लालदुहोमा, एक ऐसे राजनेता हैं जिन्हें देश के लोकतांत्रिक इतिहास में अनोखे कारणों से याद किया जाता है. लोकसभा सचिवालय ने शुक्रवार को जिन कारणों का हवाला देते हुए राहुल गांधी की सदस्यता रद्द कर दी है, उसी तरह एक अन्य मामले में दल-बदल कानून के तहत अपनी सदस्यता गंवाने वाले पहले शख्स लालदुहोमा ही हैं.
कभी इंदिरा गांधी की सुरक्षा के प्रमुख रहे पूर्व IPS अधिकारी लालदुहोमा ने जब राजनीति में कदम रखा तो उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि उनका नाम इतिहास में ऐसे याद रखा जाएगा. जब वह तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की सुरक्षा के चीफ थे, उसी दौरान उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर कांग्रेस जॉइन कर ली थी. उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा, जीता और कुछ समय बाद कांग्रेस छोड़ने का फैसला ले लिया. बस तभी उन पर एक्शन हो गया और वे दल-बदल कानून के तहत लोकसभा से सदस्यता गंवाने वाले पहले शख्स बन गए.
इंदिरा से प्रेरित होकर राजनीति में आए
लालदुहोमा ने इंदिरा गांधी से प्रेरित होकर ही राजनीति में कदम रखा था. साल 1966 मिजोरम में एक विद्रोह शुरू हुआ. इसके बाद धीरे-धीरे मिजोरम में राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल काफी बढ़ गया. इसे देखते हुए लालदुहोमा ने 1984 में कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के लिए अपनी पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद इंदिरा गांधी के मंत्रालय ने उन्हें विद्रोही नेता लालडेंगा से बातचीत कर उग्रवाद का समाधान करने का जिम्मा सौंपा. इस शांति वार्ता के लिए लालदोहमा ने लंदन गए और लालडेंगा के सामने प्रस्ताव रखा कि भारत सरकार शांति वार्ता के लिए राजी है. विद्रोही नेता लालडेंगा उनकी बात को माने और उन्होंने मिजोरम की जनता के लिए मैसेज रिकॉर्ड किया जिसमें लालडेंगा ने अपने विद्रोही लोगों से शांति की अपील की. उनके इस एक मैसेज से राज्य में अमन चैन लौट और इंदिरा गांधी की नजरों में लालदुहोमा अब हीरो बन चुके थे.
इंदिरा की नजरों में बने स्टार
मिजोरम के पूर्व मुख्यमंत्री ललथनहवला ने बाद में लालदुहोमा के बारे में बताया था कि लालदुहोमा द्वारा रिकॉर्ड किए गए इसी मैसेज की वजह से 1984 के मिजोरम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी. इस दौरान लालदुहोमा लुंगलेई निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव भी लड़े थे. लेकिन हार गए. उनकी राजनीतिक स्थिति को महसूस करते हुए, इंदिरा गांधी ने मिजोरम के राज्यपाल एच.एस. दुबे को लालदुहोमा के लिए प्रावधान और विशेषाधिकार देने के लिए कहा. तब लालदुहोमा को तुरंत कैबिनेट मंत्रियों के पद पर मिजोरम राज्य योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया.
इसके बाद लालदुहोमा को 31 मई 1984 को मिजोरम कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. उनका राजनीतिक लक्ष्य शांति वार्ता पर केंद्रित था और उन्होंने इसी प्लान के तहत विद्रोही नेता लालडेंगा के भारत लौटने की व्यवस्था की. इसी क्रम में लालडेंगा और इंदिरा गांधी 31 अक्टूबर की दोपहर में मिलने वाले थे, लेकिन उसी सुबह गांधी की हत्या कर दी गई थी.
कांग्रेस और लालदुहोमा का छूटा दामन
इंदिरा गांधी के जाने के बाद लालदुहोमा और कांग्रेस की राहें अब अलग होने लगी थीं. दिसंबर 1984 के लोकसभा चुनाव में लालदुहोमा को मिजोरम निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुना गया था. इसके लिए पार्टी ने शर्त रखी कि उन्हें राज्य में कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ना होगा.
