उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में रविवार को किसान आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा की आग में चार किसान सहित 8 लोगों की मौत हो गई है. इस मामले में सीधे तौर पर सत्ताधारी दल बीजेपी के नेताओं पर आरोप लग रहा है, जिसमें मुख्य रूप से केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा उर्फ मोनी के ऊपर इल्जाम है. लखीमपुर खीरी में चार किसानों को गाड़ी से कुचलने के आरोप में आशीष मिश्रा पर केस दर्ज हो चुका है. जबकि अजय मिश्रा के इस्तीफे की मांग की जा रही है. आइए जानते हैं अजय मिश्रा आखिर कौन हैं और कैसे सियासत में ब्राह्मण चेहरा बन गए?
लखीमपुर खीरी की घटना ने चुनाव से पहले बीजेपी के सियासी समीकरण को बिगाड़कर रख दिया है, क्योंकि सीधे तौर पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे पर आरोप लग रहे हैं. हाल ही में अजय मिश्रा ने मंच से किसानों को लेकर धमकी भरा विवादित बयान दिया था, जिसके बाद से पूरे इलाके में किसान आंदोलित होकर विरोध पर उतर आए. मंत्री ने कहा था कि मैं अपने पर उतर आया तो किसान गांव ही नहीं बल्कि लखीमपुर छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे. वहीं, अब किसानों की मौत के लिए केंद्रीय मंत्री के बेटे आरोपी बनाए गए हैं.
जिला पंचायत सदस्य से शुरू हुआ सियासी सफर
अजय मिश्रा का जन्म 25 सितम्बर 1960 को लखीमपुर खीरी के निघासन में बनबीरपुर में हुआ. उन्होंने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है और व्यवसाय कृषिविद उद्योगपति है. पिता का नाम अंबिका प्रसाद मिश्रा और माता प्रेमदुलारी मिश्रा हैं. उनकी पत्नी का नाम पुष्पा मिश्रा है. उनके दो पुत्र और एक पुत्री हैं. उन्होंने अपना सियासी सफर जिला पंचायत सदस्य के तौर पर शुरू किया और मौजूदा समय में मोदी कैबिनेट में गृह राज्य मंत्री हैं.
'महाराज' के नाम से है पहचान
अजय मिश्रा का विवादों से पुराना नाता रहा है, वो दंबग छवि वाले नेता माने जाते और पूरे इलाके में उनकी राजनीतिक तूती बोलती है. अजय मिश्रा को लखीमपुर इलाके में 'महाराज' के नाम से जाना जाता है. एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले अजय राजनीति में उतरने से पहले वकालत भी करते थे. वह पहलवानी भी किया करते थे और खीरी क्षेत्र में कुस्ती का दंगल कराते रहते हैं.
मर्डर केस में आया था नाम
करीब दो दशक पहले अजय मिश्रा का नाम एक व्यक्ति हत्या मामले में भी आया था. साल 2003 में तिकोनिया के रहने वाले 24 वर्षीय प्रभात गुप्ता की कस्बे में ही गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. इस हत्याकांड का आरोप अजय मिश्र पर लगा था और उन्हें नामजद किया गया था. हालांकि, 2004 में वह इस मामले में बरी हो गए, जिसके बाद उन्होंने राजनीति में जगह बनाने के लिए बीजेपी को चुना.
जिला पंचायत सदस्य से राजनीति की शुरुआत करने वाले अजय मिश्रा टेनी पहली बार साल 2012 में बीजेपी के टिकट पर निघासन सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे. इसके बाद 2016 में लखीमपुर खीरी संसदीय सीट पर हुए चुनाव में वो लड़े और बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की. उन्होंने 2,88,304 मतों से कांग्रेस पार्टी के अरविंद गिरि को हराया.
2019 में भी जीती बाजी
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर दोबारा लखीमपुर खीरी सीट से अजय मिश्रा टेनी ने 5,84,285 वोट पाकर 2,16,769 मतों के अंतर से जीत दर्ज की और गठबंधन से सपा प्रत्याशी डॉ. पूर्वी वर्मा को मात दी. सूबे के ब्राह्मण समीकरण को साधने के लिए केंद्रीय नेतृत्व को एक अदद ब्राह्मण चेहरे की जरूरत थी, जिसके लिए अजय मिश्रा मुफीद साबित हुए. इस तरह से मोदी कैबिनेट में अजय मिश्रा को हाल ही में एंट्री मिली और उन्हें गृह राज्य मंत्री बनाया गया.
अजय मिश्रा का सियासी कद जैसे-जैसे बढ़ा वैसे-वैसे उनके बेटे आशीष मिश्रा उर्फ मोनी का भी क्षेत्र में बढ़ता गया. 2012 में चुनाव में अजय मिश्रा को टिकट मिला तो प्रचार की कमान बेटे आशीष ने संभाल ली. पिता के विधायक बनते ही बेटे की सियासी सक्रियता भी बढ़ गई थी. 2017 विधानसभा चुनावों में अजय मिश्र ने बेटे के लिए टिकट भी मांगा, लेकिन बात बन नहीं पाई. पार्टी ने उनकी जगह शशांक वर्मा को टिकट दिया और वो विधायक बन गए.
एक बार फिर से अगले साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में आशीष मिश्रा निघासन विधानसभा सीट से बीजेपी कैंडिडेट बनने के लिए सक्रिय हैं, लेकिन चार किसानों के कुचलने के आरोप में वो घिर गए हैं. लखीमपुर खीरी की घटना ने बीजेपी को फिलहाल बैकफुट पर लाकर खड़ा कर दिया है. विपक्ष इस मुद्दे पर योगी सरकार को घेरने में जुटा है. कृषि कानून से नाराज किसानों का लखीमपुर की घटना ने गुस्सा और भी बढ़ा दिया है. अब सवाल ये है कि बीजेपी कैसे डैमेज कन्ट्रोल करती है?