. 

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कोस्टल इलाकों में राहुल ने काफी​ दौरा किया था (फाइल फोटो)
कोस्टल इलाकों में राहुल ने काफी​ दौरा किया था (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • मछुआरों के बीच राहुल ने कई दौरे किए थे
  • उनकी मेहनत का नहीं मिला खास लाभ

केरल में इस बार कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) सत्ता में लौटने की उम्मीद कर रही थी. जनता ने उसकी उम्मीद पर तो पानी फेर ही दिया, उन कोस्टल (समुद्रतटीय) इलाकों में भी कांग्रेस को कुछ खास नहीं मिला जहां राहुल गांधी ने काफी मेहनत की थी. 

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लोकसभा चुनाव में केरल की 20 में से 19 सीटें हासिल करने वाले कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को विधानसभा में महज 41 सीटें मिलीं. कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को मध्य केरल के एर्नाकुलम और कोट्टयम तथा इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के प्रभाव वाले मलप्पुरम जिले में ही अच्छी सीटें मिली हैं.  

सच तो यह है कि यह है कि अगर सिर्फ कांग्रेस का प्रदर्शन अलग से देखा जाए तो बेहद खराब रहा है. कांग्रेस ने कुल 93 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे जिसमें से केवल 21 कैंडिडेट जीत पाए हैं. 

कोस्टल एरिया से उम्मीद 

केरल के समुद्रतटीय इलाकों की बात करें तो राज्य में करीब 49 ऐसी सीटें हैं जो कोस्टल एरिया में हैं और जहां मछुआरा समुदाय काफी अहम है. ये सीटें कोल्लम, अलप्पुझा, एर्नाकुलम, त्रिसूर, मलप्पुरम, कोझिकोड, कन्नूर और कासरगोड़ जिले में हैं. 

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दक्षिण के समुद्रतटीय इलाकों में राहुल गांधी ने मछुआरा समुदाय के बीच कई सभाएं की थीं. एक बार तो वह पानी में भी उतरे थे. लेकिन उनकी इस मेहनत से खास फायदा नहीं हुआ. लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) सरकार द्वारा कथित रूप से गहन समुद्र में मछली पकड़ने के ​लिए एक अमेरिकी फर्म से डील करने की वजह से मछुआरा समुदाय काफी नाराज था.

चुनाव के समय अलप्पुझा और कोल्लम के कैथोलिक डायोसीज ने खुलकर इस डील का विरोध किया था, जिसकी वजह से कांग्रेस को उम्मीद थी कि UDF समुद्रतटीय इलाके में ही 40 सीटें हासिल कर लेगी. लेकिन नतीजा बिल्कुल उलट रहा. इल इलाकों में यूडीएफ को करीब 10 सीट और कांग्रेस को महज 3 सीट ही मिल पाई है. मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के कोविड के दौरान किए गए काम ने इस समुदाय की नाराजगी दूर कर दी और इसने एलडीएफ को ही वोट देना पसंद किया.

परंपरा टूटी 

केरल में परंपरा तो यह दिखती थी कि हर पांच साल के बाद वहां सत्ता बदल जाती थी, लेकिन इस बार एलडीएफ ने दोबारा सत्ता हासिल कर इतिहास रच दिया. 

समुद्र तट से सटे जिलों की बात करें तो कासरगोड जिले की 5 में से कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ को महज 2, कोल्लम की 11 सीटों में से महज 2, एर्नाकुलम की 14 सीटों में से 9, अलप्पुझा की 9 में से सिर्फ 1, त्रिसूर की 13 में से सिर्फ 1, कन्नूर की 11 में से सिर्फ 2, मलप्पुरम की 16 में से 12 और कोझिकोड की 13 में से सिर्फ 2 सीटें मिली हैं.यानी मलप्पुरम जिले की यदि 12 मुस्लिम लीग के गढ़ वाली सीटों को छोड़ दें तो यूडीएफ को आठ जिलों की 90 के करीब सीटों में से करीब 17 सीटें ही मिली हैं. 

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तिरुवनंतपुरम और कोल्लम जिले की 25 सीटों में से कांग्रेस को सिर्फ तीन सीटें मिली हैं. कांग्रेस के दिग्गज वी.एस. शिवकुमार एलडीएफ की एक छोटी पार्टी जनथीपथ्य केरल कांग्रेस के एंटोनी राजू से हार गए. कांग्रेस के दो बार विधायक रह चुके के एस सबरीनाथन सीपीएम के एक लोकल नेता जी. स्टीफन से हार गए. 

यूडीएफ की 41 सीटों में से 17 सीट अकेले इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग की है. वह महज 8.27 फीसदी वोट पाकर 17 सीटें जीत ले गई. उसने कुल 27 कैंडिडेट ही खड़े किए थे. दूसरी तरफ 90 कैंडिडेट खड़ी करने वाली कांग्रेस 25.12 फीसदी वोट पाकर भी महज 21 सीटें जीत पाई. 

एलडीएफ को क्यों मिले वोट? 

केरल की राजनीति की जानकारी रखने वाले वहां के वरिष्ठ पत्रकार हसनुल बन्ना ने कहा, 'पिनराई विजयन सरकार ने कोविड के दौरान काफी अच्छा काम किया. सरकार ने करीब साल भर गरीबों को राशन का किट देना जारी रखा जिसका काफी अच्छा असर हुआ. इसी वजह से राहुल गांधी की तमाम मेहनत का कोस्टल इलाके में भी असर नहीं हो पाया. इसके अलावा सवर्ण गरीबों को आरक्षण देने जैसी एलडीएफ सरकार की कई ऐसी नीतियां रहीं जिसकी वजह से बीजेपी को पसंद करने वाले सवर्ण मतदाता ने विकल्प न रहने पर यूडीएफ की जगह एलडीएफ को ही वोट देना पसंद किया.' 

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