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लालू-मुलायम से ठाकरे फैमिली तक... भारत के वे सियासी परिवार, जिनमें छिड़ा घमासान

परिवार और पार्टी में पहले से ही खुद को उपेक्षित महसूस करते आ रहे तेज प्रताप यादव ने आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद के व्यवहार से आहत होकर पार्टी से नाता तोड़ने का ऐलान कर दिया. इतना ही नहीं, तेज प्रताप यादव ने पहली बार भाई तेजस्वी पर खुलकर हमला बोला.

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tej pratap-tejashwi yadav
tej pratap-tejashwi yadav
स्टोरी हाइलाइट्स
  • तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के बीच सियासी संग्राम छिड़ गया है
  • कई परिवारों में पहले भी छिड़ चुका है घमासान

बिहार की सियासत में इन दिनों पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के सियासी वारिस के तौर पर खुद को स्थापित करने के लिए तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव के बीच सियासी संग्राम छिड़ गया है. तेज प्रताप ने अब खुलकर अपने भाई तेजस्वी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. भारतीय राजनीति में लालू का पहला सियासी कुनबा नहीं है, जहां विरासत पर काबिज होने के लिए अपनों के बीच अदावत हो रही है. इससे पहले बिहार में पासवान तो यूपी में मुलायम परिवार, हरियाणा के चौटाला, महाराष्ट्र में ठाकरे तो दक्षिण में करुणानिधी परिवार में घमासान छिड़ चुका, जिसके चलते उन्हें सियासी तौर पर बिखरना पड़ा है.

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लालू परिवार में दरार

परिवार और पार्टी में पहले से ही खुद को उपेक्षित महसूस करते आ रहे तेज प्रताप यादव ने आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद के व्यवहार से आहत होकर पार्टी से नाता तोड़ने का ऐलान कर दिया. इतना ही नहीं, तेज प्रताप यादव ने पहली बार भाई तेजस्वी पर खुलकर हमला बोला. उन्होंने कहा कि यही रवैया रहा तो अर्जुन (तेजस्वी) गद्दी पर नहीं बैठ पाएंगे. साथ ही चेताया भी कि रवैया सुधारें, नहीं तो संघर्ष होगा. तेज प्रताप ने खुद को संघर्ष की उपज बताया. इससे साफ जाहिर है कि तेज प्रताप अब बागी रुख अपना चुके हैं और पार्टी में अपने समर्थकों के संग मोर्चा खोल दिया है. हालांकि, लालू पटना पहुंच चुके हैं. ऐसे में अब देखना है कि परिवार में मचे सियासी कलह को कैसे थामते हैं.

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पासवान कुनबा बिखरा

बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) संस्थापक रामविलास पासवान की सियासी विरासत को लेकर भी ऐसे ही सियासी संग्राम छिड़ चुका है. रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद कुछ ही दिन में पार्टी दो फाड़ हो गई. चाचा पशुपति पारस ने अपने भतीजे चिराग पासवान को चुनौती दे दी और पार्टी का विभाजन हो गया. पशुपति पारस ने एलजेपी के सभी सांसदों को अपने साथ मिला लिया है, जिसके चलते चिराग पासवान अलग-थलग पड़ गए. हालांकि, अब चिराग अपने पिता की सियासी वारिस के तौर पर खुद को स्थापित करने में जुटे हैं.

मुलायम परिवार में संग्राम

देश के सबसे बड़े मुलायम परिवार में भी सियासी विरासत को लेकर घमासान 2017 के चुनाव से ठीक पहले पूरे देश ने देखा है. उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक विरासत को लेकर चाचा और भतीजे आमने-सामने आ गए. मुलायम के भाई शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच जमकर विवाद हुआ. सियासी झगड़ा इतना बढ़ गया कि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवपाल यादव ने अपनी अलग पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बना डाली, जिसका खामियाजा पहले विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा.

चौटाला परिवार टूटा

हरियाणा में भी चौटाला परिवार के मुखिया ओम प्रकाश चौटाला को जब शिक्षक भर्ती मामले में जेल की सजा हो गयी तब परिवार की लड़ाई सरेआम सामने आ गई थी. चौटाला के दोनों बेटों अजय चौटाला और अभय चौटाला के मतभेद सामने आ गए और विरासत की लड़ाई तेज हो गयी. स्थिति यहां तक आ गयी की अजय चौटाला ने अपने बेटे दुष्यंत चौटाला के साथ अपनी अलग जेजेपी पार्टी बना ली. इसका खामियाजा सियासी तौरा पर चौटाला परिवार को उठाना पड़ा. इनेलों को महज एक सीट मिली जबकि जेजेपी 10 सीटें जीतकर किंगमेकर बनी.

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ठाकरे परिवार में जंग

महाराष्ट्र में भी बाल ठाकरे की  पार्टी शिवसेना में विरासत को लेकर विद्रोह हुआ. बाला साहेब ठाकरे का दौर था, तब मुंबई और शिवसेना में राज ठाकरे की तूती बोलती थी. बोलने की मुखर शैली और तेवर के चलते शिव सैनिक भी राज ठाकरे में बाला साहेब की छवि देखते थे. बाला साहेब ने अपने बेटे उद्भव ठाकरे को राजनीति में सक्रिय किया. उद्धव और राज आपस में चचेरे-मौसेरे भाई हैं. साल 2002 में बीएमसी के चुनावों में शिवसेना की जीत मिली. बाला साहेब ठाकरे ने उद्धव को इस जीत का श्रेय देते हुए 2003 में शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया. 2004 में उद्धव को शिवसेना का अध्यक्ष घोषित किया गए. राज ठाकरे को यह उत्तराधिकार रास नहीं आया और 2006 में वह शिवसेना से अलग हो गए. उन्होंने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाई.

करुणानिधि परिवार में जंग

दक्षिण भारत के तमिलनाडु की सियासत में करुणानिधी परिवार की तूती बोलती है. करुणानिधि के दो बेटे एम के अलागिरी और एम के स्टालिन सक्रिय राजनीति में हैं. उनकी एक बेटी कोनिमोझी भी राजनीति में एक्टिव हैं. जब बात विरासत की आई तो करुणानिधि ने स्टालिन को 2016 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. कोनिमोझी पिता के फैसले के साथ रहीं. अलागिरी ने विद्रोह का झंडा उठाया तो उन्हें 2018 में ही डीएमके से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. 2021 के विधानसभा चुनाव में डीएमके को बहुमत मिला और एम के स्टालिन चीफ मिनिस्टर बने और संघर्ष के बाद से अलागिरी राजनीति में अलग-थलग पड़ गए.

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