
देश लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है और समय चक्र की चाल भी साल बदल चुकी है. लोकसभा चुनाव से अब समय की दूरी कुछ महीनों की रह गई है. लोकसभा चुनाव के साथ ही साल 2024 में झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा सहित आठ राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने हैं. चार राज्यों- ओडिशा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के चुनाव तो लोकसभा चुनाव के आसपास ही हैं. ऐसे में अब नए साल के साथ ही चर्चा भी चुनावी हो चली है.
चर्चा केंद्र की सत्ता पर काबिज राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की अगुवाई कर रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की रणनीति को लेकर हो रही है तो बात विपक्ष की भी बात हो रही है. ओडिशा और आंध्र प्रदेश समेत जिन चार राज्यों में लोकसभा चुनाव के आसपास ही चुनाव होने हैं, उनमें से अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार है. सिक्किम विधानसभा में बीजेपी खाली हाथ है. हालांकि, सत्ताधारी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन में है.
ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजेडी) की सरकार है तो वहीं आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस की सरकार है. लोकसभा चुनाव के साथ ही आसपास जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें कांग्रेस खाली हाथ है यानी एक भी राज्य में पार्टी की सरकार नहीं है. इन राज्यों में इसबार बीजेपी की रणनीति क्या है और कांग्रेस के साथ ही बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस और एसकेएम की तैयारी कैसी है?
राज्यों के चुनाव में बीजेपी के लिए क्या दांव पर
पहले जिन चार राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें से पूर्वोत्तर के दो राज्यों में एक जगह बीजेपी की सरकार है तो दूसरी जगह एनडीए के घटक दल की. पूर्वोत्तर में बीजेपी के लिए साख बचाए रखने, सरकार रिपीट कराने की चुनौती होगी तो वहीं पार्टी का असली टेस्ट ओडिशा और आंध्र प्रदेश के चुनाव में होगा. ओडिशा में नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी की सरकार है. आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस की सरकार है. बीजेपी के सामने इन दोनों राज्यों में नवीन पटनायक और वाईएसआर कांग्रेस को चुनौती दे पाने की चुनौती होगी.
चुनावी राज्यों में कैसे पैठ बना रही बीजेपी
चुनावी राज्यों में पैठ बनाने के लिए बीजेपी माइक्रो लेवल की रणनीति पर काम कर रही है. हर जगह बीजेपी जहां पीएम मोदी का चेहरा और केंद्र सरकार की योजनाएं लेकर जा रही है, वहीं दूसरी तरफ पार्टी प्रतीक और संदेश के सहारे भी सियासी हालात मुफीद बनाने की कोशिश में है. अरुणाचल को रेल के जरिए देश से जोड़ने और सिक्किम को हवाई मार्ग से जोड़ने को बीजेपी इन राज्यों में बड़ी उपलब्धि के रूप में लेकर जा रही है.
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वहीं, ओडिशा में सड़क और इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर केंद्र सरकार के काम गिना रही है. ओडिशा में बीजेपी ने अब रणनीति बदल ली है. पार्टी के नेता सीएम नवीन पटनायक को टारगेट करने से परहेज कर रहे हैं और उनके आसपास मौजूद लोगों, बीजेडी के दूसरे नेताओं और पटनायक सरकार के मंत्रियों पर हमला बोल रहे हैं. मुफ्त राशन जैसी योजनाओं के जरिए बीजेपी आंध्र प्रदेश में सियासी जमीन मजबूत करने की कोशिश में है.
कास्ट इक्वेशन और प्रमुख मुद्दे
अरुणाचल प्रदेश से लेकर आंध्र प्रदेश तक जिन चार राज्यों में चुनाव होने हैं, वहां की सियासत कास्ट से अधिक क्लास बेस्ड है. सिक्किम में लेप्चा जैसे मूल सिक्किमी और गोरखाली जातियां जीत-हार तय करती हैं तो वहीं ओडिशा और आंध्र प्रदेश में गरीब और गरीबी बड़ा मुद्दा रहे हैं. जातीय जनगणना की काट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के नेता गरीबी पर जोर दे रहे हैं. गरीबी से बाहर आए लोगों अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम चीन के साथ लगती अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे राज्य हैं ऐसे में यहां राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा भी है.
