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कोटे में कोटा: सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिव्यू पिटीशन दायर कर सकती है LJP, चिराग जता चुके हैं असहमति

कोटे में कोटा को लेकर रार थमता नहीं दिख रहा है. बसपा चीफ मायावती से लेकर एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान तक इस फैसले पर अपनी असहमति जता चुके हैं. अब चिराग के नेतृत्व वाली एलजेपी फैसले के विरोध में पुनर्विचार याचिका दाखिल भी कर सकती है.

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chirag Paswan (File Photo)
chirag Paswan (File Photo)

कोटे में कोटा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी यह मुद्दा थमता नहीं दिख रहा है. सूत्रों के मुताबिक एनडीए का सहयोगी दल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकता है.

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LJP (रामविलास) चीफ और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान पहले भी कह चुके हैं कि उनकी पार्टी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में वर्गीकरण के सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील करेगी. एससी के फैसले के बाद उन्होंने कहा था कि उनकी पार्टी सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध करेगी कि वह इस फैसले की समीक्षा करे.

'समाज में छूआछूत अब भी जारी'

चिराग ने कहा था,'हम अदालत में समीक्षा याचिका दायर करेंगे. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति कैटेगरी के भीतर नई सब कैटेगरी बनाने से समाज के वंचित वर्ग के उत्थान का उद्देश्य पूरा नहीं होगा. अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण का आधार छुआछूत है, जो समाज में अभी भी जारी है.'

मायावती ने भी किया था विरोध

इससे पहले यूपी की पूर्व सीएम और बसपा चीफ मायावती भी इस मामले को लेकर अपनी असहमति जाहिर कर चुकी हैं. मायावती ने कहा था कि उनकी पार्टी बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के उप-वर्गीकरण की मंजूरी देने वाले फैसले से बिल्कुल सहमत नहीं है. उन्होंने कहा था कि एससी और एसटी समुदायों ने अत्याचारों का सामना एक समूह के रूप में किया है और इन समूहों के भीतर किसी भी तरह का उप-वर्गीकरण करना सही नहीं होगा.

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'आरक्षण में वर्गीकरण के खिलाफ'

मायावती ने कहा था कि आरक्षण में वर्गीकरण का मतलब आरक्षण को खत्म कर उसे सामान्य वर्ग को देने जैसा होगा. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से हमारी पार्टी सहमत नहीं है और हम रिजर्वेशन में से किसी तरह के वर्गीकरण के खिलाफ हैं.

6-1 के बहुमत से आया SC का फैसला

बता दें कि कोटे में कोटा का फैसला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से दिया था. फैसले में साफ कर दिया है कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है. यानी राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं. राज्य विधानसभाएं इसे लेकर कानून बनाने में समक्ष होंगी. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने ये फैसला सुनाया.

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