इस बात से नाराज होकर लालदुहोमा ने 1986 में कांग्रेस छोड़ दी. इससे पहले कांग्रेस 1985 में दल-बदल विरोधी कानून लाई थी. इस कानून के उल्लंघन के निशाने पर लालदुहोमा भी आए. साल 1988 तक तो लालदुहोमा पर कोई एक्शन नहीं हुआ लेकिन 24 नवंबर 1988 को लोकसभा अध्यक्ष ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया और इसी फैसले के साथ लालदुहोमा भारत के ऐसे सांसद बने जिनकी सदस्यता को इस कानून के तहत रद्द किया गया. लालदुहोमा ने बाद में इस मामले पर टिप्पणी की. उन्होंने कहा, 'मुझे अपने पहले दलबदल के उस फैसले पर गर्व है क्योंकि यह मेरे राज्य में शांति के लिए था, क्योंकि मेरे वहां से हटने के बाद राज्य में शांति प्रक्रिया में देरी हो रही थी.'
मिजोरम में विधायकी गंवाने वाले पहले नेता बने
बाद में लालदुहोमा ने मिजोरम में एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल 'जोरम नेशनलिस्ट पार्टी' का गठन किया. फिलहाल वो इसी पार्टी के फाउंडर और अध्यक्ष हैं. अब चलते हैं साल 2018 के मिजोरम विधानसभा चुनावों पर. तब उनकी पार्टी गठबंधन 'जोरम पीपुल्स मूवमेंट' में शामिल हो गई, जिसके साथ उन्होंने 2018 में मिजोरम विधानसभा चुनाव लड़ा.
गठबंधन पार्टी ने आधिकारिक रूप से उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया.हालांकि तब तक गठबंधन पार्टी आधिकारिक रूप से भारत के चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त नहीं कर सकी थी. इसलिए 2018 में लालदुहोमा ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. वह आइजोल वेस्ट I और सेरछिप सीट दोनों जगह से चुनाव जीते और उन्होंने सेरछिप विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया. उन्होंने सेरछिप सीट को इसलिए चुना क्योंकि इस सीट पर वो वर्तमान मुख्यमंत्री ललथनहवला को 410 वोटों से हराकर चुनाव जीते थे. हालांकि उनकी सरकार तो नहीं बनी लेकिन विधानसभा में उन्हें विपक्षी नेता के रूप में जरूर चुना गया. उन्होंने चुनाव निर्दलीय लड़ा था जबकि इसी कार्यकाल के बीच उनका गठबंधन राजनीतिक दल 'जोरम पीपुल्स मूवमेंट' 2019 में चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड हो गया. रजिस्टर होने के बाद वे इस राजनीतिक दल के अध्यक्ष बने.
अपनी ही पार्टी का अध्यक्ष होने का भुगतना पड़ा खामियाजा
इसके बाद सितंबर 2020 में, सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) ने लालदुहोमा पर आरोप लगाया था कि एक निर्दलीय उम्मीदवार होते हुए भी, वे एक रजिस्टर्ड राजनीतिक दल जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ZPM) के शीर्ष नेता के रूप में काम कर रहे हैं. इसी मामले पर संज्ञान लेते हुए विधानसभा से उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई. खास बात ये है कि मिजोरम विधानसभा में अयोग्य घोषित होने वाले भी पहले शख्स लालदुहोमा ही थे. हालांकि 2021 में फिर उपचुनाव हुए और लालदुहोमा फिर उसी सेरछिप निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीते.
उस वक्त अयोग्य घोषित होने के बाद उन्होंने कहा भी था, 'मैंने निर्दलीय चुनाव लड़ा क्योंकि मेरी पार्टी जेडपीएम का रजिस्ट्रेशन पूरा नहीं हुआ था. कानून का उद्देश्य उन दलबदलुओं को दंडित करना है जो किसी अन्य पार्टी में शामिल हो जाते हैं लेकिन मैं जेडपीएम के लिए असफल रहा हूं. मेरा मामला इस मामले में अभूतपूर्व है.'