क्या है गठबंधन का गणित
सिक्किम में बीजेपी शून्य पर है लेकिन सत्ताधारी एसकेएम के साथ पार्टी का गठबंधन है. ओडिशा में बीजेपी, बीजेडी और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय फाइट है. वहीं, अरुणाचल प्रदेश की बात करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में नेशनल पीपुल्स पार्टी ने दो सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों का समर्थन किया था. हालांकि, विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों दलों के बीच कोई समझौता नहीं हुआ था. आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस के साथ ही टीडीपी और बीजेपी भी मुकाबले को चौतरफा बनाने की कोशिश में हैं. सूबे में गठबंधन को लेकर कयास तो लगते रहे हैं लेकिन तस्वीर साफ नहीं है. वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी जैसी पार्टियां अब तक न तो खुलकर एनडीए के साथ आई हैं और ना ही इंडिया गठबंधन के ही साथ.
कांग्रेस और अन्य पार्टियां कितनी तैयार
कर्नाटक और तेलंगाना में मिली जीत से उत्साहित कांग्रेस आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों में भी उसी फॉर्मूले के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है जिससे इन राज्यों में पार्टी को जीत मिली. कांग्रेस इन राज्यों में पुरानी पार्टी होने के नाते लोगों को अपने काम याद दिला रही है और अल्पसंख्यकों के बीच भी अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की कवायद में जुटी है. आंध्र प्रदेश में कांग्रेस वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेर रही है तो साथ ही राज्य के लोगों को विकास के सपने भी दिखा रही है. पार्टी की रणनीति लोकल लीडरशिप को आगे कर चुनाव लोकल लीडर्स, लोकल मुद्दों पर केंद्रित रखने की है. वहीं, ओडिशा में सत्ताधारी बीजेडी नवीन पटनायक सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को लेकर जनता के बीच जा रही है.
2019 में कैसे रहे थे परिणाम?
आंध्र प्रदेश में कुल 175 विधानसभा सीटें हैं. दक्षिण के इस महत्वपूर्ण राज्य में जगन की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने 50.6 फीसदी वोट शेयर के साथ 151 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई थी. दूसरे स्थान पर रही तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) को 39.7 फीसदी वोट मिले थे लेकिन सीटें मिलीं महज 23 ही. पवन कल्याण की जनसेना पार्टी (जेएनपी) को 5.6 फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट पर जीत मिली और सूबे में कांग्रेस 1.2 और बीजेपी 0.9 फीसदी वोट शेयर के साथ शून्य सीटों पर सिमट गई थीं.
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लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो सूबे की कुल 25 में से 22 सीटों पर वाईएसआर कांग्रेस को जीत मिली थी. वहीं, तीन सीटें टीडीपी के हिस्से आई थीं. इसी तरह, ओडिशा की 147 में से 112 सीटें जीतकर बीजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी. बीजेपी को 23, कांग्रेस को 9, लेफ्ट को एक और एक सीट से निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली थी. 21 लोकसभा सीटों में 12 सीट बीजेडी, आठ बीजेपी को मिली थी जबकि कांग्रेस को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा था.
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अरुणाचल प्रदेश की 60 में से 41 विधानसभा सीटों पर बीजेपी, सात पर जेडीयू, चार पर कांग्रेस, 5 पर एनडीईपी और 3 पर अन्य को जीत मिली थी. सूबे की दोनों लोकसभा सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. सिक्किम में विधानसभा की 32 सीटें हैं. 2019 के चुनाव में प्रेम सिंह तमांग गोले के नेतृत्व वाली एसकेएम 17 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. पवन चामलिंग की सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) को 15 सीटें मिली थीं. सूबे की एकमात्र लोकसभा सीट से भी एसकेएम उम्मीदवार को ही जीत मिली थी.