कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे की ताजपोशी ने पार्टी के लिए कई नए अवसर खोल दिए हैं. जो पार्टी इस समय अपना सबसे खराब दौर देख रही है, जीत से ज्यादा हार का स्वाद चख रही है, उसे खड़ा करने की जिम्मेदारी अब मल्लिकार्जुन खड़गे की है. कर्नाटक से आते हैं, इसलिए उनकी सबसे पहली परीक्षा अगले साल होने वाले कर्नाटक चुनाव ही हैं. कांग्रेस भी मल्लिकार्जुन खड़गे की ताजपोशी को अपने पक्ष में भुनाना चाहती है. राज्य की दलित राजनीति को नई धार देने के प्रयास में लगी है.
खड़गे की कर्नाटक राजनीति पर कितनी पकड़?
अब मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस एक बड़ा दांव किसी कारण से मान रही है. कर्नाटक की राजनीति में खड़गे सिर्फ एक बड़ा दलित चेहरा नहीं हैं, बल्कि उन्हें वहां पर ‘sole illada sardara’ के नाम से भी जाना जाता है. इसका मतलब होता है वो नेता जो कभी नहीं हारा. यहां ये जानना जरूरी है कि मल्लिकार्जुन खड़गे लगातार 9 बार गुलबर्गा से विधायक रह चुके हैं, दो बार तो मुख्यमंत्री बनने के भी वे काफी करीब रहे. ऐसे में उनका कद और उनका प्रभाव कर्नाटक की राजनीति में जमीन पर समीकरण बदलने का पूरा दमखम रखता है.
दलितों को लुभाने के लिए खड़गे की ताजपोशी?
कर्नाटक चुनाव में दलित एक निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. इस समुदाय को अपने पक्ष में करने के लिए बीजेपी पहले ही कोटा बढ़ाने जैसे कदम उठाने पर जोर दे रही है. लेकिन अब कांग्रेस भी इस रेस में पीछे नहीं रहना चाहती है. माना जा रहा है कि इस दलित वोट को अपने पाले में करने के लिए भी खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया है. कितना असर होगा, ये तो समय बताएगा, लेकिन पार्टी जरूर उत्साहित दिखाई पड़ती है. उम्मीद की जा रही है कि खड़गे का जिम्मेदारी संभालना पार्टी को चुनावी राज्य में नई ऊर्जा से भर सकता है. बड़ी बात ये भी है कि कर्नाटक में कांग्रेस इस समय एकजुट नहीं चल रही है. पार्टी के अंदर ही अंदरूनी लड़ाई का एक ऐसा दौर शुरू हुआ है जो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. आलम ये है कि अब दो गुट प्रमुखता से सामने आ गए हैं. एक है डीके शिवकुमार का गुट तो दूसरा है सिद्धारमैया वाला गुट. इन दोनों के समर्थक समय-समय पर एक दूसरे से भिड़ते रहते हैं, रिश्तों में तनाव कम होने के बजाय बढ़ता जाता है.
अंदरूनी लड़ाई को शांत कर पाएंगे खड़गे?
अब कांग्रेस को पूरी उम्मीद है कि मल्लिकार्जुन खड़गे के पार्टी अध्यक्ष बनने से ये अंदरूनी लड़ाई थम सकती है. जो दो गुट इस समय आमने-सामने चल रहे हैं, खड़गे अपनी आपसी सूझबूझ से उसे शांत कर सकते हैं. अगर ऐसा हो जाता है तो कर्नाटक चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए ये भी एक बड़ी जीत मानी जाएगी. डीके शिवकुमार भी मानते हैं कि खड़गे के अध्यक्ष बनने से कर्नाटक में कांग्रेस को अलग ताकत मिली है, सभी नई ऊर्जा से भर गए हैं. लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस की जैसी सियासत है, उसे देखते हुए इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि खड़गे के सक्रिय होने से राज्य में एक तीसरा गुट भी खड़ा हो सकता है. ये वो आशंका है जिसे कांग्रेस चुनाव से पहले बिल्कुल भी सच नहीं करना चाहेगी.